जब महात्मा गांधी ने पत्नी कस्तूरबा को 4 रुपए के लिए लगाई थी फटकार
नई दिल्ली। महात्मा गांधी अपने आदर्श और उसूल के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने कभी भी अपने आदर्श और उसूल के रास्ते में किसी को आने नहीं दिया। यहां तक कि खुद की पत्नी कस्तूरबा गांधी को भी महात्मा गांधी ने एक बार चार रुपए के लिए फटकार लगा दी थी। दरअसल 1929 में नवजीवन जोकि साप्ताहिक पत्रिका थी उसमे एक लेख छपा था उसमे महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ी बेहद खास बात सामने आई है। लेख का शीर्षक था माई सॉरो, माई शेम यानि मेरी व्यथा, मेरी, शर्मिदगी। इस लेख में महात्मा गांधी ने अहमदाबाद स्थित अपने आश्रम में रहने वालों को फटकार लगाई थी, जिसमे उनकी पत्नी भी शामिल थीं।
आश्रम का नियम अलग था
गांधी जी ने अपने इस लेख में लिखा था कि अगर मैं इस बारे में नहीं लिखता हूं तो यह मेरे कर्तव्यों का हनन होगा। गांधी जी ने लिखा कि एक या दो साल पहले कस्तूरबा को एक या दो सौ रुपए अलग-अलग मौको पर लोगों से तोहफे के रूप में हासिल हुए थे। आश्रम का नियम है कि वह अपने लिए कुछ भी नहीं रख सकती है, यहां तक कि अगर खुद को भी कोई चीज दी गई है तो भी वह उसे रख नहीं सकती थीं। ऐसे में इन पैसों को उन्होंने खुद के पास रखा था वह नियम के खिलाफ था।
पैसो की चाहत बची है
गांधीजी ने बताया कि कस्तूरबा की चूक उस वक्त सामने आई, जब आश्रम में एक चोर चोरी करने के लिए आया। चूंकि यह चोर आश्रम के भीतर आया और कस्तूरबा के भी कमरे भी गया था। हालांकि इसके बाद कस्तूरबा ने अपने किए के लिए मांफी मांगी। लेकिन इस घटना के बाद गांधीजी ने लिखा कि कस्तूरबा का वास्तविक हृदय परिवर्तन अभी नहीं हुआ था, उसके भीतर अभी भी पैसों को लेकर चाहत बची हुई थी।
इसे भी पढ़ें- गांधी के बारे में क्या सोचती है उनकी पांचवीं पीढ़ी?
चार रुपए के लिए फटकार
अपने लेख में गांधीजी ने लिखा कि कुछ दिन पहले कुछ अजनबियों ने कस्तूरबा को चार रुपए दिए थे, इस पैसे को आश्रम को देने की बजाए कस्तूरबा ने अपने पास रख लिया था। इस कृत्य को अपने लेख में चोरी करार देते हुए गांधी जी ने लिखा कि आश्रम के भीतर एक व्यक्ति ने कस्तूरबा को नियम के बारे में बताया, जिसके बाद उन्हें अपने किए के लिए माफी मांगनी पड़ी। शर्मिंदगी से बचने के लिए कस्तूरबा ने पैसे वापस कर दिए और ऐसा दोबारा नहीं करने की बात कही।
शपथ ली
गांधीजी ने कहा कि कस्तूरबा ने ईमानदारी से अपने किए पर माफी मांगी और शपथ ली कि वह अगर वह दोबारा इस तरह का कुछ करती है तो वह आश्रम छोड़ देगी, जिसके बाद आश्रम ने उनकी शपथ को स्वीकार कर लिया था। ऐसा नहीं है कि गांधी जी इस लेख में अपनी पत्नी कस्तूरबा की बुराई ही की थी, बल्कि इसी लेख में उन्होंने अपनी पत्नी की तारीफ करते हुए लिखा था कि मैं कस्तूरबा के जीवन को काफी पवित्र मानता हूं, उसने अपने पत्नी धर्म को निभाने के लिए कई चीजों का त्याग किया, उसने कभी भी मेरे त्याग के रास्ते में बाधा नहीं डाली।
इसे भी पढ़ें- Mahatma Gandhi Jayanti 2018: बापू के ये 10 अनमोल विचार बदल देंगे आपकी सोच