मिलिए असम के जैविक किसान नीलम दत्ता से, जिन्होंने एग्रीकल्चर सेक्टर में झंडे गाड़ दिए हैं
दिसपुर। असम में बिस्वनाथ जिले के पबोही क्षेत्र के रहने वाले नीलम दत्ता, जो ना सिर्फ अपने राज्य के लोगों के रोल मॉडल हैं बल्कि कई लोगों उन्हें जैविक किसान के नाम से जानते हैं। दत्ता ने देश के कई किसानों को नई तकनीक के सहारे खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया है। भारत में दत्ता को जैविक खेती के कंसल्टेंट के रुप में जाना जाता है।
एमएसडब्ल्यू में डिग्री धारक दत्ता, एक नौजवान फार्म मालिक है जो वर्तमान में कृषि उत्पादों की उत्पादकता, उपलब्धता और सामर्थ्य बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं। 1978-79 में दत्ता के पिता ने लक्ष्मी एग्रीकल्चर फार्महाउस प्रोजेक्ट (लैंप) के नाम से एक फार्महाउस शुरू किया, जिसे पभोई ग्रीन्स के नाम से भी जाना जाता है। उनके पिता हेमेन दत्ता पेशे से डॉक्टर थे, जिन्होंने अपनी नौकरी छोड़कर मात्र 12 हेक्टर की जमीन पर फार्मिंग करना शुरू किया। उन्होंने बंजर जमीन पर भी चावल की खेती और मत्स्य पालन किया।
पिता की मौत के बाद नीलम ने उस विरासत को जारी रखा और कुछ सालों बाद लैंप डेयरी, नर्सरी और बायो रिसर्च के रूप में तब्दील हो गया। 2014 में दत्ता को प्रसिद्ध हलधर ऑर्गेनिक फार्मर अवॉर्ड से नवाजा गया। 2016 में महिंद्रा ग्रुप ने उन्हें नेशनल फार्मर्स अवॉर्ड से सम्मानित किया। 2016-17 में नीलाम को इटीएच यूनिवर्सिटी (ज्यूरिख) द्वारा एंबेसेडर ग्रैंट से सम्मानित किया गया।
दत्ता कई योजनाबद्ध तरीकों से कार्बनिक कृषि गतिविधियों को लेकर गहराई से अध्ययन कर रहे हैं साथ ही साइंटिफिक तरीके से डेयरी और मत्स्य पालन घटकों को भी एकीकृत कर रहे हैं। दत्ता, असम एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के एग्रीकल्चर प्रोजेक्ट में भी अपना योगदान दे रहे हैं।
आज नीलम दत्ता का पभोई ग्रीन्स में 80 से ज्यादा प्रकार के चावल का रखरखाव होता है, जिसका विस्तार असम, मणिपुर, और नागालैंड तक फैला हुआ है। वर्तमान में इस फॉर्म में 34 लोग काम कर रहे हैं और जो कर्मचारी इस फार्म में काम कर रहे हैं उनके बच्चों के लिए दत्ता शिक्षा पर खर्च करता है।