गुजरात में 28000 हीरा श्रमिकों से छिनी नौकरी, यूनियन बोली- सरकार जल्द कुछ करे नहीं तो ये 50000 होंगे
गांधीनगर। वैश्विक मंदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को तगड़ी चोट पहुंचाई है। इसी की आड़ में लाखों लोगों से रोजगार छिन चुका है। जबकि, सैकड़ों कंपनियां छंटनी करने में लगी हुई हैं। गुजरात में सैकड़ों फाउंड्री इकाई ठप हो चुकी हैं। जबकि, हीरा उद्योग और ऑटोमोबाइल कंपनियां भी बंद हो रही हैं। डायमंड सिटी सूरत में तो हीरा श्रमिकों पर तो मानो कहर ही टूट पड़ा है। यहां 28,000 हीरा श्रमिकों से रोजगार छिन गया है। डायमंड वर्कर यूनियन के अनुसार, बीते 4 महीने में ही ये हजारों लोग बेरोजगार हो गए। यदि सरकार कोई कदम नहीं उठाती है तो जल्द ही यह संख्या 50 हजार से भी ज्यादा हो जाएगी।
गुजरात में 28000 हीरा श्रमिकों रोजगार छिना
वर्कर यूनियन के अध्यक्ष रणमल जिलरिया ने का कहना है कि हीरा उद्योग और फाउंड्री उद्योग से जुड़े लोग अधिक संकट में हैं। हम सरकार में लगातार मदद करने की अपील कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हो रही है। सरकार, जल्द ही कुछ नहीं करती है बेरोजगार हीरा श्रमिकों की संख्या 50 हजार को पार कर जाएगी। जबकि, फाउंड्री इकाइयां ठप हुईं तो लाखों की संख्या में लोग रोजगार से हाथ धो बैठेंगे।
450 लोगों की नौकरी छीनकर बंद हुई कंपनी
हीरे की बड़ी कंपनियों पर ताले लगने शुरू हो गए हैं। यहां एके रोड पर स्थित गोधानी इम्पेक्स को उसके मालिकों ने बंद कर दिया है। गोधानी इम्पेक्स ने शनिवार को 250 हीरा श्रमिकों को नौकरी से निकाला था। फिर दो दिन बाद सोमवार को 200 और श्रमिकों को नौकरी से निकाला गया। यानी 450 से ज्यादा लोग बेरोजगार हो गए। वे लोग अब भटक रहे हैं। जबकि, सरकार इस मामले में खामोश है।
इधर, 2 हजार से ज्यादा फाउंड्री इकाईयों पर संकट
हीरा उद्योग के अलावा राज्य में सक्रिय 2 हजार से ज्यादा फाउंड्री इकाइयाँ भी ठप होने की कगार पर हैं। इन फाउंड्रीज में चार लाख से अधिक कर्मचारी हैं। कर्मचारियों को नौकरी खोने का डर सता रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, देशभर में 6 हजार फाउंड्री चल रही हैं। जिनमें से अकेले गुजरात में 2 हजार से ज्यादा फाउंड्री हैं। गुजरात की तरह अन्य राज्यों में भी ये बंद हो सकती हैं।
ऑटो कंपनियों ने उत्पादन कम कर दिया
फाउंड्री इंडस्ट्री से जुड़े जानकारों के मुताबिक, वाहनों की बिक्री में गिरावट के साथ ऑटो कंपनियों ने उत्पादन कम कर दिया है। जिसके परिणामस्वरूप फाउंड्री इकाईयां भी संकट में हैं।