सोई पत्नी की हरकत से परेशान हो गया पति, कोर्ट पहुंचकर मांगा तलाक
Ghaziabad news, गाजियाबाद। गाजियाबाद में पत्नी से तलाक मांगने का एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है। पति ने कोर्ट में अपनी अर्जी देते हुए कहा कि उसकी पत्नी रात में सोते हुए बड़बड़ाती है, इसलिए रात में उसकी नींद पूरी नहीं होती जिस कारण वह अपने ऑफिस समय से नहीं पहुंच पाता। अदालत ने अर्जी स्वीकार करते हुए सुनवाई की तारीख लगा दी है।
जानकारी के अनुसार पत्नी से तलाक की अर्जी देने वाला युवक बुलंदशहर का रहने वाला है। युवक पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। इस समय वह नोएडा स्थित एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता है। बताया गया कि युवक की शादी करीब तीन साल पहले मेरठ की युवती से हुई थी।
महिला के इंजीनियर पति का आरोप है कि नींद में उसकी पत्नी बड़बड़ाती है। उसका इलाज भी कराया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। उसकी वजह से वह रात में ठीक से सो नहीं पाता, जिस कारण रोजऑफिस पहुंचने में उसे देर हो जाती है। पति ने मंगलवार को कोर्ट में अर्जी देकर पत्नी से तलाक दिलाए जाने की गुहार लगाई है। जिसके बाद कोर्ट ने अर्जी को स्वीकार करते हुए सुनवाई के लिए अगली तारीख लगा दी है।
शादी के एक साल के अंदर नहीं ले सकते तलाक- इलाहाबाद हाईकोर्ट
वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलाक के मामले पर बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने शादी के बाद एक साल अंदर ही टूट रही जोड़ियों पर चिंता व्यक्त करते हुए तलाक देने की समय सीमा पर बड़ा आदेश जारी किया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि शादी के एक साल के अंदर तलाक नहीं दिया जा सकता। यानी शादी की सालगिरह से पहले तलाक अवैध होगा और उसे कानूनी मान्यता नहीं मिलेगी। अदालत ने स्पष्ट किया कि वह कोई नया नियम या कानून नहीं बना रहे हैं, बल्कि पूर्व में ही बने कानून का अनुपालन करने को कह रहे हैं। हाईकोर्ट ने बताया कि विवाह अधिनियम की धारा 13 बी में यह स्पष्ट निर्देश है कि शादी के साल के बाद ही तलाक आपसी सहमति से किया जा सकता है। लेकिन, शादी के बाद एक साल के अंदर तलाक की वैधानिकता सही नहीं है। फिलहाल हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद अब नये मामलों का जहां स्वत: निस्तारण हो जायेगा। वहीं, शादियां बचाने के लिये भी लोगों को वक्त मिलेगा। गौरतलब है कि आपसी सहमति से तलाक के लिये शादी के एक साल पूरे होने के अलावा भी कई शर्तें हैं, जैसे 6 महीनों से अलग रहना, पति पत्नी के सांसारिक रिश्तों का पालन ना करना आदि, जिन्हें पूरा किये बगैर वैधानिक रूप से तलाक की अर्जी कोर्ट अस्वीकार्य कर देता है।
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