National Youth Day: स्वामी विवेकानंद के बारे में जानिए ये खास बातें...
नई दिल्ली। स्वामी विवेकानंद का नाम लेते ही सिर श्रद्धा से झुक जाता है, नई सोच और 'जो कहो वो कर दिखाने' का जज्बा रखने वाले विवेकानंद एक अभूतपूर्व मानव थे। अगर आज उनके बताए गए रास्तों पर हमारे देश के युवागण चले तो वो दिन दूर नहीं जब हमारा देश वैसा ही बन जाएगा जैसा बनाने का सपना बापू ने देखा था। बेहद ही कम उम्र में दुनिया को आईना दिखाने वाले स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व और आदर्शों को शब्दों में बांधना एकदम आसान नहीं है।
चलिए एक नजर डालते हैं उनके जीवन पर...
स्वामी
विवेकानन्द
का
जन्म
12
जनवरी
1863
में
कोलकाता
के
एक
कायस्थ
परिवार
में
में
हुआ
था।
उनका
वास्तविक
नाम
नरेन्द्र
नाथ
दत्त
था।
उनके
पिता
विश्वनाथ
दत्त
कोलकाता
हाईकोर्ट
के
एक
प्रसिद्ध
वकील
थे।
रामकृष्ण मिशन की स्थापना
उनके दादा दुर्गाचरण दत्ता संस्कृत और फारसी के विद्वान थे उन्होंने अपने परिवार को 25 की उम्र में छोड़ दिया और एक साधु बन गए थे। स्वामी विवेकानन्द ने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। उन्होंने अपने गुरू के नाम पर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी।
सारे जीव परमात्मा के अवतार: स्वामी विवेकानन्द
स्वामी विवेकानन्द ने हमेशा कहा कि सारे जीव स्वयं परमात्मा के अवतार हैं इसलिए हर व्यक्ति की सेवा करनी चाहिए। विवेकानंद के संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रसार किया था। भारत में, विवेकानंद को एक देशभक्त संत के रूप में माना जाता है। इसलिए पूरा देश उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाता है।
'जो भी करो पूरी शिद्दत से करो'
स्वामी विवेकानंद का मानना था कि किसी भी काम को करते वक्त आपका पूरा ध्यान उसी पर होना चाहिए, अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो कभी भी अपने काम में पूरी सफलता नहीं पा पाएंगे।
'डर से भागो मत, उसका सामना करो'
स्वामी विवेकानंद का कहना था कि डर से भागने के बजाए उसका सामना करना चाहिए। उन्होंने एक संबोधन में कहा था कि यदि तुम कभी किसी चीज से भयभीत हो, तो उससे भागो मत, पलटो और सामना करो, देखो वो डर अपने आप ही खत्म हो जाएगा।
देश को एक और विवेकानंद चाहिये...
मानवजाति की सेवा का संकल्प को पूरा करने वाले विवेकानंद ने जीवन के अंतिम दिन भी शुक्ल यजुर्वेद की व्याख्या की थी और कहा था कि देश को एक और विवेकानंद चाहिये, यह समझने के लिये कि इस विवेकानंद ने अब तक क्या किया है।
4 जुलाई 1902
उनके लिए ध्यान बहुत महत्वपूर्ण था, 4 जुलाई 1902 को भी उन्होंने अपनी ध्यान करने की दिनचर्या को नहीं बदला था और हमेशा की तरह प्रात: दो घण्टे ध्यान किया था और ध्यानावस्था में ही अपने ब्रह्मरन्ध्र को भेदकर महासमाधि ले ली। बेलूर में गंगा तट पर उनकी अंत्येष्टि की गई थी।
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