'रील' नहीं सेनाओं के इन 'रियल' हीरोज को बनाइए अपना आदर्श
बेंगलुरु। पर्दे पर अगर आप हीरो के एक्शन और उसके हाथों विलेन को पीटते देखकर उस 'रील हीरो' के लिए तालियां बजाते हैं तो फिर अब समय आ गया है कि आपको कुछ 'रीयल हीरोज' के बारे में बताया जाए।
भारत हमेशा से ही बहादुर और सपूतों की धरती के तौर पर मशहूर रहा है। कहा जाता है कि इस धरती पर कभी भी बहादुरी की मिसाल में कोई कमी नहीं आई, भले ही हालात जैसे रहे हो।
आज हम आपको ऐसे ही बहादुरों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने देशसेवा के लिए अपने प्राण युद्ध के मैदान में त्याग दिए। ये ऐसे लोग हैं जिनके बारे में आपको अक्सर सुनने को तो मिलता है लेकिन आप थोड़ी ही देर बात उन्हें भूल जाते हैं।
आगे की स्लाइड्स पर क्लिक करिए और जानिए देश के ऐसे ही वीर सपूतों के बारे में जिन्होंने न सिर्फ अपने देश की धरती पर बल्कि दूसरे देशों में भी तिरंगे का गौरव बढ़ाया है।
71 की जंग में हो गए थे शहीद
सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल को मरणोपरांत परमवीर चक्र सम्मान से सम्मानित किया गया था। 71 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई जंग के दौरान शहीद हो गए थे। पाक की ओर से हमलों के बाद उन्हें टैंक छोड़ने का ऑर्डर मिला। लेकिन उनका जवाब था,' मैं अपना टैंक नहीं छोड़ूंगा। मेरी बंदूक अभी भी काम कर रही है और मैं दुश्मन को मार कर ही दम लूंगा।' खेत्रपाल के नाम पर आईएमए में खेत्रपाल ऑडीटोरियम है।
71 के हीरो
कैप्टन महेंद्र नाथ मुल्ला जो कि 71 की जंग में आईएनएस खुकरी के कैप्टन थे उस समय शहीद हो गए थे जब दुश्मन की पनडुब्बी ने इस वॉरशिप पर हमला किया। मुल्ला ने अपनी लाइफसेविंग जैकेट एक सेलर को दे दी। हमले के बाद उनकी पहली कोशिश थी कि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों की जिंदगियों को बचा सके।
26/11 के हीरो
26/11 के दौरान मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ताज महल होटल में एनएसजी के ऑपरेशन ब्लैक टॉरनेडो का हिस्सा थे। आतंकियों की गोलियों से मेजर बुरी तरह से जख्मी हो गए थे। इस ऑपरेशन के दौरान एक कमांडो बुरी तरह से घायल हो गया था। मेजर जब उसे सुरक्षित बाहर निकालने की कोशिश कर रहे थे तभी आतंकियों की गोलियां उन्हें लग गई थीं। उनके आखिरी शब्द थे, 'ऊपर मत आओ, मैं आंतकियों से निपट लूंगा।'
सेकेंड वर्ल्ड वॉर का हिस्सा
द्वितीय विश्व युद्ध में नंद सिंह बर्मा में एक संकरे पुल पर अपने ट्रूप को लीड कर रहे थे। तभी वह बुरी तरह से घायल हो गए लेकिन इसके बाद भी उन्होंने कई इलाकों पर कब्जा किया। वर्ष 1947 में आजादी के समय उन्होंने पाक खिलाफ युद्ध में हिस्सा लिया। उरी सेक्टर में हमले में वह बुरी तरह घायल हो गए। उनका शरीर पाक सैनिक ले गए और उसे कूड़े में फेंक दिया था।
कारगिल का योद्धा
हिमाचल पालमपुर के कैप्टन सौरभ कालिया को भला कोई कैसे भूल सकता है। पाकिस्तान ने कैप्टन और उनके पांच साथी जवानों को बंदी बना लिया था और फिर जब उनका मृत शरीर बर्फ में दबा हुआ मिला तो दर्द के निशान साफ नजर आ रहे थे। आज तक उनका परिवार कैप्टन कालिया और उनके पांच साथियों के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ रहा है।
'ये दिल मांगे मोर'
कैप्टन विक्रम बत्रा भी कारगिल वॉर के हीरो थे। कैप्टन बत्रा ने 17,000 फीट की ऊंचाई पर मौजूद प्वाइंट 5140 को दुश्मन से छुड़ाया था। जिस समय वह प्वाइंट 5140 को कैप्चर कर रहे थे दुश्मन की ओर से हुए हमले ने उन्हें बुरी तरह से घायल कर दिया था।
65 और 71 की जंग में दुश्मन को कर दिया था बर्बाद
महावीर चक्र विजेता अरुण कुमार वैद्य 1965 और फिर 71 की जंग के हीरो रहे हैं। पाक के खिलाफ चांदीविंदा की लड़ाई में जब दुश्मन की ऑर्मर्ड डिविजन को नष्ट किया गया था तो वैद्य उसका हिस्सा थे। इसके बाद वह 1984 में वह ऑपरेशन ब्लूस्टार का हिस्सा बने थे। उन्हें सरकार की ओर से दो बार महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
62 के युद्ध के हीरो
वर्ष 1962 में चीन के साथ हुई लड़ाई में जब स्थितियां भारत के विपरीत हो गई और कई सैनिक शहीद हो गए तो उन्हें जगह छोड़ने का आदेश दिया गया। राइफलमैन जसवंत सिंह ने तीन दिनों चीन के सैनिक को मूर्ख बनाया। आखिर में चीनी सैनिकों उनका पता लग गया और वह राइफलमैन जसवंत सिंह का सिर काटकर अपने साथ ले गए।
26 वर्ष की उम्र में हुए शहीद
जब बेल्जियम ने कांगो को छोड़ दिया तो यूनाइटेड नेशंस ने यहां पर जारी सिविल वॉर को रोकने के लिए पहल की। गुरबचन सिंह सलारिया यूएन के एक समूह का हिस्सा थे। उन्होंने एक खास मिशन में हिस्सा लिया। दुश्मनों से लोहा लेते समय सलारिया शहीद हो गए। उनकी उम्र सिर्फ 26 वर्ष थी जब उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। उनके प्रयासों को सरकार ने परमवीर चक्र देकर सम्मानित किया।
असली 'सनी देओल'
बॉर्डर फिल्म में जिस लौंगेवाला की लड़ाई में सनी देओल को मेजर कुलदीप सिंह के रोल में दिखाया गया है वह असली है। 4-5 दिसंबर की रात को हुई इस लड़ाई में ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी सिर्फ 124 सैनिकों और पंजाब रेजीमेंट के 23 अफसरों के साथ पाकिस्तान की सेना का मुकाबला कर रहे थे। उनकी बहादुरी की वजह से उन्हें सरकार ने महावीर चक्र से सम्मानित किया।
कारगिल वॉर का एक और हीरो
17 जाट रेजीमेंट के कैप्टन अनुज नायर पिंपल टू को कैप्चर करने के लिए अपने ट्रूप के साथ मौजूद थे। बिना किसी सपोर्ट के कैप्टन अनुज आगे बढ़ रहे थे। लेकिन तभी पाक सेना की ओर से आए रॉकेट ने उन्हें हिट कर दिया। बुरी तरह से घायल होने के बावजूद उन्होंने इस अहम प्वाइंट से दुश्मन को बाहर खदेड़ दिया था।