आनंद कुमार: पैसे नहीं ख्वाबों की ताकत से चलाते हैं 'सुपर 30' कोचिंग
बेंगलुरू। आनंद कुमार देश के उस शिक्षक का नाम है, जिसने ये साबित किया है कि अर्जुन जैसे योद्दा तब पैदा होते हैं, जब उनके पास द्रोणाचार्य जैसा गुरू हो। लोग अर्जुन तो बनना चाहते हैं लेकिन द्रोणाचार्य नहीं। आंनद कुमार का सुपर 30 कोचिंग संस्थान उनके त्याग, मेहनत और शिक्षा के प्रति मोहब्बत का जीता-जागता उदाहरण है, जिसकी जितनी तारीफ की जाए कम है।
बच्चों के लिए तपस्या होती है यहां
इस मंदिर में केवल पढ़ाई नहीं होती बल्कि उन बच्चों के लिए तपस्या होती है, जो कि आर्थिक अभावों की वजह से, मंजिल तक नहीं पहुंच पाते हैं। इस कोचिंग के संस्थापक आनंद कुमार का जन्म पटना में हुआ और इनके पिता डाक विभाग में चिठ्ठी छांटने का काम करते थे। बंधी हुई आमदनी की वजह से चलने वाले घऱ में जन्मे इस बच्चे को बहुत जल्द आर्थिक अभाव और महंगी पढ़ाई का मोल समझ आ गया था।
प्रण किया कि वो देश के गरीब बच्चों का भविष्य संवारेंगे
सरकारी स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने वाले आनंद कुमार को शुरू से ही गणित में काफी रूचि थी। उन्होंने भी वैज्ञानिक और इंजीनियर बनने का सपना देखा था, ग्रेजुएशन के दौरान उन्होंने नंबर थ्योरी में पेपर सब्मिट किए जो मैथेमेटिकल स्पेक्ट्रम और मैथेमेटिकल गैजेट में पब्लिश हुए। इसके बाद उन्हें क्रैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए बुलावा भी आया, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उनका सपना पूरा नहीं हो सका, बस इसी दुख को उन्होंने अपनी ताकत बनाकर प्रण किया कि वो देश के गरीब बच्चों का भविष्य संवारेंगे।
पापड़ बेचने पड़े
लेकिन इसी बीच 23 अगस्त, 1994 को हार्ट अटैक के चलते पिता का निधन हो गया, उनके पिता डाक विभाग में थे, इसलिए उन्हें अपने पिता की जगह डाक विभाग में नौकरी मिल रही थी लेकिन उन्होंने इस नौकरी को ना करने का फैसला किया। पिता के निधन के बाद पूरा घर गरीबी की चपेट में आ गया, घर चलाने के लिए आनंद की मां ने घर में पापड़ बनाना शुरू किया जिसे कि आनंद और उनके भाई घर-घर बांटा करते थे।
'रामानुजम स्कूल ऑफ मैथेमेटिक्स'
इसके कुछ समय बाद हालात को सुधारने के लिए आनंद ने अपने ही घर में 'रामानुजम स्कूल ऑफ मैथेमेटिक्स' नाम से कोचिंग खोली, जिसमें शुरू-शुरू में दो विद्यार्थी आए, जिनसे आनंद ने 500 रूपए फीस ली थी, इसी दौरान उनके पास एक ऐसा छात्र आया, जिसने कहा कि वह ट्यूशन तो पढ़ना चाहता है लेकिन उसके पास पैसे नहीं हैं, उस छात्र में आनंद को अपनी छवि दिखी और उसके बाद से वो उसे पढ़ाने में जुट गए, दिन-रात की मेहनत के चलते वो छात्र आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में सफल हुआ।
सुपर 30 का ख्याल
बस यहीं से उनके दिमाग में सुपर 30 का ख्याल आया और उन्होंने 2002 में सुपर 30 की स्थापना की, जिसमें उन गरीब बच्चों को पढ़ाया जाता है, जो कि आर्थिक तंगी की वजह से आईआईटी जैसे संस्थान में जाने की तैयारी नहीं कर पाते हैं। संस्थान का खर्चा आनंद खुद अपने पैसों से चलाते हैं और इस बारे में वह लिखते हैं कि सुपर 30 को बड़ा करने के लिए पैसे नहीं चाहिए, हां आपके सपने जरूर चाहिए।
पूरा भारत दिल से सलाम करता है
आनंद की सुपर-30 में अब तक 330 बच्चों ने दाखिला लिया है, जिसमें से 281 छात्र आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में पास हुए हैं, शेष इंजीनियरिंग संस्थान में पहुंचे हैं, डिस्कवरी चैनल ने सुपर 30 पर एक घंटे का वृत्तचित्र बनाया, जबकि 'टाइम्स' पत्रिका ने सुपर-30 को एशिया का सबसे बेहतर स्कूल कहा है। इसके अलावा सुपर 30 पर कई वृत्तचित्र और फिल्म बन चुकी हैं, आनंद को देश और विदेश में कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। आनंद कुमार आज देश के रीयल हीरो बन चुके हैं, जिन्हें पूरा भारत दिल से सलाम करता है।