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भोपाल गैस त्रासदी: 15 साल पहले से जमा था जहरीला कचरा!

By Sandeep Puranik
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भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में यूनियन कार्बाइड संयंत्र से गैस रिसाव के कारण हुए भयानक हादसा तो 1984 में हुआ, मगर उससे 15 वर्ष पहले से ही संयंत्र परिसर में जहरीला रसायन जमा हो रहा था। संयंत्र परिसर व उसके आसपास 18 हजार टन से ज्यादा जहरीला कचरा अब भी जमा है। हर किसी को जहरीला कचरा हटाए जाने का इंतजार है।

30 years of Bhopal gas tragedy

दिसंबर की वह काली रात

भोपाल के लिए दो-तीन दिसंबर 1984 की रात काल बनकर आई थी। इस रात को यूनियन कार्बाइड संयंत्र से रिसी मिथाइल आइसो साइनाइड (मिक) गैस ने हजारों परिवारों की खुशियां छीन ली थीं।

इस हादसे के बाद से यह संयंत्र बंद पड़ा है और इसके परिसर में अनुमान के मुताबिक 18 हजार टन से ज्यादा रासायनिक कचरा जमा है। इससे पर्यावरण के प्रदूषित होने के साथ ही मिट्टी और भूजल के प्रदूषित होने का खुलासा कई शोधों में होता रहा है। यूनियन कार्बाइड हादसे के बाद से गैस पीड़ित रासायनिक कचरे को हटाने की मांग लगातार करते रहे हैं, मगर उनकी बात अनसुनी कर दी जाती है।

भोपाल में अमेरिका की यूनियन कार्बाइड ने 1969 में पदार्पण कर कीटनाशक कारखाना स्थापित किया था। इस कारखाने की शुरुआत के समय परिसर में घातक कचरे को डालने के लिए 21 गड्ढे बनाए गए थे। 1969 से 77 तक इन्हीं गड्ढों में घातक कचरा डाला गया।

एक तालाब में उड़ेला जाता था खतरनाक केमिकल

कचरे की मात्रा में इजाफा होने पर 32 एकड़ क्षेत्र में एक सौर वाष्पीकरण तालाब (सोलर इवापरेशन पॉड) बनाया गया। इस तालाब में घातक रसायन जाता था, जिसका पानी तो उड़ जाता था, मगर रसायन नीचे जमा हो जाता था। इसके बाद दो और सौर वाष्पीकरण तालाब बनाए गए।

भोपाल ग्रुप फॉर इन्फार्मेशन एंड एक्शन के सदस्य सतीनाथ षडंगी ने आईएएनएस से कहा, "हादसे के बाद दो तालाबों का रासायनिक कचरा 1996 में तीसरे तालाब में डालकर उसे मिट्टी से ढक दिया गया। यह कचरा 18 हजार टन से कहीं ज्यादा है।"

षडंगी बताते हैं, "विभिन्न शोधों के जरिए यह बात सामने आई है कि संयंत्र के अंदर जमा घातक रासायनिक कचरे के कारण मिट्टी व भूजल लगातार प्रदूषित हो रहा है और प्रदूषण प्रभावित क्षेत्र का दायर भी बढ़ता जा रहा है तब कहीं जाकर इस कचरे को नष्ट करने के प्रयास तेज हुए।"

रासायनिक कचरे को लेकर गैस पीड़ितों के हितों की लड़ाई लड़ने वाले आलोक प्रताप सिंह ने जुलाई 2004 में उच्च न्यायालय जबलपुर में एक याचिका दायर की। उच्च न्यायालय ने जहरीले कचरे को ठिकाने लगाने के लिए सिफारिशें देने के लिए टास्क फोर्स का गठन किया।

2005 में आया कोर्ट का निर्देश

न्यायालय के निर्देश पर जून 2005 में संयंत्र परिसर में फैले पड़े कचरे को उठाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार ने इंदौर के पास पीथमपुर में स्थित रामकी कंपनी को सौंपी। रामकी ने 346 मीट्रिक टन कीटनाशक व अन्य जहरीले पदार्थ व 39 मीटिक ट्रन लाइम स्लज को बोरियों में बंद कर कारखाने के एक गोदाम में रखा, जो अब भी वहीं रखा है।

षडंगी के मुताबिक, "टॉस्क फोर्स की सिफारिशों पर उच्च न्यायालय ने अक्टूबर 2006 में 385 मीट्रिक टन कचरे को गुजरात के अंकलेश्वर स्थित भरुच एनवायरमेंटल इंफ्रास्टेक्च र लिमिटेड संयंत्र में जलाने के निर्देश दिए। इसका गुजरात में विरोध हुआ तो गुजरात सरकार ने अगस्त 2008 मंे सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की। इसके बाद टास्क फोर्स की अक्टूबर 2009 में हुई बैठक में कचरे को अंकलेश्वर न भेजकर पीथमपुर भेजने का निर्णय लिया गया।"

2010 में सुप्रीम कोर्ट का अादेश

टास्क फोर्स की सिफारिशों पर सर्वोच्च न्यायालय ने जनवरी 2010 को रासायनिक कचरे को पीथमपुर में जलाने का निर्देश दिया और इसकी निगरानी की जिम्मेदारी उच्च न्यायालय को सौंपी गई। इसके बाद पीथमपुर के आसपास के गांव में विरोध शुरू होने पर राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर अगस्त 2010 में रासायनिक कचरा भेजने में असमर्थता जाहिर की।

इस पर केंद्र सरकार ने मई 2011 में उच्च न्यायलय मध्य प्रदेश में एक याचिका दायर कर रासायनिक कचरे को नागपुर के रक्षा मंत्रालय के संयंत्र (डीआरडीओ) में जलाने का आग्रह किया, इस पर उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को रासायनिक कचरा नागपुर भेजने के प्रबंध करने का आदेश दिया।

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ महाराष्ट्र के विदर्भ इंवायरमेंटल एक्शन ग्रुप द्वारा दर्ज कराई गई आपत्ति पर महाराष्ट्र उच्च न्यायालय ने जुलाई 2011 में रासायनिक कचरे को नागपुर लाने पर रोक लगा दी।

कचरा जलाने की चल रही कोशिशों में फरवरी 2012 में महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की बैठक हुई, जिसमें 346 मीट्रिक टन कचरे को पीथमपुर में जलाने पर सहमति बनी। इसी बीच जर्मनी की जीआईजेड ने मध्य प्रदेश सरकार से रासायनिक कचरा हेम्बर्ग में जलाने की इच्छा जताई।

2012 में सुप्रीम कोर्ट ने बदला अपना फैसला

इस पर केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की, जिस पर अप्रैल 2012 को राज्य सरकार को रासायनिक कचरा जर्मनी भेजने का आदेश दिया। बाद में न्यायालय ने अपने आदेश को स्थगित कर दिया।

मंत्री समूह ने भी रासायनिक कचरा जर्मनी भेजने पर सहमति जताई मगर जर्मनी में विरोध होने पर इस विचार को भी त्याग दिया गया। उसके बाद मंत्री समूह ने अक्टूबर 2012 को पीथमपुर में ही कचरा जाने का निर्णय लिया।

भोपाल गैस राहत व पुनर्वास विभाग के आयुक्त आर.ए. खंडेलवाल ने बताया, "सर्वोच्च न्यायालय ने अप्रैल 2014 को प्रायोगिक तौर (ट्रायल रन) पर 10 मीट्रिक टन रासायनिक कचरे को पीथमपुर में जलाने के निर्देश दिए हैं।" उनका कहना है कि इंसीनेटर में कुछ तकनीकी कमी के चलते कचरे को पीथमपुर नहीं भेजा जा रहा है।

खंडेलवाल बताते हैं कि गैस पीड़ित संगठनों ने 346 मीट्रिक टन कचरे के अलावा सौर वाष्पीकरण तालाब व अन्य स्थान पर 18 हजार मीट्रिक टन कचरे के दबे होने की भी बात कही है और पर्यावरणीय मुआवजे के दावे का सरकार से आग्रह किया है, इस पर भारत सरकार की ओर से अमेरिका की अदालत में क्षतिपूर्ति का दावा पेश किया गया है।

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी भोपाल के यूनियन कार्बाइड संयंत्र में जमा रासायनिक कचरे की पहली खेप को नहीं जलाया जा सका है। अब देखना है कि वह वक्त कब आता है जब भोपाल को रासायनिक कचरे से मुक्ति मिलेगी।

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English summary
Poisonous garbage was at the venue from last 15 years before Bhopal Gas tragedy.
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