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इतिहास के पन्नों से- जब चचा गालिब से मिले सूफी

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नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) मिर्ज़ा ग़ालिब को दिल्ली वाले चचा गालिब भी कहते हैं। दिल्ली के लाल कुआं इलाके में रहते थे। वहां पर ही यारों की महफिलें सजती थीं।

ग़ालिब से जुड़ी एक रोचक घटना गुजरे दौर के दिल्ली वाले खूब सुनाया करते थे। गालिब के दौर में एक सूफी हुए थे हज़रत गौस था। कहते हैं कि उन्होंने 1860 में ग़ालिब से मुलाक़ात की थी। जिसका पूरा ज़िक्र उनकी किताब " तजकिर-ए-गौसिया" में मिलता है।

आए दिल्ली

हजरत गौस दिल्ली आये। वो उनके दौलतखाने पहंचे। वो ग़ालिब' की एक ग़ज़ल उनकी ज़ुबानी सुनना चाहते थे। चचा ग़ालिब से ग़ज़ल सुनाने की फरमायश की। ग़ालिब ने बड़ी खुश ख़ुशी उनको ग़ज़ल सुनाई - "इश्क मुझको नहीं वहशत ही सही..."

खाइये खाना

हजरत गौस दिल्ली की एक मस्जिद में ठहरे थे। अगले दिन चचा ग़ालिब उनसे मिले गए और उनके लिए खाना ले गए। खाना लगा दिया गया तो ग़ालिब अलग बैठ गए। ग़ालिब ने सूफी साहब से कहा कि आप खाइए।

शराब पीता हूं

हजरत गौस ने उनसे कहा आप भी खाइए तो ग़ालिब ने कहा मैं आपके साथ बैठ कर खाने लायक नहीं हूँ। मै शराब पीता हूँ। जब हजरत गौस ने बहुत इसरार किया तो ग़ालिब ने अपने लिए अलग खाना निकाल लिया और खाना शुरू किया।

लखनऊ वाले मिर्जा

एक दिन लखनऊ से "फ़सान-ए- अजायब" के लेखक मिर्ज़ा रजब अली ‘सुरूर' ग़ालिब से मिलने आये। ‘ग़ालिब' को पता न था की यही मिर्ज़ा रजब अली है। उनकी किताब का ज़िक्र हुआ और ग़ालिब से उनकी राय पूछी गयी तो ग़ालिब ने कहा बहुत बकवास किताब है।

यह सुनते ही मिर्ज़ा रजब अली ‘सुरूर' उठ कर चले गए। लोगों ने ग़ालिब से कहा आपने ग़ज़ब कर दिया ,यही मिर्ज़ा रजब अली ‘सुरूर' थे। ये सुन कर ग़ालिब को बहुत दुःख हुआ और कुछ दिन बाद ग़ालिब सूफी साहब के साथ वहां गए जहाँ मिर्ज़ा रजब अली सुरूर ठहरे थे।

बातचीत में उनकी किताब का ज़िक्र निकाल कर कुछ तारीफ करके अपनी ग़लती की भरपाई की। हजरत गौस ने लिखा है कि ग़ालिब का यह मज़हब था कि किसी का दिल दुखाना बहुत बड़ा गुनाह है। क्या अब दिल्ली वाले चचा गालिब की तरह किसी का दिल तो नहीं दुखाते।

पहले आधुनिक हिन्दुस्तानी

वरिष्ठ लेखक असरग वजाहत कहते हैं कि चचा गालिब को हिदुस्तान का पहला आधुनिक आदमी माना जा सकता हैं। आधुनिकता की तीन मुख्य पहचानें बताई जाती हैं। पहली, स्थापित मान्यताओं पर सवाल उठाना।

दूसरी, तर्क और विवेक के आधार पर विशलेषण करना। तीसरी, मनुष्य और मनुष्य के बीच किसी भी आधार पर अंतर न करना और मानवमात्र से प्रेम करना। इन कसौटियों में गालिब खरे उतरते हैं।

Comments
English summary
When a Sufi saint visited the house of Mirza Ghalib. Ghalib used to live in Lal Kuan area of Delhi. He was a very frank and bold person. Further, Ghalib used to drink liquor too.
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