निलंबित IPS संजीव भट्ट जेल में बंद, पत्नी ने हाईकोर्ट जाकर मांगी पुलिस सुरक्षा, कहा- हमें खतरा है
गांधीनगर। निलंबित आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट गुजरात की एक जेल में सजा काट रहे हैं। वहीं, उनके परिवार ने खुद को खतरे में बताया है। संजीव की पत्नी श्वेता ने हाईकोर्ट में अर्जी देकर पुलिस सुरक्षा मांगी है। उनका कहना है कि वह अपने पति के लिए पुलिस सुरक्षा नहीं मांग रही, बल्कि अपनी और बच्चों की खातिर सुरक्षा की मांग कर रही है। श्वेता के मुताबिक, कुछ उच्च तबके के लोग उनके घर के आस-पास घूमते देखे गए हैं। उन्हें उन लोगों पर संदेह है। पुलिसकर्मी भी उन पर निगाह रखने के लिए चक्कर काटते रहते हैं। ऐसे में कुछ अनहोनी की आशंका है। कई बार परिवार के लिए घर से निकलना मुश्किल भी हो जाता है, क्योंकि पुलिसकर्मी या कोई और उनका पीछा कर रहा होता है।
संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता भट्ट ने कहा- हमें सुरक्षा चाहिए
श्वेता भट्ट ने अहमदाबाद के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (विशेष शाखा) प्रेमवीर सिंह द्वारा दायर हलफनामे का भी खंडन किया। श्वेता ने अदालत में अपने परिवार के लिए पुलिस सुरक्षा की मांग करते हुए तर्क दिया कि प्रेमवीर सिंह न तो मामले में प्रतिवादी हैं, न ही यह तय करने का अधिकार है कि सुरक्षा की आवश्यकता है या नहीं।
प्रेमवीर ने कहा था- संजीव के परिवार को सुरक्षा की जरूरत नहीं
उन्होंने दलील दी कि जिस तरह पहले उनके पति और उनके परिवार को बिना किसी सूचना के सुरक्षा प्रबंध वापस ले लिया गया था, वह उनके परिवार के प्रति राज्य सरकार के रवैये को दर्शाता है। वहीं, प्रेमवीर सिंह द्वारा पूर्व में दायर हलफनामे में कहा गया है कि संजीव भट्ट परिवार के सामने खतरे की कोई धारणा नहीं थी और जुलाई 2018 में, संजीव भट्ट समेत 64 अन्य व्यक्तियों का सुरक्षा कवर वापस ले लिया गया था।
64 व्यक्तियों को दी गई सुरक्षा वापस ली गई थी
सिंह ने हलफनामे में उल्लेख किया है कि गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव ने जुलाई 2018 में एक बैठक की अध्यक्षता की जिसमें 150 से अधिक मामलों में पुलिस सुरक्षा की आवश्यकता का निर्णय लिया गया और 64 व्यक्तियों को दी गई सुरक्षा को बंद करने का निर्णय लिया गया। राज्य प्रशासन द्वारा यह भी तर्क दिया गया था कि श्वेता द्वारा क्षणिक प्रचार हासिल करने के लिए याचिका दायर की गई थी।
राइट टू लाइफ विद डिग्निटी एंड प्रोटेक्शन ऑफ लिबर्टी का तर्क
श्वेता भट्ट ने दिए गए अपने हलफनामे में, यह तर्क भी दिया कि पुलिस सुरक्षा की मांग करना राइट टू लाइफ विद डिग्निटी एंड प्रोटेक्शन ऑफ लिबर्टी के मौलिक अधिकारों के तहत निहित है। पुलिस बल नागरिकों को व्यक्तिगत और सामूहिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए है।