Sardar Vallabhbhai Patel: जानिए वल्लभ भाई पटेल कैसे बन गए 'सरदार'?
नई दिल्ली। 'लौह पुरुष' सरदार वल्लभ भाई पटेल केवल आदर्श व्यक्तित्व नहीं बल्कि एक निडर, साहसी, प्रखर इंसान थे, जिन्होंने देश को एक धागे में पिरोने की भरपूर कोशिश की। वो पैदा तो वल्लभ भाई पटेल के रूप में हुए थे लेकिन अपने महान कार्यों के कारण वो हिंदुस्तान के सरदार वल्लभ भाई पटेल बन गए। आपको जानकर हैरानी होगी कि बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहां की महिलाओं ने उन्हें 'सरदार' की उपाधि दी थी।
देश के पहले उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री थे पटेल
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को नडियाद (गुजरात) के एक लेवा पाटीदार कृषक परिवार में हुआ था। देश को एक धागे में पिरोने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल को पीएम मोदी ने भी 'मन की बात' में याद करते हुए कहा था कि उनके बताए रास्तों और सिद्धातों को हर किसी से मानना चाहिए।
अगर पटेल नहीं होते तो शायद देश एक नहीं होता...
सरदार वल्लभ भाई पटेल देश के पहले गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने थे, अगर पटेल नहीं होते तो शायद देश एक नहीं होता, उन्होंने आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरूष भी कहा जाता है। झवेरभाई पटेल और लाडबा देवी की चौथी संतान वल्लभ ने लंदन जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई की थी।
खेडा संघर्ष में बड़ा योगदान
स्वतंत्रता आंदोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बडा योगदान खेडा संघर्ष में हुआ। गुजरात का खेडा खण्ड (डिविजन) उन दिनो भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की मांग की। जब यह स्वीकार नहीं किया गया तो सरदार पटेल, गांधीजी और अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हेंं कर न देने के लिये प्रेरित किया। अन्त में सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी।
इसलिए
पटेल
कहलाए
'सरदार'
बारडोली कस्बे में सशक्त सत्याग्रह करने के लिये ही उन्हे पहले बारडोली का सरदार और बाद में केवल सरदार कहा जाने लगा। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिये उन्हे भारत का लौह पुरूष के रूप में जाना जाता
ये हैं सरदार वल्लभ भाई के अनमोल विचार
शक्ति
के
अभाव
में
विश्वास
व्यर्थ
है
शक्ति
के
अभाव
में
विश्वास
व्यर्थ
है,
विश्वास
और
शक्ति,
दोनों
किसी
महान
काम
को
करने
के
लिए
आवश्यक
हैं।
इंसान
के
माथे
पर
चिंता
की
रेखाएं
ऐसे बच्चे जो मुझे अपना साथ दे सकते हैं, उनके साथ अक्सर मैं हंसी-मजाक करता हूं। जब तक एक इंसान अपने अन्दर के बच्चे को बचाए रख सकता है तभी तक जीवन उस अंधकारमयी छाया से दूर रह सकता है जो इंसान के माथे पर चिंता की रेखाएं छोड़ जाती है।
मनुष्य को क्रोध नहीं करना चाहिए
मनुष्य को ठंडा रहना चाहिए, क्रोध नहीं करना चाहिए, लोहा भले ही गर्म हो जाए, हथौड़े को तो ठंडा ही रहना चाहिए अन्यथा वह स्वयं अपना हत्था जला डालेगा। कोई भी राज्य प्रजा पर कितना ही गर्म क्यों न हो जाये, अंत में तो उसे ठंडा होना ही पड़ेगा।