Teacher's Day 2018: देश की पहली महिला टीचर सावित्रीबाई फुले ने बदली लोगों की सोच
नई दिल्ली। 'शिक्षक दिवस' की बात तब तक अधूरी है जब तक कि हमारे देश की पहली महिला शिक्षिका, समाज सुधारक और मराठी कवयित्री सावित्रीबाई फुले का जिक्र ना हो, बिना उनकी चर्चा के इस दिन की महिमा का गुणगान नहीं हो सकता है। सावित्रीबाई फुले केवल एक शिक्षिका ही नहीं बल्कि एक मार्गदर्शक और लोगों के लिए मिसाल थीं, जिन्होंने अपने दम पर दुनिया जीती और महिलाओं को उनके स्वाभिमान के साथ जीने की शिक्षा दी।
देश की पहली महिला टीचर सावित्रीबाई फुले
आपको बता दें कि भारत की इस महान बेटी का जन्म 3 जनवरी 1831 को एक मराठी परिवार में हुआ था। सावित्रीबाई फुले का विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले से हुआ था। समाज की रूढ़ियों को तोड़ने वाली सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्रियों के अधिकारों और शिक्षा के लिए बहुत से कार्य किए।
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सावित्रीबाई फुले भारत के बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल थीं
सावित्रीबाई फुले भारत के बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल थीं और पहली ही किसान स्कूल की संस्थापक भी थीं। 1848 में उन्होंने पहला महिला स्कूल पुणे में खोला था, लोगों को प्रेम की भाषा सीखाने वाली सावित्रीबाई को सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्त्वपूर्ण महिला के रूप में जाना जाता है।
महिलाओं के हक के लिए काम किया
सावित्रीबाई के जीवन का उद्देश्य ही महिलाओं के हक के लिए काम करना था, वो लगातार विधवा विवाह, छूआछूत के खिलाफ लड़ती रहीं, उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था। वो तो पूरे देश के लिए महानायिका थीं।
कोई फर्क नहीं पड़ता था कि लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं?
ऐसा कहा जाता है कि जब सावित्रीबाई लड़कियों को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर तक फेंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने बैग में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुंच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं, उन्हें इस बात से कभी कोई फर्क नहीं पड़ता था कि लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं।
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