क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

... ऐसे तो हो जाएगा गैंडों का 'The end'!

Google Oneindia News

rhyno
प्रकृति ने उस बेजुबान की नाक पर सींग लगाया था, पर इंसानी दुनिया तो उसकी नांक में दम करती चली आई। इधर आधुनिकता की पौध फल-फूल रही थी तो विकास के नाम पर पर्यावरण की बगिया रोंदी जा रही थी। भारी शरीर, धीमी चाल और ढेर भर भोजन खाने वाला एक जीव कहने को तो कुदरत का ही एक हिस्सा है, पर हकीकत में उसकी हालत का अंदाज़ा ना तो सम्बंधित विभागों को है और ना ही समाज को। चिडि़याघरों की नुमाइश में उसे देखकर कम उम्र के बच्चे खिलखिलाते हैं, युवा तसवीरें खींचते हैं और बड़े-बुजुर्ग मुस्कराते-टहलते निकल जाते हैं।

छोटी-छोटी आंखें, चमड़े जैसी चमड़ी लिए इस जीव को हम गैंडा कहते है। जंगलों में प्राॅपर्टी का पतझड़ और मैदानों में मकानों का मज़मा। ऐसे में शांत, लाचार और बेबस क्यों न रहे यह प्रजाति ..? दुनिया भर में गैंडों की कुल पांच प्रजातियां ही बचीं हैं, जो किसी ज़माने में लगभग 30 हुआ करतीं थीं। हरियाली में जीने और हरियाली ही खाने वाला यह जीव आज बदकिस्मती से बदहाली में जी रहा है।

पढ़ें- इस रानी को कुचल-मसल रहे हैं दुशासन

इनके सुनने की शक्ति बेहतरीन पर नज़र थोड़ी धुंधली होती है। कीचड़ में लोटने के शौकीन गैंडे जल्द किसी जीव को नुकसान नहीं पहुंचाते। पांच मुख्य प्रजातियां एशियन, व्हाइट, ब्लैक, जावन, सुमात्रन ही अब गैंडों की पहचान रह गईं हैं। इंसानी हत्यारे भी अवैध शिकार कर इन विशालकाय जीवों की जि़ंदगियां निगलते गए।

प्रशासन की कागज़ी कार्रवाई में ना तो इनकी सुरक्षा का बंदोबस्त था और ना ही देखभाल की जि़म्मेदारियां। धरती पर हाथी के बाद सबसे ज़्यादा वजनी यह स्तनधारी जीव सम्बंधित विभागों पर बोझ बनता गया। इनकी मौत पर अगले दिन के अखबारों में सिंगल काॅलम खबरें तो छपीं, पर इनके विकास के लिए लाई गई एक भी योजना, कभी हैडलाइन के तौर पर पढ़ने को नहीं मिली।

इनकी नांक का सींग शिकारियों को रईस बनाता रहा। वन्य कर्मचारियों और हंटरों की मिलीभगत ने कुदरत और कायनात को यहां जमकर चूना लगाया। कुछ देशों ने इनकी सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त भी किए। एक निश्चित उम्रसीमा के बाद वहां के वन्य-विभागों ने गैंडे के सींग हटा दिए, जिससे ना सिर्फ इनकी उम्र बढ़ी, बल्कि अवैध शिकार पर भी शिकंज़ा कसा। एक सर्वे में चैंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है कि हर 21 घंटे में एक गैंडा अपनी जिंदगी खो रहा है। मौत का सिलसिला यदि इसी तरह चलता रहा, तो यह खूबसूरत प्रजाति जल्द ही किस्से, कहानियों व तस्वीरों में ही कैद रह जाएगी।

गैंडे की हालत सोने के अण्डे देने वाली उस मुर्गी की तरह हो चुकी है, जिसके सींग नोंचकर लालच के पुजारी एक झटके में रईसी पा लेना चाहते हैं। तथ्य इशारा करते हैं कि इन सींगों का प्रयोग वियतनाम व चीन जैसे देशों में दवाएं बनाने के लिए हो रहा है। हालांकि वैज्ञानिक शोध में यह साफ हो चुका है कि इन सींगों का मेडिकल स्कोप ना के बराबर है, फिर भी जिस्म की कालाबाज़ारी में दौलत की दुकानें धड़ल्ले से दौड़ रही हैं। एक सींग का वज़न लगभग 10 किलो व कीमत 1,40,000 बताई जाती है। यही कीमत इस बेशकीमती प्रजाति के लिए काल बन गई है। शोहरत की आड़ में संवेदना की रोशनी दिखाई नहीं देती, शायद यही वजह है कि कल तक जिस प्रजाति से जंगल गुलज़ार हआ करते थे, आज उनकी संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है।

सिर्फ गैंडे ही नहीं, प्रकृति के कई बेजुबान जीव इस इंसानी लंका में विभीषण की तरह उपेक्षित हो रहे हैं। मासूम जीवों के आशियानों की जगह अपार्टमेंट, सुपर स्पेशियलिटी इमारतों ने ले ली है। इनकी देखभाल की जि़म्मेदारी औपचारिकता की नींद में डूबे विभागों पर है, जो तनख्वाह की गरज़ पर इन्हें दो वक्त का खाना-खुराक मुहैया करवा देते हैं। जागरुकता के नाम पर कुछेक महीनों में इनके पोस्टर-बैनर टंग जाते हैं, जो या तो किसी कंपनी की सीएसआर एक्टििविटी का हिस्सा होते हैं या फिर स्पांसर्ड कैंपेन का ब्राण्ड आइकन।

समाज और सियासत का सुरक्षा घेरा तमाम जीवों समेत गैंडों को ना तो सुरक्षित रख पाया और ना ही खुशहाल। कुदरत की विरासत को विकास का नाम देकर हमने भले ही बंगले खड़े कर लिए हों, पर बगल में बेजुबानों की फौज भी जमा हो गई है, जो हमसे हमारी तरक्की पर जवाब मांग रही है और अपनी बदहाली पर सवाल पूछ रही है।

Comments
English summary
There are a very few number of rhyno. We and government did not care of this environmental asset
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X