'ठुमरी क्वीन' गिरिजा देवी( 1949–2017): जिनके कंठ में था मां सरस्वती का वास
बनारस। आज संगीत की साधिका और मां सरस्वती की उपसाक ठुमरी क्वीन गिरिजा देवी हमारे बीच में नहीं हैं। अपने दम पर भारतीय शास्त्रीय संगीत को असीम ऊंचाइयों पर पहुंचाने वाली गिरीजा देवी का मंगलवार को कोलकाता के बिड़ला अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वो 88 साल की थीं, ठुमरी गायन को प्रसिद्धि के मुकाम पर पहुंचाने के लिए गिरिजा देवी को 1972 में पद्मश्री, 1989 में पद्मभूषण और 2016 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था। कहते थे कि गिरिजा जी के कंठ में मां सरस्वती का वास है और इसी वजह से आज उनके जाने से शास्त्रीय संगीत के साथ कला जगत में शोक की लहर देखी जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए ट्वीट किया है। गिरिजा देवी का जन्म, 8 मई 1929 को, वाराणसी में एक भूमिहार जमींदार रामदेव राय के घर हुआ था, उनके पिता हारमोनियम बजाया करते थे इसलिए गिरिजा देवी का रूझान संगीत की ओर बढ़ा, उन्होंने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता से ही ग्रहण की थीं।
इसके बाद संगीत की इस साधिका को संगीत सिखाया गायक और सारंगी वादक सरजू प्रसाद मिश्रा ने, मात्र पांच साल की उम्र से इन्होंने ख्याल और टप्पा गायन की शिक्षा लेना शुरू की। नौ वर्ष की आयु में, फिल्म याद रहे में इन्होंने अभिनय भी किया और अपने गुरु श्री चंद मिश्रा के सानिध्य में संगीत की विभिन्न शैलियों की पढ़ाई जारी रखी।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय
गिरिजा देवी ने गायन की सार्वजनिक शुरुआत,ऑल इंडिया रेडियो इलाहाबाद पर, 1949 से की। 1951 में बिहार में उन्होंने अपना पहला सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम दिया। 1980 के दशक में कोलकाता में आईटीसी संगीत रिसर्च एकेडमी और 1990 के दशक के दौरान बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संगीत संकाय के एक सदस्य के रूप में काम किया, और उन्होंने संगीत विरासत को संरक्षित करने के लिए कई छात्रों को पढ़ाया। देवी बनारस घराने से थीं और पूरबी आंग ठुमरी शैली परंपरा को बुलंदी दी। सुरों की इस देवी को हमारा भी शत-शत नमन, वो भले ही हमारे बीच अब सशरीर ना हों लेकिन अपनी आवाज के जरिए वो हमेशा हमारे ख्यालों में जिंदा रहेंगी।
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