एक आम भारतीय को कैसे खुश रखे सरकार?
आनंद सक्सेना
सरकार ने अपने 48 लाख केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन में 25 प्रतिशत की वृद्धि कर दी। इसके साथ-साथ राज्य सरकारें भी अपने कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि करने की ओर अग्रसर हैं। इससे सरकारी कर्मचारियों के घर में खुशियां तो आयेंगी, लेकिन वो खुशियां क्षणिक होंगी। क्योंकि इसका सीधा असर महंगाई पर पड़ने वाला है।
इस महंगाई का असर सरकारी कर्मचारियों की सेहत पर भी पड़ेगा, क्योंकि जिस अनुपात में सैलरी बढ़ी, उससे ज्यादा अनुपात में महंगाई। यानी जहां थे वहीं रह गये। ऐसे में उस गरीब मजदूर, दुकानदारों के बारे में सोचिये, जिनकी संख्या 5 हजार से 15 हजार रुपए वेतन पाने वाले केंद्र व राज्य कर्मचारियों की संख्या की कई गुना है।
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इनके परिवार पर महंगाई की मार का बोझ सबसे अधिक पढ़ेगा। सरकारी कर्मचारियों की सैलरी तो प्रतिशत बढ़ेगी, लेकिन छोटे-बड़े दुकानदारों की आय नहीं। और न ही देश की छोटी-बड़ी कंपनियां अपने कर्मचारियों का वेतन बढ़ायेंगी। अब सोचिये प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले और बिजनेस करने वाले लोगों का क्या होगा?
जाहिर है ये व्यापारी दाम बढ़ायेंगे ही और घूम फिर कर सरकारी कर्मचारी, जिसने अभी-अभी सैलरी बढ़े की खुशखबरी सुनी है, वह भी उस महंगाई का हिस्सा होगा। कुल मिलाकर स्थिति जस की तस रहने वाली है।
तो क्या करे सरकार
सरकार को 25% वृद्धि न करके, महंगाई को कम करें। रेल किराया, माल ढुलाई का किराया, डीजल-पेट्रोल के दाम, रसोई गैस, बिजली की कीमत, पानी पर टैकस, टोल नाका, आदि को कम करें तो लोग ज्यादा खुश रहेंगे।
और अगर आम जनता पर पड़ने वाले भारी बोझ को वाकई में सरकार कम करना चाहती है तो खेती में उपयोग होने वाले उपकरणों, खाद, आदि के साथ-साथ उन चीजों को सस्ता करे, जो आम जनता की जरूरत हैं। कीमत वसूलनी है तो सोना, चांदी, हवाई यात्रा, कार, बाइक, एलसीडी, आदि पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर वसूले। क्योंकि एक आदमी जहां बाइक खरीदने के लिये 40 हजार जोड़ेगा, वहां 42 भी जोड़ लेगा, लेकिन रोज-रोज 200 रुपए की अरहर की दाल तो नहीं खानी होगी।
बड़े प्राइवेट स्कूलों से भारी कर वसूले सरकार
अगर आम आदमी को खुश देखना है तो कैपिटेशन फीस और डोनेशन के नाम पर भारी-भरकम कमाई करने वाले स्कूलों पर लगाम कसें। और अगर लगाम नहीं कस सकते हैं तो उस कैपिटेशन फीस में भी सरकार अपना हिस्सा लगाये, ताकि वह पैसा देश के विकास में काम आ सके। दवाओं और इलाज के नाम पर करोड़ों की कमाई करने वाले अस्पतालों पर लगाम कसें, और अगर नहीं कस सकते, तो सरकार कम से कम उन लोगों पर शिकंजा कसे जो मिलावटी सामान बेच कर लोगों को बीमार करते हैं।