जब अटल बिहारी वाजपेई ने इंदिरा को बताया दुर्गा
नई दिल्ली। आज पूरे देश में लोग सिर्फ एक ही बात पर चर्चा कर रहे हैं कि आखिर क्यों पक्ष औ विपक्ष सदन को चलने नहीं देते। क्यों विपक्ष शोर मचाकर सदन के काम में रुकावट डालता है। लेकिन वर्ष 1971 में एक मौका ऐसा भी आया था जब लोकसभा में पक्ष और विपक्ष दोनों एक मुद्दे पर साथ आए थे।
बहस को छोड़कर इंदिरा की भूमिका पर ध्यान दें
अटल बिहारी वाजपेई ने विपक्ष के नेता के तौर पर एक कदम आगे जाते हुए इंदिरा को 'दुर्गा' करार दिया।
वाजपेई ने यह शब्द इंदिरा के लिए उस समय प्रयोग किए जब भारत को पाकिस्तान पर 1971 की लड़ाई में एक बड़ी विजय हासिल हुई थी। पाक के 90,368 सैनिकों और नागरिकों ने सरेंडर किया था। अटल बिहारी वाजपेई ने सदन में कहा कि जिस तरह से इंदिरा ने इस लड़ाई में अपनी भूमिका अदा की है, वह वाकई काबिल-ए-तारीफ है।
सदन में युद्ध पर बहस चल रही थी और वाजपेई के मुताबिक हमें बहस को छोड़कर इंदिरा की भूमिका पर बात करनी चाहिए जो किसी दुर्गा से कम नहीं थी।
आज के आधुनिक दौर की राजनीति में जहां संकुचिक मानसिकता वाला विपक्ष कभी-कभी ही पक्ष के किसी नेता की अहमियत को पहचान पाता है, वाजपेई ने उस समय यह बात करके शायद एक नई मिसाल कायम की थी।
इंदिरा का साहसिक कदम
ईस्ट पाकिस्तान में रहने वाले बंगाली समुदाय पर पाकिस्तान सेना का जुल्म बढ़ता ही जा रहा था। यहां पर रहने वाले हिंदु अल्पसंख्यकों पर अत्याचार थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
10 मिलियन की हिंदु आबादी का खत्म करने के लिए जनरल टिक्का खान जिसे 'बंगाल का कसाई' का टाइटल तक दे डाला गया था, वह लोगों को मारने पर उतारु था।
बतौर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी लगातार अंतराष्ट्रीय समुदाय से अपील कर रही थीं कि वह इस तरफ ध्यान दे लेकिन हर बार उनकी अपील को अनसुना कर दिया गया।
27 मार्च 1971 को इंदिरा गांधी ने फैसला लिया कि वह ईस्ट पाकिस्तान में चल रहे संघर्ष को खत्म करके रहेंगी। उन्हें उनकी सरकार के बाकी मंत्रियों का भी समर्थन मिला।
मुक्ति वाहिनी गोरिल्ला जिसे ईस्ट पाक के आर्मी ऑफिसर्स और इंडियन इंटेलीजेंस की ओर से ट्रेनिंग दी जा रही थी, उसने पाक को परेशान कर दिया था। इस परेशानी का हल पाक को लड़ाई में ही नजर आया और फिर भारत और पाक के बीच जंग छिड़ गई।