जानें सियाचिन में क्यों शहीद हुए जवान, क्या हैं चुनौतियां?
नयी दिल्ली। 13 अप्रैल 1984 को कड़े संघर्ष के बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को हराकर उत्तरी कश्मीर में सियाचिन ग्लेशियर पर कब्ज़ा कर लिया था। उसके बाद से इस ग्लेशियर पर चौकसी रखने के लिए भारतीय सेना कड़ी चुनौतियों का सामना करती हैं। इन्हीं चुनौतियों की वजह से अब तक तकरीबन हजार जवानों ने हमने खो दिए। हाल ही में सियाचिन ग्लेशियर स्थित एक सैन्य चौकी के हिमस्खलन की चपेट में आने से 10 सैनिक शहीद हो गए।
पूरा देश इस हादसे में अपने जांबाजों को खोने से दुखी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर किन वजहों से हमने अपने पराक्रमी जवानों को खो दिया? क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों सियाचिन ग्लेशियर पर हमारे जवान हर पल जोखिम का सामना करते हैं? अगर आप नहीं जानते हैं तो जरा इन स्लाइड्स को देखिए आपको खुद पता चल जाएगा कि आखिर किन विषम परिस्थियों में हमारे जवान सियाचिन ग्लेशियर पर तैनात रहते हैं...
सबसे ऊंचा जंगी मैदान
जमीन से 6700 मीटर ऊंचाई पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर पर लगातार निगरानी रखने के लिए हमारे जवान विकट परिस्थियों का सामना करते हैं। आपको बता दें कि इतनी ऊंचाई पर सांस लेना तक मुश्किल होता है।
दुश्मनों का दवाब
पाकिस्तान के साथ लड़ाई के बाद हमने 1984 में सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा किया था। इसके बाद से जहां लगातार निगरानी रखी जा रही है। दोनों ही देश परमाणु शक्ति संपन्न हैं। ऐसे में दोनों देशों ने अपनी-अपनी सेनाएं यहां तैनात करते हैं।
तापमान के साथ लड़ाई
हमारे जबांज सिपाही सियाचिन पर -70 डिग्री की ठंड में भी अपने देश के लिए के 24 घंटों मुश्तैदी से डटे रहते हैं। यहां भारत और पाकिस्तान दोनों ओर के करीब 10000 से 20000 तक सैनिक तैनात है।
160 किमी/घंटे की रफ्तार से ठंडी हवाएं
सिचाचिन क्षेत्र में बर्फबारी से ज्यादा खतरनाक यहां 160 किमी/घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवाएं हैं। ये हवाएं अचानक चलती हैं। बर्फीला तूफान भी अचानक आता है। अब तक सबसे ज्यादा मौते इसी वजह से हुई हैं।
बड़े दर्रे
सियाचिन ग्लेशियर पर तैनात जवानों के साथ दर्रों और दरारों में गिरने की घटना सामने आईं है। बर्फबारी की वजह से ये दर्रे ढ़क जाते है। जिसमें गिरने की वजह से जवान शहीद हो जाते हैं।
हेलीकॉप्टर का उड़ना भी नामुमकिन
आपको बता दें कि सियाचिन जैसे इलाकों में हैलिकॉप्टर भी उड़ान नहीं भर सकते। इसी वजह से यहां मेडिकल इमरजेंसी के वक्त भी जवानों तक मदद नहीं पहुंचाई जा सकती।
खाने की दिक्कत
सियाचिन में तैनात सैनिकों के लिए हेलीकॉप्टर के माध्यम से साल भर का रसद कुछ महीनों में ही जुटा लिया जाता है। उसी राशन से जबांजों को पूरा साल निकालना होता है।
भारी-भरकम जूते
आपको याद होगा कि हाल ही में सियाचिन दौरे पर गए रक्षामंत्री ने जवानों ने जूतों के सिलसिले में शिकायत की थी। आपको बता दें कि यहां तैनात जवानों को बर्फ से बचने केलिए 3 किलो के वजन वाले जूते पहनते हैं।
बोलना तक मुश्किल
इतनी ऊंचाई पर ठंडी जमा देने वाली हवाओं में सैनिकों की जुबान भी नहीं खुल पाती। वहां तैनात जवानों को महीनों तक बिना टूथपेस्ट किए रहना पड़ता है, क्योंकि पेस्ट जम जाता है। पीने का पानी बंकर में लगातार गरम करते रहना पड़ता है।
सेब बन जाता है बर्फ
सियाचिन में जवानों को खाने की बेहद दिक्कत होती है। वहां संतरे और सेब क्रिकेट के बॉल जितने सख्त हो जाते हैं। सैनिकों को ज्यादातर खिचड़ी खाना पड़ता है।