Nathuram Godse Death Anniversary: अब तक क्यों सुरक्षित रखी गईं है गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की अस्थियां?
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नई दिल्ली। 'नाथूराम गोड़से' की पहचान केवल यही है कि उन्होंने देश के राष्टपिता महात्मा गांधी की हत्या की थी, इसके अलावा उनके बारे में किसी को ज्यादा कुछ पता नहीं हैं। आज ही के दिन नाथूराम गोडसे को फांसी पर लटकाया गया था, अदालत में चले ट्रायल के दौरान नाथूराम ने गांधी की हत्या की बात स्वीकार करते हुए कहा था कि गांधी जी ने देश की जो सेवा की है, मैं उसका आदर करता हूं इसलिए ही उन पर गोली चलाने से पूर्व मैं उनके सम्मान में नतमस्तक हुआ था लेकिन जनता की आंखों में धूल झोंककर मातृभूमि के टुकड़े करने का अधिकार किसी को नहीं है, और इस बात की सजा गांधी को कोई नहीं देता इसलिए मैंने उन्हें मार दिया।
गोडसे ने मौत से पहले 'नमस्ते सदा वत्सले' का उच्चारण किया था...
हालांकि उनके इस तर्क पर ना तो किसी ने कोई टिप्पणी की और ना ही उनके विचारों को समर्थन दिया, यहां तक कि उनके घरवालों ने भी उन्हें अपराधी कहते हुए उनका साथ नहीं दिया था, उन्हें हत्या करने के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई थी और उन्हें 15 नवंबर 1949 को फांसी के तख्त पर लटका दिया गया था, कहा जाता है कि जिस वक्त वो फांसी के लिए जा रहे थे उस वक्त उनके एक हाथ में भगवा झंडा और एक हाथ में अखंड भारत का नक्शा था और उन्होंने मौत के पहले 'नमस्ते सदा वत्सले' का उच्चारण किया था।
नाथूराम गोडसे की ये थी अंतिम इच्छा
और अपनी अंतिम इच्छा उन्होंने एक कागज पर लिखकर दी थी, जिसमें उन्होंने लिखा था कि उनके शरीर के कुछ हिस्से को संभाल कर रखा जाए और जब सिंधु नदी अंखड भारत में फिर से समाहित हो जाए तब उनकी अस्थियां उसमें प्रवाहित की जाए, चाहें इसमे कितना ही लंबा वक्त क्यों ना लग जाए।
तो इसलिए आज भी सुरक्षित हैं गोडसे की अस्थियां...
और कहते हैं कि फांसी देने के बाद उनके पार्थिव शरीर का सरकार ने गुपचुप तरीके से घाघरा नटी के पास अंतिम संस्कार किया था लेकिन उस वक्त गोडसे के हिंदू महासभा के अत्री नाम के एक कार्यकर्ता उनके शव के पीछे-पीछे गए थे और उन्होंने अंतिम संस्कार के बाद उनकी अस्थियों को अपने पास रख लिया था और बाद में उनके परिवार वालों को सौंप दिया था, कहा जाता है कि गोडसे परिवार ने उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए उनकी अस्थियों को अभी तक चांदी के एक कलश में सुरक्षित रखा है, हालांकि गोडसे की अंतिम इच्छा का पूरा होना असंभव है इसलिए शायद ही कभी उनकी अस्थियों को सिंधु नदी में समाहित होने का अवसर प्राप्त हो।
जानिए कुछ खास बातें
आपको बता दें कि नाथूराम विनायक गोडसे का जन्म 19 मई 1990 को भारत के महाराष्ट्र राज्य में पुणे के निकट बारामती नमक स्थान पर चित्तपावन मराठी परिवार में हुआ था, इनके पिता विनायक वामनराव गोडसे और मां का नाम लक्ष्मी गोडसे था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा पुणे में हुई थी परन्तु हाईस्कूल के बीच में ही इन्होंने पढ़ाई-लिखाई छोड़ दी और उसके बाद कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली। अपने राजनैतिक जीवन के प्रारम्भिक दिनों में नाथूराम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हो गए थे, 1930 में इन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ छोड़ दिया और अखिल भारतीय हिन्दू महासभा में चले गये, हालांकि इस बात पर आज तक विवाद है। उन्होंने अग्रणी तथा हिन्दू राष्ट्र नामक दो समाचार-पत्रों का सम्पादन भी किया था। वे मुहम्मद अली जिन्ना की अलगाववादी विचार-धारा का विरोध करते थे।
गोडसे की नफरत ही बनी मौत की वजह
प्रारम्भ में तो उन्होंने गांधी के कार्यक्रमों का समर्थन किया परन्तु बाद में उन्होंने गांधी पर हिन्दुओं के साथ भेदभाव पूर्ण नीति अपनाए जाने का आरोप लगाया था, उनकी यही खिलाफत उन्हें फांसी के तख्ते पर ले गई।
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