'मनरेगा' के 10 साल पूरे, खर्च हो गए 3.13 लाख करोड़ रुपए, जानें कुछ खास बातें
नयी दिल्ली। गांव के हालात बदलने और लोगों के लिए रोजगार के अधिक से अधिक अवसर प्रदान करने के उद्देश्य वाली यूपीए सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना यानी मनरेगा की शुरुआत की। आज इस योजना के 10 साल पूरे हो गए हैं। पिछले 10 सालों में सरकार ने इस योजना के नाम पर 3.13 लाख करोड़ रुपये खर्च ककिए हैं।
मनरेगा मजदूरी- सबसे ज्यादा हरियाणा, सबसे कम झारखंडी मजदूर को
लेकिन सवाल ये है किया 3.13 लाख करोड़ रुपए असल लोगोंतक पहुंच पाया? क्या ये योजना गरीबों को लाफ पहुंचा पाई ? आपको बता दें कि उत्तरप्रदेश, बिहार, पंजाब, छत्तीसगढ़, मणिपुर जैसे कई राज्यों में इस योजना के कार्यान्वयन को लेकर भ्रष्टाचार एवं अनियमिताताओं की शिकायतें बाधक के रूप में उभर कर सामने आई हैं। ऐसे में जानिए इस योजना से जुड़ी कुछ खास बातें. ..
दुनिया का सबसे बड़ा जॉब स्रोस
मनरेगा की शुरुआत दो फरवरी 2006 को देश के 200 जिलों से की गई थी, जिसे एक अप्रैल 2008 को देशभर के सभी जिलों में लागू कर दिया गया।
36 लाख परिवार को फायदा
पिछले दस साल में इस कानून के तहत राज्य में 32 हजार करोड़ रुपए मिले हैं और 36 लाख परिवारों को रोजगार मिला है। गांवों से शहरों का पलायन रोकने और ग्रामीण लोगों की मजदूरी को बेहतर करने के लिए शुरू की गई इस योजना ने आज 10 साल पूरे कर लिए।
गरीबों को फायदा
भ्रष्टाचार की शिकार यहां ये योजना गरीबों को फायदा पहुंचाने के लिए शुरु की गई थी तो वहीं यह कानून भ्रष्टाचार और विवादों की भेंट चढ़ गया। आज के अनुमान को देखें तो मनरेगा में हर साल तीन हजार करोड़ से चार हजार करोड़ रुपए अफसरों और सरपंचों के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ते रहे।
घटाना पड़ा बजट
केन्द्र की इस योजना में प्रदेश का बजट बीते 8 साल में लगातार घटा है। स्थिति ये है कि आज यह बजट आधे से भी कम रह गया। वर्ष 2009-10 में इस योजना में 6275 करोड़ रुपए बजट स्वीकृत हुआ था, लेकिन साल 2015-16 बजट 2232 करोड़ ही रह गया।
लागू करने में विफल रही सरकारें
इस योजना से ग्रामीणों को रोजगार की नई उम्मीद तो जागी थी, लेकिन सरकारें प्रभावी ढंक से इसे लागू कर पाने में विफल रहीं। राज्य में सबसे पहले उदयपुर, झालावाड़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, सिरोही और करोली जिले को शामिल किया गया था।
बढ़ी मजदूरी
साल 2006 में इस योजना के तहत एक श्रमिक को प्रति दिन 73 रुपए भुगतान मिलता जो आज बढ़कर 173 रुपए हो गया।
आंकड़ों पर नजर
इस योजना के तहत 36,48709 परिवारों को 16,7763171 दिनों का रोजगार मिला। इसमें लगातार 100 दिन तक रोजगार करने वालों की संख्या 2 लाख 33 हजार 150 है। इसी तरह उदयपुर में अब तक 106 करोड़ 96 लाख रुपए बजट खर्च हो चुका हैं। इसमें 1 लाख 66 हजार 712 परिवारों को रोजगार मिला। जिन्होंने 72 लाख 64 हजार 440 दिन तक काम किया। इसमें 100 दिन तक काम करने वाले 9864 परिवार हैं।
मिलती रही शिकायतें
साल 2010 से 2015 की अवधि में मनरेगा को लेकर बिहार में कुल 249 शिकायतें मिलीं। उत्तर प्रदेश में इस अवधि में लंबित शिकायतों की संख्या 263 दर्ज की गई। छत्तीसगढ़ में पिछले पांच सालों में मनरेगा में भ्रष्टाचार और अन्य अनियमितताओं की 70 शिकायतें मिली हैं। महाराष्ट्र में 15 शिकायतें मिली हैं। पश्चिम बंगाल में 20 शिकायतें मिलीं। गुजरात में मनरेगा की 14 दर्ज की गई जबकि मणिपुर में 49 और पंजाब में 25 शिकायतें लंबित हैं।
बढ़ी महिलाओं की तादात
मंत्रालय का कहना है कि मनरेगा में महिला श्रमिकों की संख्या में लगातार वद्धि दर्ज की गई है और 57 प्रतिशत महिलाएं हैं। इस कार्यक्रम के तहत 65 प्रतिशत से ज्यादा काम कृषि एवं इससे जुड़ी गतिविधियों से संबंधित रहा।
मिली तारिफ
14 के वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट में विश्व बैंक ने मनरेगा को ग्रामीण विकास का उत्कृष्ट उदाहरण बताया था। भारत सरकार इस योजना को दुनिया का सबसे बेहतरीन महात्वाकांक्षी सामाजिक सुरक्षा और जन रोजगार कार्यक्रम बताती है।