गाजीपुर: मुकाबला भाजपा के "शक्तिमान" और बसपा के "बाहुबली" के बीच
गाजीपुर। अब लोकतंत्र महापर्व के फाइनल राउंड में एक मुकाबला शक्तिमान और बाहुबली के बीच भी है। लोकसभा के सातवें और अंतिम चरण के चुनाव में जो महत्वपूर्ण सीट बची हैं उनमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वाराणसी सीट और उनके मंत्रिमंडल के कद्दावर मंत्री मनोज सिन्हा की गाजीपुर सीट भी शामिल है। वाराणसी सीट पर नरेन्द्र मोदी का मुकाबला एकतरफा हो चला है लेकिन गाजीपुर में बाहुबली मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी और मोदी कैबिनेट के हैवीवेट यानी शक्तिमान मनोज सिन्हा के बीच कांटे की टक्कर है। वही मनोज सिन्हा जो 2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए थे।
विरोधी को दोस्त बना ठोंकी ताल
राजनीति की गणित में कोई सेट फार्मूला नहीं होता। यहाँ फार्मूला परिस्थिति और परिणाम के अनुमान पर बनते बिगड़ते हैं। ऐसे ही फार्मूले के तहत उत्तर प्रदेश में एक समय एक - दूसरे के धुर विरोधी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन कर लिया। अब यह गठबंधन सत्तारूढ़ बीजेपी के नाक में दम किये हुए है। ऐसा गणित, राजनीति में ही सम्भव है कि अखिलेश यादव ने जिस मुख्तार और अफजाल अंसारी के कौमी एकता दल का विलय समाजवादी पार्टी में नहीं होने दिया था उसी अफजाल अंसारी के लिए अखिलेश और मायावती ने संयुक्त रैली 13 मई को गाजीपुर में की और अखिलेश ने अफजाल के लिए वोट माँगा। इसके पहले मायावती भी मैनपुरी में मुलायम के लिए वोट मांग चुकी हैं।
जब मनोज सिन्हा सीएम बनते बनते रह गये
गाजीपुर उत्तर प्रदेश हाई-प्रोफाइल सीटों में से एक है। लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में वाराणसी के बाद गाजीपुर ही ऐसी सीट हैं जिस पर लोगों की नज़र है। यहां से केंद्रीय रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा सांसद हैं। मनोज सिन्हा भारतीय जनता पार्टी राज्य ईकाई के कद्दावर नेताओं में से एक हैं और 2017 के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद उनका नाम राज्य के मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में सबसे आगे था। मनोज सिन्हा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी भी माने जाते हैं। गाजीपुर सीट पर कांग्रेस के अजीत प्रताप कुशवाहा और सीपीआई के डाक्टर भानु प्रकाश पाण्डेय भी मैदान में हैं लेकिन असली मुकाबला मनोज सिन्हा और अफजाल अंसारी के बीच ही माना जा रहा है। मनोज सिन्हा 1996, 1999 और 2014 में यहाँ से बीजेपी के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। जबकि अफजाल ने 2004 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर गाजीपुर सीट से लोकसभा चुनाव जीता था। 2014 के लोकसभा चुनाव में 'मोदी लहर' के बावजूद मनोज सिन्हा इस सीट पर करीब 33 हजार वोटों से ही जीत सके थे। तब सपा और बसपा ने अलग अलग चुनाव लड़ा था। अच्छे एडमिनिस्ट्रेटर और साफ़ छवि वाले मनोज सिन्हा के लिए इस बार मुकबला और कडा है। सपा-बसपा के साथ आने से गाजीपुर सीट पर राजनितिक गणित पूरी तरह बदल गया है।
मुकाबला जातीय समीकरण बनाम विकास के बीच
इस सीट पर सर्वाधिक संख्या यादव मतदाताओं की है और उनके बाद दलित एवं मुस्लिम मतदाता हैं। यादव, दलित एवं मुस्लिम मतदाताओं की कुल संख्या गाजीपुर संसदीय सीट की कुल मतदाता संख्या की लगभग आधी है। गठबंधन का यही समीकरण सिन्हा के लिए चुनौती है। यह बात भी सही है कि उपेक्षित और पिछड़े गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में मनोज सिन्हा ने अपने पूरे कार्यकाल में काफी विकास कार्य करवाया है। पांच वर्षों में गाजीपुर रेलवे स्टेशन का पुनरोद्धार, रेलवे प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना, गाजीपुर से विभिन्न महानगरों के लिए नई ट्रेन शुरू होना और सड़कों का निर्माण जैसे प्रमुख कार्य हुए हैं। कहा जा रहा है की इस बार गाजीपुर में जाति का आधार टूट गया है और विकास चुनावी आधार बन गया है। लेकिन प्रदेश की राजनीति में अक्सर विकास पर जाति भारी पड़ती है। सवर्ण मतदाताओं में राजपूत, ब्राह्मण और भूमिहार की संख्या अच्छी खासी है। मनोज सिन्हा भी भूमिहार हैं। गाजीपुर में पिछले कई चुनावों में जाति फैक्टर का असर रहा है। अतीत में भाजपा की जीत में सवर्ण वोटरों के साथ कुशवाहा वोटरों की बड़ी भूमिका रही है जिनकी आबादी यहां लगभग ढाई लाख से अधिक है। इस बार कांग्रेस के टिकट पर अजीत कुशवाहा के मैदान में होने से भाजपा के लिए थोड़ी मुश्किल पैदा हो सकती है। इस सीट पर करीब डेढ़ लाख से अधिक बिंद, करीब पौने दो लाख राजपूत और लगभग एक लाख वैश्य भी हार-जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। भाजपा को उम्मीद है कि यहां अफजाल अंसारी के बसपा का उम्मीदवार होने से यादव मतदाताओं का एक हिस्सा मनोज सिन्हा की तरफ हो सकता है क्योंकि अखिलेश और मुख्तार अंसारी बंधुओं के बीच रिश्ते अच्छे नहीं माने जाते। दूसरी तरफ सपा को लगता है कि उसका कोर वोटर गठबंधन के साथ मजबूती से खड़ा है। वैसे, रेल राज्यमंत्री सिन्हा क्षेत्र में पिछले पांच वर्षों में हुए विकास कार्यों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर गठबंधन के जातीय समीकरण को विफल करने की कोशिश में हैं।
चीनी यात्री व्हेन सांग की आत्मकथा में जिक्र
एक समय था जब गाजीपुर अफीम के लिए जाना जाता था। अंग्रेजों ने 1820 में यहाँ विश्व में सबसे बड़ा अफीम कारखाना स्थापित किया था। गाजीपुर शहर अपने हथकरघा और इत्र उद्योग के लिए भी प्रसिद्ध हैं। वैसे गाजीपुर की स्थापना सैय्यद मसूद गाजी ने की थी। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक इस शहर का प्राचीन नाम गाधिपुर था जो कि 1330 में ग़ाज़ीपुर कर दिया गया। ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक गाजीपुर, पृथ्वीराज चौहान के वंशज राजा मांधाता का गढ़ था। गाजीपुर की गिनती प्राचीन शहर के रूप में होती है और इसका उल्लेख वैदिक युग में भी मिलता है। 7वीं सदी में भारत की यात्रा पर आए प्रसिद्ध चीनी यात्री व्हेन सांग ने भी इस शहर का जिक्र अपनी आत्मकथा में किया है। उन्होंने इस स्थान को चंचू यानी 'युद्ध क्षेत्र की भूमि' यानी गर्जनपति कहा। गाजीपुर संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधानसभा क्षेत्र जखनियां, सैदपुर, गाजीपुर सदर, जंगीपुर, जमनिया आते हैं। जिसमें जखनियां और सैदपुर रिजर्व सीट के रूप में दर्ज है। अब देखना है कि 2019 के राजनितिक रण में यहाँ का मतदाता विकास को तरजीह देता है या जाति को।