भारत की पहली बुलेट ट्रेन के भू-अधिग्रहण के विरोध में हजारों किसान, कहा- "जान दे देंगे, जमीन नहीं"
गांधीनगर। भारत की पहली बुलेट ट्रेन के प्रोजेक्ट के लिए गुजरात-महाराष्ट्र में कराए जा रहे भू-अधिग्रहण में दिक्कतें आ रही हैं। इन राज्यों के हजारों किसान भू-अधिग्रहण के विरोध में हैं। वे किसान अपनी भूमि छोड़ने को तैयार नहीं हैं। किसानों के इस विरोध की मुख्य वजह बेहतर मुआवजा नहीं मिलना है। किसानों ने सरकार के कदम को असंवैधानिक करार दिया है। भू- अधिग्रहण कराने का जिम्मा केंद्र एवं राज्य सरकारों का है। प्रोजेक्ट के लिए अब तक सैकड़ों किमी लंबाई में अधिग्रहण हो भी चुका है। मगर, अभी भी सैकड़ों गांव ऐसे हैं, जहां किसान जमीन देना नहीं चाहते। यदि सरकार अभी भू-अधिग्रहण करा लेती है, तो बुलट ट्रेन का काम शुरू हो जाएगा। फिर यह प्रोजेक्ट 2023 तक पूरा भी हो सकता है।
किसान बोले—“जान दे देंगे, जमीन नहीं”
भू-अधिग्रहण के खिलाफ नवसारी समेत कई जिलों में किसान विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। गांववालों का कहना है कि हम जान दे सकते हैं, लेकिन जमीन नहीं देंगे! यहां 24 गांवों के लोग सरकार के खिलाफ जुट गए हैं। इन गांवों से बुलेट ट्रेन की लाइन गुजरने वाली है। इसलिए जमीन अधिग्रहण प्रक्रिया चल रही है। मगर, किसानों द्वारा विरोध किया जा रहा है, क्योंकि भूमि के लिए कोई मुआवजा तय नहीं हो पाया है। खेती-बाड़ी की जमीन के अलावा काफी संख्या में आवासीय मकानों को भी कब्जाए जाने की जरूरत पड़ेगी।
आठ जिलों से 2370 शिकायतें मिलीं
जुलाई में एक रिपोर्ट में बताया गया कि बुलेट ट्रेन के लिए गुजरात के 8 जिलों में 74,62,493 वर्ग मीटर भूमि के अधिग्रहण की प्रक्रिया चल रही है, जिसके तहत अभी दूसरे चरण का काम बाकी है। मगर, अहमदाबाद, आणंद, खेड़ा, वडोदरा, भरूच, सूरत, नवसारी और वलसाड आदि आठ जिलों से 2370 शिकायतें मिली हैं। इन शिकायतों पर संज्ञान लिया जाए तो बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट की लाइन का काम अधर में ही लटका रहेगा।
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काटने पड़ सकते हैं 55,000 मैंग्रोव ट्री
महाराष्ट्र
में
समुद्र
के
नजदीक
यानी
तटीय
इलाके
से
होकर
बुलेट
ट्रेन
की
लाइन
गुजरेगी।
यहां
इसके
लिए
55,000
मैंग्रोव
ट्री
काटे
जा
सकते
हैं।
मैंग्रोव
ऐसे
क्षुप/वृक्ष
होते
हैं
जो
खारे
पानी
या
अर्ध-खारे
पानी
में
पाए
जाते
हैं।
अक्सर
यह
ऐसे
तटीय
क्षेत्रों
में
होते
हैं,
जहाँ
कोई
नदी
किसी
सागर
में
बह
रही
होती
है,
जिस
से
जल
में
मीठे
पानी
और
खारे
पानी
का
मिश्रण
होता
है।
अच्छे
वातावरण
के
लिए
इन
पेड़ों
का
होना
जरूरी
है।
ऐसे
में
इन
पेड़ों
को
काटे
जाने
के
विरोध
में
लोग
हाईकोर्ट
पहुंच
गए
हैं।
सितंबर 2017 में रखी गई थी पहली बुलेट ट्रेन की आधारशिला
14 सितंबर 2017 के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद में जापानी प्रधानमंत्री शिंजो अबे के साथ बैठक की थी। तब जापान के सहयोग से 1.08 लाख करोड़ की अहमदाबाद-मुंबई बुलट ट्रेन परियोजना की आधारशिला रखी गई थी। इस परियोजना को 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा था। अहमदाबाद और मुंबई के बीच 508 किलोमीटर की इस परियोजना के लिए, गुजरात, दादरा नागरेली और महाराष्ट्र में कुल 1380 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जाना है।
जापान ने 88,000 करोड़ का कर्ज देने का वादा किया
मोदी-शिंजो की मुलाकात में तय हुआ कि जापान सरकार इस सुपर-स्पीड ट्रेन के लिए भारत को 88,000 करोड़ रुपये का ऋण देगी। तब से इस परियोजना के लिए गठित नेशनल हाई स्पीड रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड को दिसंबर 2018 तक सभी जमीन अधिग्रहण करने का निर्देश दिया गया था, लेकिन सरकार द्वारा अपेक्षित रूप से काम नहीं किया गया। कार्यकाल पूरा होने के 8 महीने बीत जाने के बावजूद, कुल जमीन का 50 प्रतिशत भू-अधिग्रहण ही हो सका।
किस जिले से कितनी भूमि अधिग्रहित की जानी है?
गुजरात के राजस्व मंत्री नितिन पटेल के अनुसार, विगत 3 वर्षों में बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए, राज्य के 8 जिलों में 74,62,493 वर्ग मीटर भूमि के अधिग्रहण की प्रक्रिया चली। जिसके तहत आणंद में 47,7672 वर्ग मीटर, खेड़ा में 1093987 वर्ग मीटर, वडोदरा में 951783 वर्ग मीटर, भरूच में1283814 वर्ग मीटर, सूरत में 1411997 वर्ग मीटर, नवसारी में 862088 वर्ग मीटर और वलसाड में 109,389 वर्ग मीटर जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है। यानी गुजरात में 746 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन अधिग्रहित करने की प्रक्रिया चल रही है।
80 फीसदी भूमि-अधिग्रहण हुआ, शेष लटका
अधिकारिक रिपोर्ट में बताया गया कि महाराष्ट्र में 20 प्रतिशत और गुजरात में 60 प्रतिशत जमीन अधिग्रहण हुई। जबकि, शेष जमीन को लेकर सरकार किसानों को मना नहीं पाई है।