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10 कारण बतायेंगे क्‍यों घातक है समलैंगिक विवाह

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नयी दिल्ली। समलैंगिक विवाह कानूनी तौर पर या सामाजिक रूप से मान्यता प्राप्त एक ही लिंग के लोगो के विवाह को कहते हैं। समलैंगिक विवाहों का मानव इतिहास में बहुत स्थानों पर अभिलेखाकरण हुआ है। समलैंगिक विवाहों को वैध बनाने वाला पहला देश था नीदरलैंड जहाँ इसे 2001 में कानूनी मान्यता प्राप्त हुई।

समलैंगिक लोग हमेशा ही विषमलिंगी लोगों की तुलना में नगण्य रहे हैं अत: उनको कभी भी सामाजिक मान्यता नहीं मिली थी। इतना ही नहीं, अधिकतर धर्मों में समलैंगिक संबंधों पर प्रतिबंध था एवं इसे नैतिक पतन का लक्षण माना जाता था। इस कारण पकड़े जाने पर समलैंगिकों को हमेशा कठोर सजा दी जाती थी।

आज धीरे-धीरे कर देश इस तरह के एक ही सेक्स की शादियों को स्वीकार करने लगा है। समलैंगिकता को अब कानूनी दर्जा मिल रहा है। एक ही सेक्स के दो लोग अब सादी रचाकर एक साथ रहने के लिए आजाद है, लेकिन ये शादी ना केवल समाज के नियमों को तोड़ती है बल्कि प्रकृति के नियमों का भी उल्लघंन करती है।

शादी नहीं होती समलैंगिक विवाह

शादी नहीं होती समलैंगिक विवाह

प्रकृति के नियमों के मुताबिक शादी हमेशा एक स्त्री और पुरुष के बीच होती है। समाज उन शादियों को नहीं मानता जिनमें इन मान्यताओं को नहीं माना नहीं जाता। समलैगिंक शादियां ना केवल समाज के नियमों को तोड़ती है, ब्लकि ये प्रकृति के बनाए कानून का भी उल्लंघन करती है।

यह प्राकृतिक कानून का उल्लंघन

यह प्राकृतिक कानून का उल्लंघन

शादी दो इंसानों के बीच का संबंध है, जिसे समाज द्वारा जोड़ा जाता है और उसे प्रकृति के नियमों के साथ आगे चलाया जाता है। समाज में शादी का उदेश्य शारीरिक संबंध बनाकर मानव श्रृखंला को चलाना है। यहीं नेचर का नियम है। जो सदियों से चलता आ रहा है। लेकिन समलैंगिक शादियां मानव श्रृंखला के इस नियम को बाधित करती है।

अधर में बच्चे का भविष्य

अधर में बच्चे का भविष्य

समान्यता बच्चों का भविष्य मां-बाप के संरक्षण में पलता है। समलैगिंक विवाह की स्थिति में बच्चों का विकास प्रभावित होता है। वो या तो मां का प्यार पाते है या पिता का सहारा। मां-बाप का प्यार उन्हें एक -साथ नहीं मिल पाता तो उनके विकास को प्रभावित करता है। संडे टेलिग्राफ' अखबार के मुताबिक समलैंगिक शादी उस मूलभूत विचार को बिल्कुल खत्म कर देगा कि हर बच्चे को मां और बाप दोनों चाहिए।

समलैंगिक जीवन शैली को बढ़ावा देता है

समलैंगिक जीवन शैली को बढ़ावा देता है

एक ही सेक्स में विवाह की कानूनी मान्यता जरूरी है। ये शादियां समाज के नियम के साथ-साथ पारंपरिक शादियों को नुकसान पहुंचाती है। लोगों के सोचने के नजरिए को प्रभावित करती है। बुनियादी नैतिक मूल्यों , पारंपरिक शादी के अवमूल्यन, और सार्वजनिक नैतिकता को कमजोर करता है।

नागरिक अधिकारों का गलत इस्तेमाल

नागरिक अधिकारों का गलत इस्तेमाल

समलैंगिक कार्यकर्ताओं को एक ही सेक्स में शादी करने का मुद्दा 1960 के दशक में नस्लीय समानता के लिए संघर्ष का मुद्दा बन गया था। एक औरत और एक मर्द के बीच उनके रुप-रंग, लंबाई-चौड़ाई को बिना ध्यान में रखे संबंध बनाया जा सकता है, लेकिन एक ही सेक्स में शादी प्रकृति का विरोध करता है। एक ही लिंग के दो व्यक्तियों, चाहे उनकी जाति का, धन, कद अलग हो संभव नहीं होता।

बांझपन को बढ़ावा देता है

बांझपन को बढ़ावा देता है

प्रकृतिक शादियों में महिलाएं बच्चे को जन्म देती है। अगर वो ना चाहे तो कृत्रिम साधनों जैसे कि गर्भनिरोधक का इस्तेमाल कर इसे रेक सकती है, लेकिन समलैंगिक शादियों में दंपत्ति प्रकृतिक तौर पर बांझपन का शिकार होता है।

सेरोगेसी के बाजार को मिलता है बढ़ावा

सेरोगेसी के बाजार को मिलता है बढ़ावा

एक ही लिंग की शादियों में दंपत्ति बच्चा पैदा करने में प्रकृतिक तौर पर असमर्थ होता है। ऐसे में वो सेरोगेसी या किराए की कोख का इस्तेमाल कर अपनी मुराद को पूरा करना का प्रयास करता है। समलैंगिक विवाह के कारण सेरोगेसी के बाजार को बढ़ावा मिल ता है।

भगवान भी होते है नाराज

भगवान भी होते है नाराज

यह सबसे महत्वपूर्ण कारण है। यह शादी भगवान द्वारा स्थापित प्राकृतिक नैतिक आदेश का उल्लंघन करती है और भगवान नाराज होते है।

समाज पर दबाव

समाज पर दबाव

समलैंगिक शादियां समाज पर अपनी स्वीकृति के लिए दबाव डालती है। कानूनी मानय्ता के कारण समाज को जबरन इन शादियों को मंजूर करना ही होता है। हलांकि भारत में अभी इस तरह का कोई कानून नहीं है, लेकिन बहुतों देश ऐसे है जहां समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता मिल चुकी है। उन देशों में समलैंगिक शादियों से पैदा हुए बच्चों को शिक्षा देनी ही होती है। अगर कोई व्यक्ति या अधिकारी इसका विरोध करता है तो उसे विरोध का सामना करना पड़ता है।

आंदोलन का ले रहा है रुप

आंदोलन का ले रहा है रुप

1960 का दशक था जब हमारा समाज सिर्फ स्त्री-पुरुष के बीच के शारीरिक संबंधों को ही स्वीकार करता था, लेकिन 1960 के बाद पहली बार न्यूजीलैंड द्वारा समलैंगिक विवाह को मंजूरी मिलने से वैश्विक स्तर पर इसका चलन बढ़ता चला गया। अब तो इसने आंदोलन का रुप ले दिया है। एक के बाद एक देश को इनके सामने झुकना पड़ रहा है। अमेरिका, ब्रिट्रेन जैसे देशों नेभी समलैंगिकता का स्वीकार कर लिया है।

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English summary
The gay marriages are getting promoted in many countries. Here are 10 reasons why homosexual marriage is harmful and must be Opposed.
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