क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

मानवता के पुजारी अपना दायित्व निभाते चले आ रहे कर्मयोगी पत्रकार

By Santosh Gangele
Google Oneindia News

World Press day
विश्‍व प्रेस दिवस पर कुछ लिखने का मन हुआ तो अपने अनुभव एवं आप वीती के लेकर कुछ लिखने का साहस कर रहा हॅू। प्रेस दिवस छापा खाना (प्रिंटिंग प्रेस) से लेकर प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया, सोशल मीडिया कम्प्यूटर, इंटरनेट, मोबाइल, फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्स एप, आदि को भी विकासगति में जुड़ जाने के कारण प्रेस की आजादी को खतरा हो रहा है।

प्रेस की आजादी, स्वतंत्रता पर परतंत्रता की छाया नजर आने लगी है । आजादी के
पूर्व की पत्रकारिता एवं वर्तमान पत्रकारिता में जमीन आसमान का अंतर है। आजादी के पूर्व पत्रकार, प्रेस एक मिशन व देश व समाज के लिए पत्रकारिता हुआ करती थी, वर्तमान में प्रजातंत्र के रक्षक जब भक्षक बनने लगे तो विकास के मुद्दे को पीछे छोड़ते हुये अधिकारियों, राजनेताओं, उद्योगपति, ठेकेदारों, भू-माफियों, शिक्षा, संस्कृति के ठेकेदारों के लिए पत्रकारिता हो रही है।

मीडिया को अपने दायित्व का निर्वाहन करने में स्वंय की ताकत व आत्मबल के बाद काम करना पड़ रहा है । इस स्वतंत्र भारत में प्रेस की भूमिका पर ही पग-पग पर अग्नि परीक्षा होती है । लिखने वाले लिखते तो बहुत कुछ हैं लेकिन उसे स्वयं तो अमल कर नही पाते, सामने वाले को लिए छोड़ देते हैं।

प्रेस दिवस हर वर्ष मनाते हैं, किसी न किसी रूप में अच्छी बुरी खबरों के साथ हम जैसे तुच्छ बुद्धि, विवेकहीन लेखक को कहीं न कहीं किसी समाचार पत्र, बेब पोर्टल में स्थान मिल जाता है,अन्यथा लेख प्रकाशित करने एवं कराने के लिए भी आर्थिक मदद की आवश्‍यकता होती है। लेकिन मानवता के पुजारी पत्रकार अपना दायित्व निभाते चले आ रहे है ।

भारतीय संस्कृति में समाचारों का आदान प्रदान करने की प्राणाली हजारों वर्षों से चली आ रही है लेकिन भारत में समाचारों का महत्व अंग्रेजों के शासन काल में और ज्‍यादा बढ़ गया था। अंग्रेजों ने भारत पर अपना राज्य कायम कर रखा था तथा वह अपने बनाये कानून व नियमों को ही जनता तक भेजने के संदेश ग्रामों एवं चैपालों चैराहो पर डुन्डी पिटवा कर दिया करते थें ।

विज्ञान की खोज व भोतिकवादी युग की स्थापना के साथ प्रेस छापा खाने की खोज होने के वाद से भारतीय इतिहास में टंकण की व्यवस्था होने के कारण छपाई का कार्य शुरू हुआ जिसमें भारत में भी सन् 1875 से समाचारों का प्रकाशन शुरू हुआ।

धीरे-धीरे समाचार पत्रों का प्रकाशन शुरू हुआ जो सन् 1921 में समाचार पत्रो का रूप धारण कर चुके थे। देश को आजाद कराने में जो भूमिका समाचार पत्रों की रही वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानीओं की तरह थी। देश के लोगों को जाग्रत करने केलिए समाचारों का प्रकाशन हेाता था। समाचार छापने के बाद अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ समाचार वितरण करना भी बहुत कठिन था।

लेकिन देश के लोगों ने आजादी के लिए समाचार पत्रों प्रेस में कार्य किया और लोगों को जाग्रत कर देश से अंग्रेजी हुकुमत को उखाड़ फेंका। इस पूरे आंदोलन में पत्रकारों की अहम भूमिका रही है। देश की आजादी में देष के बीर शहीदों के समान पत्रकारों ने अपनी भूमिका अदा की तथा देष आजाद होने के बाद हमारे महापुरूषों ने प्रेस की आजाद को बरकरार रखा ।

प्रजातंत्र का बनाये रखने केलिए चार स्तम्भ स्थापित किये जिसमें विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका एवं प्रेस को रखा। प्रेस की आजादी का कुछ समय से दुरूपयोग हुआ और भारत को आजाद कराने वाले पत्रकार जो एक मिशन के रूप में देश-सेवा देश प्रेम का कार्य करते थे आज वह शायद पत्रकारिता को अपना व्यवसाय बनाकर कार्य कर रहे हैं।

मेरी नजर में देश को आजाद कराने वाले पत्रकारों के पास धन का अभाव हआ करता था तथा साधनहीन हुआ करते थे। पत्रकार की पहचान पूर्ण रूप से देश एवं समाजसेवा होती थी। देश आजाद होने के बाद सन् 1975 तक के पत्रकारो को मैने देखा कि वह स्वदेशी कपड़ों के साथ सूती वस्त्र धारण करते थे। एक जैकेट हुआ करती थी और एक झोला एक कॉपी या डायरी और एक पेन होता था। पैदल चलते थे और अगर कोई पत्रकार सामर्थ है तो उसके पास साइकिल हुआ करती थी।

समाचार भेजने के लिए डाक तार विभाग का ही सहारा हुआ करता था। इसलिए क्षेत्रीय खबरें सप्ताह या हर महीने पढ़ने को मिला करती थी। लेकिन सही सत्य व विश्‍वास पात्र समाचार हुआ करते थे। भारतीय राजनीति में उथल पुथल होने के बाद सन् 1980 से पत्रकारिता में उफान आना शुरू हुआ तथा समाचार पत्रों के प्रकाशन की संख्या में तूफान की तरह विकास हुआ कि देश में सैकड़ों नही हजारों समाचार पत्रों का पंजीयन हुआ।

हर राज्य में सैकड़ों पत्र पत्रिकायें पुस्तके समाचार पत्रों की संख्या में इजाफा हुआ। प्रत्येक समाचार पत्र के संपादक एवं पत्रकार ने देश प्रेम और देश- सेवा का त्याग कर किसी न किसी रूप में धन संग्रह कर अपना वैभव, सम्मान, प्रतिष्ठा पाने केलिए राजनेताओं अधिकारियों कर्मचारियो के सामने कलम को गहने रखने का प्रयास किया जिससे देश में अन्याय अत्याचार, भृष्टाचार बढ़ता गया।

सरकारों ने अपनी बात रखने के लिए सूचना तंत्र के नियम व कानून बनाये साथ ही पत्रकारों को अपने पक्ष में रखने के लिए विज्ञापन नीतिओं का निर्धारण किया।

प्रजातंत्र का चौथा स्तंम्भ कहे जाने वाली पत्रकारिता पूरी तरह से कैद हो चुकी है। वैज्ञानिक खोज, भौतिक साधनों के बाद जो स्वस्थ्य एवं निष्पक्ष पत्रकारिता देश के आजाद होने के बाद भी होती तो आज देश में इतने बड़े घोटाले न होते। अन्याय व आंतक न होता, भृष्टाचार की जड़े इतनी मजबूत न होती लेकिन समाचार पत्र का चलाना भी कठिन हो गया है।

Comments
English summary
World press day, journalism has changed a lot.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X