लोकसाहित्य और कला के शिल्पी पद्मश्री हाकू शाह का 85 की उम्र में निधन
gujarat News, गांधीनगर। लोक-साहित्य कलाकृति के जाने-माने कलाकार हाकू शाह का अहमदाबाद में निधन हो गया। वह 85 वर्ष के थे। उनकी मौत की वजह दिल का दौरा पड़ना बताई जा रही है। शाह के बेटे पार्थिव ने कहा कि वह लंबे समय से बीमार थे और एक सप्ताह से अस्पताल में भर्ती थे। बुधवार दोपहर उन्हें दिल का दौरा पड़ा था।
1934 में उनका जन्म सूरत जिले के वालोड में हुआ
बता दें कि 1989 में पद्म श्री और इसके बाद कई पुरस्कार मिल चुके थे। उनका पूरा नाम हाकूभाई वजुभाई शाह है। वर्ष 1934 में उनका जन्म सूरत जिले के वालोड में हुआ था। उन्होंने 1955 में वड़ोदरा में महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ विश्वविद्यालय के ललित कला संकाय से स्नातक और बाद में स्नातकोत्तर किया। इसके बाद प्रसिद्ध कलाकार केजी सुब्रमण्यन के तहत अपनी मास्टर डिग्री की। उन्होंने 1965 में जॉन डी. रॉकफेलर फेलोशिप प्राप्त की। उन्हें 1971 में नेहरू फैलोशिप भी मिली। इन वर्षों में, उन्होंने ग्रामीण जीवन और आदिवासी कला, संस्कृति और लोक मान्यताओं के साथ-साथ अनुसंधान पर बहुत अधिक शोध किया। इसे प्रलेखित करने में भी महत्वपूर्ण योगदान रहा।
राजस्थान के उदयपुर में शिल्प ग्राम की स्थापना की
वह आदिवासी और लोक कला के लिए प्रसिद्ध थे। भक्ति आंदोलन की भी कला उनमें थी, साथ ही एक सांस्कृतिक मानवविज्ञानी भी थे। उन्होंने 1980 के दशक में राजस्थान के उदयपुर में शिल्प ग्राम की स्थापना की। 2009 में, 'मानुष' शीर्षक से अपने संस्करण को प्रकाशित करने वाले शाह को कला में योगदान के लिये 1989 में पद्म श्री, जवाहरलाल नेहरू फैलोशिप और कला रत्न सहित कई पुरस्कार मिले।
गांधीयन आश्रम में वर्षों तक लोगों को कला का पाठ पढ़ाया
गांधी के विचारों की कल्पना करने वाले हाकूभाई ने दक्षिण गुजरात के गांधीयन आश्रम में वर्षों तक लोगों को कला का पाठ पढ़ाया और गुजरात विद्यापीठ में आदिवासी संग्रहालय की स्थापना भी की। उन्होंने कई वर्षों तक संग्रहालय की देखरेख की थी। कहते हैं कि अब यह संग्रहालय उनकी बोलने की विरासत है। 2009 में हुकुभाई ने मानुष की उपाधि के साथ संस्मरण प्रकाशित किए।
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