'जंगल के राजा' गुजरात में भी नहीं सेफ, 1 साल में मरे 114 शेर, सरकार ने सासन गिर में क्या किया?
Gujarat News, गांधीनगर। गुजरात में पिछले 8 सालों में 529 शेरों की मौत हो चुकी है। अकेले वर्ष 2016 में ही 114 शेरों की जान गई। यह भी तब, जबकि यहां सासन गिर के जंगल एशियाई शेरों के लिए दुनिया में सबसे सेफ प्रश्रय स्थल माने जाते हैं, फिर भी बड़ी संख्या में शेर यहां भी बेमौत मरते हैं। ये मौंतें होने के कारण तो बहुत से रहे, लेकिन शेरों को संरक्षित करने के लिए सरकार एवं वन विभाग के प्रयास नाकाफी ही रहे।
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, यहां जैसे ही शेरों की संख्या बढ़ती है, उनके लिए क्षेत्र कम पड़ने लगता है। ऐसे में शेर जन-क्षेत्रों में घुसने लगते हैं, जहां अपने बचाव के लिए लोग उन्हें निशाना बनाते हैं। शेरों की मौत की और भी कई वजहें सामने आने पर केंद्र सरकार ने कुछ ठोस कदम उठाए हैं। जिनमें विशेष पैकेज के लेकर, शेर के इलाकों में व्यवस्था-परिवर्तन करने जैसी योजनाएं शामिल हैं।
गिर में शेरों की नहीं थम रहीं मौतें, ये हैं बड़ी वजहें
वन विभाग अधिकारियों का कहना है कि शेरों की सामान्य रूप से नेचरल डेथ होती है, लेकिन सूबे में अप्राकृतिक मौतें रोकने के लिए सरकार को गंभीर हो जाना चाहिए। शेरों की अप्राकृतिक मौतें रेलवे ट्रैक, वाहन दुर्घटना, कुए में गिर जाने और खेत में बिजली के करंट की वजह से होती हैं। हालांकि, यहां शिकारियों के हमले की खबर नहीं आईं, जो कि अच्छी बात रही है। इसके अलावा शेर इनफाइट और प्राकृतिक बीमारी के कारण भी मरे हैं। 26 शेर 2018 में एक ही साथ वायरस के हमले में मर गए थे।
इसलिए भी अधिक चिंताजनक हुई स्थिति
वनइंडिया से बातचीत में नाम नहीं बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा, ''शेरों का जन्म और मृत्यु की घटनायें बरसों से चली आ रही है। शेर मरते हैं और नए जन्म भी लेते हैं। यह प्रकृति का क्रम है, किंतु यह आश्चर्यजनक है कि प्राकृतिक मौत की तुलना में शेरों की अप्राकृतिक मौत की संख्या बढ़ रही है। यहां यदि एक शेर मर जाता है, तो तीन या चार नए शेर पैदा होते हैं, इसलिए संख्या स्थिर रहती है और बढ़ती भी है। लेकिन शेरों का बेमौत मरना चिंता का विषय ही है। वह भी तब जबकि, सासन गिर एशियाई शेरों का एक मात्र बसेरा है।''
ऐसे घटती-बढ़ती रही शेरों की संख्या
वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि 5 साल के अंतर पर शेरों की संख्या बढ़ी, किंतु सामूहिक मौतें भी खूब हुईं। मसलन 2015 में अंतिम गणना के अनुसार, राज्य में 523 शेर थे, लेकिन अब यह संख्या 600 के आंकड़े को पार कर गई है। 1968 में शेरों की संख्या केवल 177 थी। जो 1974 में बढकर 180 और 1979 में 205 हो गइ थी। 1985 में शेरों की संख्या 239 और 1990 में 284 थी। शेर हर पांच साल में गिने जाते हैं। 1995 में शेर बढ़कर 304 और 2001 में 327 हो गये। 2005 में संख्या 359 और 2010 में 411 थी।
पिछले 8 वर्षों में सासन गिर में 529 शेरों की जान गई
दूसरी ओर, हर साल सासन गिर के शेरों की मृत्यु के किस्से में वृद्धि हो रही है, जिसमें नर, नारी और बाल सिंह का आंकडा सामने आ रहा है। पिछले 8 वर्षों में सासन गिर में 529 शेरों की जान गई। यह हैं वर्षवार आंकड़े:-
साल शेरों की संख्या मौतें
2011 26 19
2012 30 14
2013 32 24
2014 42 43
2015 44 36
2016 71 33
2017 41 38
2018 28 08
शेरों को अकाल मौत से बचाने और उन्हें संरक्षित रखने ये कर रही सरकार
राज्य के वनविभाग के अनुसार, सूबे की सरकार के साथ ही केंद्र सरकार शेरों की मौतें कम करने के लिए कई योजना लाई हैं। हालांकि, हालांकि शेर के कुदरती मौतों को तो नहीं रोका जा सकता। अप्राकृतिक मौतों को नियंत्रित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। शेरों के संरक्षण के लिए कुछ और इलाका बढ़ाए जाने पर भी बात चल रही हैं।
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- रेलवे ट्रैक पर शेरों की मौत की घटनाओं को रोकने के लिये पशु मित्र नियुक्त किए गए हैं। इनके अलावा गुड्स ट्रेन की गति को कम कर दिया गया है। शेरों की रक्षा के खुले कुएं के ऊपर पेरापेट वोल का निर्माण किया जा रहा है। वन क्षेत्र से गुजरने वाले सार्वजनिक मार्गों पर स्पीडब्रेकर लगाए गए हैं।
- राजुला-पिपावाव रेलवे ट्रैक, जहां शेरों की मौत की घटनाएं सामने आईं, वहां भी पटरी के दोनों तरफ चेन लिंक फेंसिंग लगानी शुरू कर दी है।
- शेर की हत्या के मामले में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम-1972 के प्रावधान के तहत राज्य सरकार ने अपराधी को सख्त सजा देने के लिए अदालत में कई मामले दर्ज किये हैं।
- बिजली करंट के कारण शेरों की मौत को रोकने के लिए किसानों के स्वामित्व वाले खेतों के आसपास लगाए गए बिजली संयंत्रों की जाँच कराई जाने लगी है।
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