जंगल नहीं मिले तो गुजरात की राजधानी में सड़कों पर घूमने लगीं नीलगाय, CM बोले- इन्हें बाहर करें
गांधीनगर. 'बढ़ते मानव-घटते जंगल' अब महज कोई वाक्य नहीं रह गया, बल्कि हकीकत बन चुका है। गुजरात में यूं तो कई जंगल हैं, लेकिन वन्यजीवों के खाने-पीने की कमी हो चली है। मांसाहारी जानवर तो मानव बस्तियों में पाए ही जा रहे हैं, अब जंगल के शाकाहारी जीव भी शहरों में नजर आने लगे हैं। गुजरात की राजधानी गांधीनगर की ही बात करें, तो यहां सड़कों पर नीलगाय खूब दौड़ रही हैं। कई नीलगाय तो मुख्यमंत्री के काफिले वाले रास्ते पर भी देखी जा चुकी हैं। सुबह-शाम नीलगाय सड़कों पर कई हादसों का कारण बन चुकी हैं। मुख्यमंत्री ने आवारा पशुओं को जंगलों तक खदेड़ने के आदेश दिए हैं।
खाने की तलाश में राजधानी में आ पहुंची हैं नीलगाय
वनविभाग के अधिकारी ने ब्यौरा देते हुए बताया कि राज्य में नीलगायों की संख्या पिछले तीन साल में बढ़कर 700 से ज्यादा हो गई है। ये जानवर अपने अस्तित्व के लिये नया इलाका ढूंढ रहे हैं। भोजन की तलाश में वे गांधीनगर के सेक्टरों में दाखिल होते हैं। शहर के कई इलाके नीलगाय, गाय और अन्य पशुओं के चारे वाले स्थल बने हुए हैं। फिर, रात को ये जानवर आबाद इलाकों में भी निकल पड़ते हैं। जिससे सड़क हादसों में बढ़ोतरी हुई है। ट्रैफिक पुलिस के लिये भी कभी-कभी ये चिंता का सबब बन जाते हैं।
सड़कों पर स्कूली बच्चे और राहगीरों को डर ज्यादा
संवाददाता के अनुसार, वन विभाग के समक्ष अब जंगली जानवरों को कस्बों से दूर रखने का कार्य चुनौतीपूर्ण बन गया है। सचिवालय और सरकारी दफतरों के आसपास भी अब नीलगाय नजर आ रही हैं। राज्य कैबिनेट के सदस्य जिन राजमार्ग से जाते हैं, वहां नीलगाय का उपद्रव बढ़ा है। यह पशु वैसे भी इतना दमदार होता है कि दौड़ती कार इससे टकरा जाए तो पलट भी सकती है। यह घोड़े जितनी बड़ी होती हैं। स्कूली बच्चों के लिये भी ये डरावनी हैं, क्योंकि नीलगाय की रफ्तार बहुत तेज होती है।
मुख्यमंत्री ने कहा- साबरमती नदी किनारे फेसिंग करें
नीलगाय समेत अन्य वन्यजीवों के सड़क या आबाद क्षेत्र में प्रवेश को रोकने के लिए मुख्यमंत्री ने राज्य के वन विभाग को साबरमती नदी के किनारे फेंसिंग करने का आदेश दिया है। क्योंकि, नीलगाय की सर्वाधिक मौजूदगी वाला क्षेत्र साबरमती नदी का किनारा है। जहां सरकार ने राजमार्ग भी बनाया है। उसी रास्ते से नीलगाय शहर के सेक्टरों में चली जाती हैं।
किसान परेशान हैं कि ये उनकी फसलें चट कर देती हैं
वहीं, ग्रामीण इलाकों में किसान अपनी फसल बर्बादी के लिए भी नीलगाय को जिम्मेदार मानते हैं। गुजरात विधानसभा में राज्य के ग्रामीण क्षेत्र के विधायकों पिछले महीनों कहा भी था कि नीलगायों को मारने के लिये किसानों को इजाजत दे दें। हालांकि, वन विभाग ऐसा करने नहीं देता। इसके बजाए दूसरे इंतजामों पर जोर दिया जा रहा है।
डरपोक होती हैं नीलगाय, आम लोगों पर हमला नहीं करतीं
कई पर्यावरणविदों का मानना है कि वन्यजीवों को दोष देना ठीक नहीं है, बल्कि सरकार ही ऐसे इंतजाम करे कि वे गांव-शहरों में न घुस सकें। नीलगाय तो वैसे भी डरपोक प्रवृत्ति के जानवर हैं। हालांकि, वे आम लोगों पर हमला नहीं करतीं, लेकिन शिकारियों को पहचान लेती हैं।
बच्चों को संकट में देख भागती हैं मारने
यदि वे भागने लगें और कोई सामने आ जाए, तो हादसा तय है। नीलगाय अक्सर अपने बच्चों को संकट में देख हमला करती हैं।