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महाराणा प्रताप ने घोड़ों को बनाया हाथी तो छत्रपति शिवाजी ने बांधी बैलों की सींग पर मशाल

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बेंगलुरु। कहते हैं कि जब युद्ध के मैदान में कोई योद्धा उतरता है तो उसके पास पूरी रणनीति होती है। आप सभी ने कभी कहानियों तो कभी किताबों में उन रणनीतियों के बारे में सुना होगा जिनका प्रयोग सदियों से भारत के योद्धा मैदान पर दुश्‍मन के छक्‍के छुड़ाने के लिए करते थे।

चाहे वह पृथ्‍वीराज चौहान हों या फिर महाराणा प्रताप या फिर हमारी भारतीय सेना हो, रणनीति उनके युद्धक्षेत्र का अहम हिस्‍सा थीं।

आइए आज हम आपको उन रणनीतियों के बारे में बताते हैं जो सदियों से भारत के युद्ध इतिहास का हिस्‍सा रहीं और जिन्‍होंने कई गौरवशाली गाथाओं को खुद में समेटा। ये सभी कहानियां हमनें कोरा.कॉम से ली हैं जहां पर अलग-अलग पाठकों ने इनका जिक्र किया है।

हाथी के भेष में घोड़े

हाथी के भेष में घोड़े

मेवाड़ के राजा अक्‍सर दुश्‍मनों को घोड़ों के मुंह पर हाथी के बच्‍चे का मुखौटा लगाकर घोड़ों को हाथी के बच्‍चे की तरह से तैयार कर देते थे। इससे दुश्‍मन के हाथी को लगता था कि सामने हाथी का बच्‍चा है और वह दरअसल घोड़े पर हमला ही नहीं करता था। इस रणनीति के प्रयोग का उल्‍लेख हल्‍दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की ओर से किए जाने का उल्‍लेख मिलता है।

किलों में होते थे छोटे दरवाजे

किलों में होते थे छोटे दरवाजे

राजस्‍थान में आपको कई किले ऐसे मिलेंगे जिनमें हॉल या दूसरे कमरे की ओर खुलने वाले दरवाजे काफी छोटे होते थे। शुरुआत में इस प्रयोग को गलती करार दिया गया लेकिन बाद में यह सफलता की निशानी बन गए। अक्‍सर दुश्‍मन सेना के सैनिकों का सिर इसमें फंस जाता और फिर दूसरी सेना के सैनिक उनका सिर कलम कर देते थे।

कंफ्यूज करने को बने साउथ इंडियन

कंफ्यूज करने को बने साउथ इंडियन

वर्ष 1971 में पाकिस्‍तान के साथ जब लड़ाई छिड़ी तो भारतीय सेना के दक्षिण भारतीय सिग्‍नल स्‍टाफ को डिप्‍लॉय किया गया। इसका मकसद पाक को कंफ्यूज करना था। पाक के पास उस समय भारत की तुलना में बेहतर क्‍वालिटी के कोड ब्रेक करने वाले उपकरण थे। दक्षिण भारतीय सैनिका अपनी भाषा में बात करते, पाक की सेना को समझ नहीं आता और आसानी से सेना को मैसेज कम्‍यूनिकेट हो जाता।

रॉकेट साइंस में आगे हिंदुस्‍तानी

रॉकेट साइंस में आगे हिंदुस्‍तानी

मैसूर देश का वह पहला राज्‍य था जहां पर लोहे के कवच में सेना के लिए रॉकेट का प्रयोग हुआ। 18वीं सदी में मैसूर के शासक हैदर अली और फिर उनके बेटे टीपू सुल्‍तान ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ इसका प्रयोग किया। इसका उल्‍लेख टीपू सुल्‍तान की किताब फतुल मुजाहिद्दीन में मिलता है।

रूस की भाषा में बोलने वाले नौसैनिक

रूस की भाषा में बोलने वाले नौसैनिक

1971 की लड़ाई के समय पाकिस्‍तान की इंटेलीजेंस को बेवकूफ बनाने के लिए ऑपरेशन ट्राइडेंट और फिर ऑपरेश्‍सन पाइथन के दौरान आईएनएस निर्घट, आईएनएस निपट और आईएनएस वीर पर तैनात नौसैनिकों ने रशियन भाषा का प्रयोग किया था। पाक की इंटेलीजेंस को लगता था कि अरब सागर पर भारतीय नौसेना नहीं बल्कि रूस की नौसेना है।

बैल की सींग बनी हथियार

बैल की सींग बनी हथियार

छत्रपति शिवाजी ने बैलों की सींग पर मशाल बांधी और फिर बड़ी संख्‍या में इन बैलों को रात के अंधेरे में रवाना किया गया। दूर से देखने पर यह सेना की बड़ी टुकड़ी की तरह प्रतीत होते थे। शिवाजी ने इस रणनीति का प्रयोग औरंगजेब के चाचा शाहिस्‍त खान की सेना को पराजित करने के लिए किया था।

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English summary
War strategies used by Indians you do know about. These strategies were the part of many fighters of India before independence and even after getting the independence.
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