क्या है 'नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस' ड्राफ्ट, जानिए खास बातें....
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नई दिल्ली।असम में आज नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) का अंतिम मसौदा जारी कर दिया गया है, जिसके मुताबिक 2 करोड़ 89 लाख 83 हजार 677 लोगों को वैध नागरिक माना गया है। वैध नागरिकता के लिए 3,29,91,384 लोगों ने आवेदन किया था, जिसमें 40,07,707 लोगों को अवैध माना गया, इस तरह से 40 लाख से ज्यादा लोगों को अब बेघर होना पड़ेगा।
अब सवाल ये उठता है कि NRC ड्राफ्ट से कैसे किसी की पहचान साबित होती है चलिए इस बारे में विस्तार से जानते हैं...
क्या है राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी)
1955 के सिटिजनशिप एक्ट के तहत केंद्र सरकार पर देश में हर परिवार और व्यक्ति की जानकारी जुटाने की जिम्मेदारी है। सिटिजनशिप एक्ट 1955 के सेक्शन 14ए में 2004 में संशोधन किया गया था, जिसके तहत हर नागरिक के लिए अपने आप को नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस यानी एनआरसी में रजिस्टर्ड कराना अनिवार्य बनाया गया था। यह भी पढ़ें: सुकन्या समृद्धि योजना में निवेश से पहले जरूर जान लें ये 10 बड़ी बातें
खास बात असम के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों हैं NRC ड्राफ्ट?
असम और मेघालय को छोड़कर पूरे देश के लिए पॉपुलेशन रजिस्टर को 2015-16 में अपडेट किया गया था, इसके लिए आंकड़े 2011 की जनगणना के साथ ही जुटाए गए थे।
असम के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों हैं NRC ड्राफ्ट?
दरअसल असम में अवैध रूप से रह रहे लोग को रोकने के लिए सरकार ने नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) अभियान चलाया है, दुनिया के सबसे बड़े अभियानों में गिने जाने वाला यह कार्यक्रम डिटेक्ट, डिलीट और डिपोर्ट आधार पर है, जिसके तहत इंसान भारत का है या नहीं इसका पता लगाया जाएगा और जो लोग इसमें नहीं आएंगे उनकी पहचान पता करके उनके देश भेजा जाएगा।
50 लाख बांग्लादेशी?
एक आंकड़े के मुताबिक असम में करीब 50 लाख बांग्लादेशी गैर-कानूनी तरीके से रह रहे हैं। 1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान वहां से पलायन कर रहे लोग भारी संख्या में भारत भाग आए इस कारण स्थानीय लोगों और घुसपैठियों में कई बार हिंसक वारदातें हुई हैं। 1980 के दशक से ही यहां घुसपैठियों को वापस भेजने के आंदोलन हो रहे हैं। गौरतलब है कि घुसपैठियों को बाहर निकालने का आंदोलन 1979 में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन और असम गण परिषद ने शुरू किया था।
समझौता हो गया था फेल...
ये आंदोलन हिंसक भी रहा, जिसमें कई लोगों की जान भी गई,हिंसा को रोकने 1985 में उस वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और स्टूडेंट यूनियन और असम गण परिषद के नेताओं में मुलाकात हुई, तय हुआ कि 1951-71 से बीच आए लोगों को नागरिकता दी जाएगी और 1971 के बाद आए लोगों को वापस भेजा जाएगा लेकिन ये समझौता फेल हो गया है। बाद में 2005 में राज्य और केंद्र सरकार में एनआरसी लिस्ट अपडेट करने के लिए समझौता किया गया लेकिन इसमें तेजी ना होने के कारण ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।
नागरिकता साबित करने के 6.5 करोड़ दस्तावेज भेजे गए...
असम में बीजेपी की सरकार आने पर इस अभियान पर तेजी आई और साल 2014 के बाद राज्य के 3.29 करोड़ लोगों ने नागरिकता साबित करने के 6.5 करोड़ दस्तावेज भेजे हैं। नागरिकता साबित करने के लिए लोगों से 14 तरह के प्रमाणपत्र यह साबित करने के लिए लगवाए गए कि उनका परिवार 1971 से पहले राज्य का मूल निवासी है या नहीं। इसका एक ड्राफ्ट जनवरी में जारी हो चुका है।