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World AIDS Day 2017: भारत में खतरनाक है HIV+ महिलाओं की स्थिति, समाज में भी नहीं मिलती जगह

आज के दिन यानी 1 दिसंबर के दिन दुनियाभर में वर्ल्ड एड्स डे मनाया जाता है। एड्स जैसी घातक बीमारी के प्रति जागरुकता बहुत जरूरी है। करोड़ों लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं जिसमें से अधिकत महिलाएं हैं। भारत में एक महिला होने और एचआईवी/एड्स के साथ रहने के बारे में कुछ असुविधाजनक सत्य हैं।

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World Aids Day 2017

नई दिल्ली। आज के दिन यानी 1 दिसंबर के दिन दुनियाभर में वर्ल्ड एड्स डे मनाया जाता है। एड्स जैसी घातक बीमारी के प्रति जागरुकता बहुत जरूरी है। करोड़ों लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं जिसमें से अधिकत महिलाएं हैं। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO) की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2015 तक भारतीय महिलाओं में एचआईवी का प्रसार 0.22 प्रतिशत है। एचआईवी/एड्स से ग्रस्त 25 लाख लोगों में से करीब 10 लाख महिलाएं हैं। भारत में एक एचआईवी पॉजिटिव महिला होने का मतलब है, समाज का कलंक और नर्क सी जिंदगी।

अधिक संवेदनशील है महिलाएं

अधिक संवेदनशील है महिलाएं

बायोलॉजिकल और सामाजिक समस्याएं के कारण, महिलाओं को एचआईवी/एड्स संक्रमण की तुलना में पुरुषों की तुलना में अधिक संवेदनशील माना जाता है। यहां तक कि जब कलंक और दोष की बात आती है, तब भी महिलाएं ही अधिक प्रभावित होती हैं।

कम उम्र की लड़कियों को एड्स का ज्यादा खतरा

कम उम्र की लड़कियों को एड्स का ज्यादा खतरा

बायोलॉजिकल कारण से सेक्स के दौरान महिलाओं को एचआईवी होनी की संभावना ज्यादा रहती है। पुरुषों से महिलाओं में ट्रांसमिशन का अधिक खतरा रहता है। यूनिसेफ 2005 के आंकड़ों के मुताबिक वृद्ध महिलाओं की तुलना में 15 से 24 साल की लड़कियों में एड्स होने का खतरा रहता है। भारत जैसे देश में एचआईवी एड्स को लेकर कई मिथक हैं जिसमें से एक ये है कि आदमी एक वर्जिन लड़की से सेक्स करे तो एड्स ठीक हो जाता है। ऐसे मिथक समाज के लिए काफी खतरनाक हैं।

सबसे ज्यादा सेक्स वर्कर्स प्रभावित

सबसे ज्यादा सेक्स वर्कर्स प्रभावित

तस्करी, वेश्यावृति के कारण महिलाओं की स्थिति अधिक संवेदनशील है। भारत में महिलाओं के पास ये हक भी नहीं है कि वो अपने पार्टनर से सेफ सेक्स के लिए खुलकर कह सकें। यूएन एड्स के मुताबिक भारत में एड्स से ग्रस्त सेक्स वर्कर्स की संख्या 2.2 प्रतिशत है। NACO के मुताबिक ये प्रतिशत 4.9 है।

महिलाओं को ही दोषी ठहराता है समाज

महिलाओं को ही दोषी ठहराता है समाज

भारत में महिलाओं की हालत से हर कोई वाकिफ है। हर स्थिति में समाज उन्हीं पर सबसे पहले उंगली उठाता है। यूनीसेफ की 2005 की रिपोर्ट बताती है कि प्रेगनेंसी के वक्त पुरुषों से पहले महिलाओं का ही एचआईवी टेस्ट होता है। उन्हें ही संक्रमण का दोषी ठहराया जाता है भले ये संक्रमण पति से क्यों न मिला हो। समाज ऐसी औरतों का बहिष्कार कर देता है।

स्वास्थय को नहीं मिलती प्राथमिकता

स्वास्थय को नहीं मिलती प्राथमिकता

एक स्टडी के मुताबिक एचआईवी/एड्स से ग्रसित 75 प्रतिशत महिलाएं शादी के शुरुआती सालों में ही एचाआईवी पॉजटिव हो गईं। लिंग भेदभाव भी महिलाओं को इस बीमारी का उपचार लेने से रोकता है। परिवार में उनके स्वास्थ्य को कम प्राथमिकता दी जाती है। NACO के मुताबिक रेप, यौन शोषण और तस्करी के दौरान हमला महिलाओं को एचआईवी/एड्स होने में अहम भूमिका निभाता है।

World Aids Day: छूने, चूमने से नहीं फैलता एड्स और ना ही HIV पीड़ित चरित्रहीन होता है...World Aids Day: छूने, चूमने से नहीं फैलता एड्स और ना ही HIV पीड़ित चरित्रहीन होता है...

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English summary
World Aids Day 2017: Women in India are living a tough life with HIV/AIDS.
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