इस 'छोटे' से जीव को छोड़ दिया सबने
कुछ
साल
की
जि़ंदगी,
छोटा
शरीर,
चंचलता
और
मासूमियत
लेकर
पैदा
हुआ
यह
जीव
आज
आधुनिकता
के
थपेड़ों
से
कराह
रहा
है।
पर्यावरण-मित्र
गिलहरियों
की
प्रजाति
खतरे
में
है।
पेड़ों
की
अंधाधुंध
कटाई
और
मैदानी
इलाकों
का
सिकुड़ना
इन
खूबसूरत
गिलहरियों
को
दुनिया
की
लक्ष्मण
रेखा
से
बाहर
फेंक
रहा
है।
दुनियाभर
में
गिलहरियों
की
लगभग
265
प्रजातियां
हैं।
जिनमें
एक
तिहाई
भारत
में
पाईं
जातीं
हैं।
इंडेंजर्ड स्पेसीज़ इंटरनेशनल नामक संस्था ने गिलहरियों की कम हो रही संख्या पर चिंता जताई है। इनकी खूबसूरत प्रजातियों में से एक 'व्हाइट स्क्विरेल', जो खासकर बर्फीले क्षेत्रों में पाई जाती थी, लगभग खत्म हो चुकी है। मौसमी बदलावों का एक सिरा उस दखलंदाज़ी से भी जुड़ता है, जो हम इंसानों ने प्रकृति के साथ की है। आसमान छूने को बेताब इमारतों के लिए हमने कुदरत से इज़ाजत न लेकर अफसरों-नेताओं को राजी किया।
पेड़ों
को
चीर
कर
मैदानों
को
प्लाॅट
की
शक्ल
दी
जाती
रही।
ज्यादातर
वन्य-विभाग
भी
जीव-जंतुओं
की
नुमाइश
बनकर
रह
गए।
गिलहरी
पर
गूगल
करते
हुए
यह
जानकारी
भी
मिली
कि
वे
साथी
गिलहरियों
तक
अपने
मन
की
बात
पहुंचाने
के
लिए
पूंछ
हिलातीं
हैं,
आवाज़ें
निकालती
हैं।
खतरा
होने
पर
गोल-गोल
चक्कर
काटने
लगती
हैं।
अमरीका
ने
जिस
जीव
को
मेहनत
और
भरोसे
के
प्रतीक
का
सम्मानित
दर्जा
दिया,
उसे
भारत
में
नोंच-खाने
वालों
ने
अल्पाहार
समझ
लिया।
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ऐसे
तो
हो
गैंडों
का
हो
जाएगा
'the
end'
वाइल्डलाइफ वैज्ञानिकों की रिपोर्ट बताती हैं कि बीते एक दशक में गिलहरियों की मौत के तमाम कारणों में ठंड, भूख, व प्यास व अवैध शिकार अहम रहे। घोंसलों के लिए पेड़ों की मोटी टहनियां, आहार के लिए छोटे जीव, व पीने के लिए प्राकृतिक जल की ज़रूरी उपलब्धता न होने से हर पल फुदकने वाली गिलहरियां तड़प-तड़प कर मरतीं रहीं।
वन्य
महकमों
ने
इस
छोटे
जीव
की
खास
प्रजातियों
को
ही
तवज्ज़ो
दी।
काली
धारी
वाली
गिलहरियां
आम
होने
की
सज़ा
खुद
को
देतीं
रहीं।
आधी-अधूरी
आधुनिकता
ने
कुत्ते-बिल्लियों
को
तो
पालतू-ब्राण्ड
बनाया,
पर
अफसोस,
गिलहरी
जैसे
कमज़ोर-मासूम
जीव
की
जि़म्मेदारी
हममें
से
किसी
ने
नहीं
ली।
खुद
को
कोसने
से
या
इस
विषय
पर
पन्ने
भरने
से
जि़ंदगियां
तो
नहीं
बचाईं
जा
सकतीं,
पर
हां,
एक
उम्मीद
के
साथ
बची
हुईं
प्रजातियों
की
सुरक्षा
सुनिश्चत
करने
की
कोशिशें
जरूर
की
जा
सकतीं
हैं।
यकीन कीजिए, गिलहरी बेहद भरोसेमंद, समझदार व मासूम जीव है। वह जीव, जो पेट भरने के लिए हम इंसानों का कभी मोहताज़ नहीं रहा। क्यों ना खुद से यह वादा करें कि जिस जीव को हम फायदा नहीं पहुंचा सकते, उसे हमारी वज़ह से नुकसान भी ना झेलने पड़ें। इंटरनेट पर गिलहरियों को गोद लेने-देने व रख-रखाव सम्बंधी तमाम संस्थाएं उस अंधेरे में रोशनी भर रही हैं, जहां इंसानी फितरतों ने इस नन्हीं सी जान को जोखिम में डाल रखा है।