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World Disability Day: मिलिए उन नायाब हीरों से जिन्होंने सफलता का नया इतिहास रचा

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नई दिल्ली। आज पूरा विश्व अन्तर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस मना रहा है, संयुक्त राष्ट्र के द्वारा 'विकलांगजन अंतरराष्ट्रीय दिवस' 1981 को घोषित किया गया था। आज की दौड़ती -भागती जिंदगी में इंसान अपनी सुख-सुविधाओं की सारी चीजें एकत्र करने में लगा रहता है और जब वो चीजें पूरी नहीं कर पाता तो दुखी रहता लेकिन वो ये भूल जाता है कि उसे भगवान ने पूरी तरह से स्वस्थ बनाया है, उनका कोई अंग-भंग नहीं है। ऐसे लोग एक बार भी उन लोगों की तरफ नजर उठाकर नहीं देखते हैं, जो किसी ना किसी कारणवश शारीरिक और मानसिक कष्ट से जूझ रहे हैं लेकिन दुनिया में ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने अपनी इस कमी पर ना केवल विजय प्राप्त की है बल्कि दुनिया के सामने सफलता और खुशी की नई दास्तां लिखी है। ऐसे लोग पूरी दुनिया के लिए मिसाल है, जिन्होंने ये साबित किया है कि इंसान अभावों पर भी मुस्कुरा सकता है और अपने दम पर दुनिया जीत सकता है।

भारत कुमार

भारत कुमार

भरत कुमार पैरा स्विमर हैं और इन्होंने एक-दो नहीं बल्कि 50 मैडल अपने नाम किए हैं, ये देश का गौरव हैं, एक हाथ ना होने के बावजूद इन्होंने हार नहीं मानी और तैराकी को अपना करियर चुना और ये साबित किया कि हौसलों के आगे हर कमी बेमानी है। भरत कुमार ने इंग्लैंड, आयरलैंड, हॉलैंड, मलेशिया और चीन जैसे देशों में प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लेने के लिए दौरा किया और इंडिया का नाम रौशन किया।

सुधा चंद्रन

सुधा चंद्रन

इनके बारे में जितना लिखा जाए कम ही है, इन्होंने अपनी कमजोरी को ही अपनी ताकत बना लिया। मात्र 17 साल की उम्र में एक सड़क हादसे में अपना बांया पैर खोने वाली सुधा चंद्रन ने अपने नृत्य को ही अपना करियर बना लिया। डांस को अपना जीवन मानने वाली सुधा ने जयपुर फूट की मदद से ना केवल चलना सीखा बल्कि डांस करना भी सीखा। सुधा की जगह शायद कोई और होता तो वो आज व्हील चेयर के सहारे अपनी लाइफ जी रहा होता लेकिन नहीं सुधा ने जीवन का एक और ही रूप लोगों के सामने रखा। उन्होंने अपनी ही जीवन पर आधारित फिल्म 'नाचे मयूरी' में काम किया और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार अपने नाम किया।

अरूणिमा सिन्हा

अरूणिमा सिन्हा

उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर अंबेडकर नगर की अरुणिमा सिन्हा आज किसी परिचय की मोहताज नहीं। एक पैर नकली होने के बावजूद दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी-एवरेस्ट को फतह करने वाली विश्व की पहली महिला पर्वतारोही अरुणिमा परिस्थितियों को जीतकर उस मुकाम पर पहुंची हैं, जहां उन्होंने खुद को नारी शक्ति के अद्वितीय उदाहरण के तौर पर पेश किया है।भारत सरकार ने 2015 में उनकी शानदार उपलब्धियों के लिए चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान-पद्मश्री से नवाजा।

दीपा मलिक

दीपा मलिक

मंजिलें उन्हें मिलती हैं जिनके सपनों में जान होती है, परों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है...और ये बात पूरी तरह से फिट बैठती है भारत की महान एथलिट दीपा मलिक पर। 2016 पैरालंपिक में भारत के लिए सिल्वर मेडल जीतने वाली देश की इस बहादुर बेटी ने अपने हौंसलों, मेहनत और आत्मविश्वास से ये साबित कर दिया है कि डर के आगे केवल जीत है और सपनों को अगर खुली आंखों से देखो तो वो जरूर हकीकत में बदल जाते हैं।वो पैरालंपिक में मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं। शॉटपुट में दीपा मलिक ने छठे प्रयास में 4.61 का स्कोर बनाकर सिल्वर मेडल जीता था।

रविन्द्र जैन

रविन्द्र जैन

बचपन से ही नेत्रहीन रविंद्र जैन ने हमेशा सुरों और मन की आंखों से दुनिया को देखा और सफलता की ऐसी मिसाल पेश की, जिसके बारे मे कभी कोई नहीं सोच सकता था। रामायण हो या महाभारत या फिर राजश्री बैनर के सदाबहार गाने, जो जब भी बजते हैं लोगों की आंखों में चमक पैदा कर जाते हैं। संगीत के इस उपासक ने साबित किया कि विकलांगता केवल मन की कमजोरी है, हौसलों में दम हो तो इंसान आसमां में भी उड़ सकता है।

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English summary
United Nations International Day of Persons with Disabilities is annually observed on December 3 to focus on issues that affect people with disabilities worldwide. Meet 5 extraordinary Indians personalities.
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