दो सूटकेस और डा. एपीजे अब्दुल कलाम
[अजय मोहन] जब डा. एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति चुना गया, तो उनके स्वागत में राष्ट्रपति भवन को जमकर सजाया गया। तमाम तैयारियां यह सोचकर की गईं कि नये राष्ट्रपति का सामान ठीक ढंग से रखा जायेगा। कोई भी आम आदमी देखता तो यही कहता- देश के राष्ट्रपति आ रहे हैं, दो-दो ट्रक भरकर सामान तो आयेगा ही, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि वे उस दिन महज दो सूटकेस लेकर पहुंचे।
जी हां तमिलनाडु के रामेश्वरम में गुरूवार को जब डा. कलाम को सुपुर्द-ए-खाक कर अंतिम विदाई दी गई, तब उनके परिजनों ने पीछे मुड़ कर देखा तो कलाम साहब के नाम पर महज दो सूटकेस मिले। जी हां सिर्फ दो सूटकेस! कलाम साहब के पास संपत्ति के नाम पर सिर्फ यही था।
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वैज्ञानिक से लेकर राष्ट्रपति तक का सफर तय करने के बाद भी कलाम ने एक भी संपत्ति अपने नाम पर नहीं जोड़ी। जो था वो सब दान कर दिया। जिंदगी भर कलाम साहब ने जहां भी नौकरी की, वहीं के गेस्ट-हाउस या फिर सरकारी आवासों में वे रहे।
तमिलनाडु का ही दूसरा उदाहरण
हम यहां तुलना नहीं कर रहे हैं, लेकिन ऐसे यथार्थ को नकारा भी नहीं जा सकता है कि जिस तमिलनाडु के एक व्यक्ति ने पूरी जिंदगी दो सूटकेस में काट दी, उसी तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयाललिता जब कहीं जाती हैं, तो उनके साथ कम से कम दो दर्जन सूटकेस चलते हैं। 10 सूटकेस साड़ियों से भरे तो दो सूटकेस सिर्फ चप्पलों से भरे।
क्या कभी उनके मन में कलाम जैसे लोगों के नाम नहीं आये होंगे?
हम यह नहीं कह रहे कि जयाललिता का तमिलनाडु के विकास में कोई योगदान नहीं है, लेकिन सवाल जरूर उठा रहे हैं, कि आय से अधिक संपत्ति एकत्र करते वक्त क्या कभी उनके मन में कलाम जैसे लोगों के नाम नहीं आये होंगे?
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वैसे इस बहस का कोई अंत नहीं, क्योंकि कलाम उस शख्स का नाम है, जिनके आगे नरेंद्र मोदी भी झुकते हैं। कलाम उस शख्स का नाम है, जिसके पीछे 2 साल का बच्चा भी दौड़ा चला जाता था, कलाम वो शख्स थे, जिनके जीवन का हर पल एक कहानी है, जिनके जीवन के हर पल में एक प्रेरणा छिपी हुई है।