Swami Vivekanand: जब स्वामी विवेकानंद ने बताया मनुष्य और पशु का अंतर
नई दिल्ली। स्वामी विवेकानंद का नाम लेते ही सिर श्रद्धा से झुक जाता है, नई सोच और जो कहो वो कर दिखाने का जज्बा रखने वाले विवेकानंद एक अभूतपूर्व मानव थे। उनके जीवन से जुड़ी बहुत सारी बातें इंसान को बहुत कुछ सिखाती हैं इसलिए प्रत्येक इंसान को विवेकानंद की जीवनी जरूर पढ़नी चाहिए। आइए जानते हैं उनके जीवन का एक बहुत ही सुंदर किस्सा, जिसे जानने के बाद आपका मन भी वो करने को करेगा जो स्वामी जी ने किया था।
स्वामी विवेकानंद घर लौटे तो काफी थके हुए थे
एक बार अमेरिका के किसी संस्थान में जब भाषण देकर स्वामी विवेकानंद घर लौटे तो काफी थके हुए थे, उन्होंने काफी देर से कुछ खाया-पीया नहीं था जिसके कारण उन्हें भूख भी लगी थी। वो उस वक्त एक महिला के घर पर किराए पर रहा करते थे।
अब आप क्या खाएंगे?'
वो
स्वयं
अपना
खाना
बनाते
थे।
थके
स्वामी
जी
जब
अपने
घर
पर
खाना
बना
रहे
थे
कि
तभी
कुछ
बच्चे
उनके
पास
आकर
खड़े
हो
गए।बच्चे
भी
भूखे
थे,
स्वामी
जी
ने
अपनी
सारी
रोटियां
एक-एक
कर
बच्चों
में
बांट
दी।
जिस
महिला
का
घर
था
वो
उन्हें
बहुत
देर
से
देख
रही
थी
,
आखिर
उससे
रहा
नहीं
गया
और
उसने
स्वामी
जी
से
पूछ
ही
लिया,
'आपने
सारी
रोटियां
उन
बच्चों
को
दे
डाली,
अब
आप
क्या
खाएंगे?'
हम मानव हैं, कोई जानवर नहीं
स्वामी जी ने मुस्कुरा कर कहा कि मां, रोटी तो पेट की आग को शांत करने वाली वस्तु है, इस पेट में न सही, उस पेट में ही सही, देने का आनंद पाने के आनंद से बड़ा होता है।मेरे हाथ की कच्ची-पक्की रोटी खाकर जब वो बच्चे मुस्कुराए तो यकीन मानिए मेरा दिल आनंद से नाच उठा और मेरे पेट ने सकून की सांस ली। हम मानव हैं कोई जानवर नहीं, जो केवल अपने बारे में सोचे।
मानसिक सकून
विवेकानंद की ये कहानी हमें सिखाती है कि इंसान को हमेशा अपने बारे में ही नहीं सोचना चाहिए कभी-कभी उसे दूसरों के भी बारे में विचार करना चाहिए क्योंकि ये ही उसे मानसिक सकून देगा।
Read Also:Swami Vivekanand : चरित्र को कपड़ों से नहीं बल्कि विचारों से पहचानो: स्वामी विवेकानंद