जानिए उस इंस्टीट्यूट के बारे में जहां तैयार होते हैं देश के जाबांज
पुणे। पूरे देश में इस समय कॉलेज, यूनिवर्सिटी और स्टूडेंट्स के बारे में ही जिक्र हो रहा है, लेकिन वजहें नकारात्मक। आज हम आपको एक ऐसे इंस्टीट्यूट के बारे में बताते हैं जिसके बारे में कभी खबरें नहीं आती है लेकिन इसके बहादुरों की वजह से यह कभी खबरों से दूर भी नहीं हुआ।
हम बात कर रहे हैं नेशनल डिफेंस एकेडमी यानी एनडीए की जो महाराष्ट्र के पुणे के खड़कवासला में स्थित है। एक ऐसा इंस्टीट्यूट जहां पहुंचना हर युवा लड़के का सपना होता है लेकिन कुछ किस्मत वालों का ही सपना पूरा हो पाता है।
एक ऐसा इंस्टीट्यूट जहां पर तीन वर्ष की कड़ी मेहनत के बाद 18 वर्ष का एक युवा जेंटलमैन कैडेट एक ऑफिसर में तब्दील होता है।
एक ऐसा इंस्टीट्यूट जहां पर ऑफिसर्स को न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक और मनोवैज्ञानिक तौर पर मजबूत बनाया जाता है।
एक ऐसा इंस्टीट्यूट जहां पर युवाओं को सिखाया जाता है कि देश सबसे पहले और बाकी सब उसके बाद। अगर जरूरत पड़े तो आप देश की रक्षा में अपने जान भी न्यौछावर करने से पीछे नहीं हटेंगे। आइए इसी एनडीए से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में आपको बताते हैं।
आर्मी, एयर फोर्स और नेवी ऑफिसर की ट्रेनिंग
एनडीए दुनिया की पहली ऐसी मिलिट्री एकेडमी है जहां पर सेनाओं के तीनों अंगों आर्मी, एयरफोर्स और नेवी के ऑफिसर्स को एक साथ ट्रेनिंग दी जाती है।
पहले इंडियन मिलिट्री एकेडमी का हिस्सा
एक जनवरी 1949 को एनडीए ने ज्वाइंट सर्विसेज विंग यानी जेएसडब्ल्यू के तौर पर संचालन शुरू किया। उस समय यह उत्तराखंड की राजधानी देहरादून स्थित इंडियन मिलिट्री एकेडमी में ही स्थित था।
वर्ष 1955 को बना इतिहास
16 जनवरी 1955 को एनडीए का उद्घाटन हुआ और इंडियन मिलिट्री एकेडमी से अलग होने की घटना को 'ऑपरेशन बदली' नाम दिया गया।
क्या है सूडान ब्लॉक
वर्ष 1941 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सूडान में भारतीय सैन्य दल के लिए जो राशि दान की गई थी, उसी राशि से एनडीए की बिल्डिंग का निर्माण हुआ। इसलिए मेन बिल्डिंग को सूडान ब्लॉक कहा जाता है।
क्यों चुना गया खड़कवासला को
इस जगह पर झील भी है, पहाड़ी रास्ते भी और दूसरे सभी पुराने मिलिट्री संस्थान भी मौजूद हैं इसलिए खड़कवासला को इस एकेडमी के लिए चुना गया।
राज्यवर्धन राठौर इसी एकेडमी के छात्र
लेफ्टिनेंट कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौर जिन्होंने वर्ष 2004 के ओलंपिक को देश का पहला व्यक्तिगत पदक दिलाया था, इसी एकेडमी के छात्र रहे हैं। वर्तमान में केंद्रीय मंत्री राठौर एनडीए के 77वें बैच के कैडेट थे।
एकेडमी का पहला कोर्स
11 जनवरी 1949 को 190 कैडेट वाला पहला कोर्स समाप्त हुआ था। इसके बाद अगले कोर्स के लिए 172 कैडेट्स की ट्रेनिंग की शुरुआत आठ दिसंबर 1950 को हुई।
क्या था एकेडमी शुरू करने का मकसद
एनडीए का गठन एक प्रयोग के तौर पर हुआ था जिसके तहत यह देखना था कि क्या अलग-अलग संस्कृति और पृष्ठभूमि से आने वाले युवा एक साथ आकर एक तय समय में सही ट्रेनिंग पूरी कर पाते हैं या नहीं।
27 सर्विस चीफ
एनडीए ने अभी तक देश को करीब 27 सर्विस चीफ्स ऑफ स्टाफ दिए हैं। वर्तमान में इंडियन आर्मी चीफ जनरल दलबीर सिंह सुहाग, नेवी प्रमुख आरके धवन और एयरफोर्स चीफ अरुप राहा एनडीए से ही निकले थे।
मिलती है जेएनयू की बैचलर डिग्री
तीन वर्ष की पढ़ाई पूरी करने के बाद कैडेट्स को जेएनयू से बैचलर ऑफ आर्ट्स यानी बीए या फिर बैचलर ऑफ साइंस यानी बीएससी की डिग्री मिलती है।
विदेशी कैडेट्स भी एनडीए का हिस्सा
एनडीए में भारतीय कैडेट्स के अलावा 27 देशों के 700 कैडेट्स को भी एक साथ ट्रेनिंग दी जाती है।
18 स्क्वाड्रन
एनडीए में 18 स्क्वाड्रन हैं जिन्हें पांच बटालियंस में बांटा गया है।
18 राज्यों ने की मदद
एनडीए में स्थित स्क्वाड्रंस की बिल्डिंग के निर्माण में देश के 18 राज्यों ने पांच-पांच लाख रुपए अनुदान में दिए थे। इसलिए बिल्डिंग्स को सम्मान के तौर पर राज्यों के नाम दिए गए हैं।
इंग्लिश की जगह संस्कृत में ध्येय वाक्य
वर्ष 1950 तक एनडीए का मोटो यानी ध्येय वाक्य इंग्लिश में था और कुछ इस तरह से था, 'सर्विस बीफोर सेल्फ'। बाद में इसे संस्कृत भाषा में बदल दिया गया और अब 'सेवा परमो: धर्मा,' नया ध्येय वाक्य है।
अंतरिक्ष तक पहुंचा एनडीए
विंग कमांडर राकेश शर्मा जो कि चांद पर पहुंचने वाले पहले भारतीय थे, उन्हें एनडीए में ही ट्रेनिंग मिली थी। उन्होंने वर्ष 1966 में एनडीए ज्वॉइन किया था।