दाएं हाथ से हिंदी-उर्दू, बायें से अंग्रेजी लिखते थे महात्मा गांधी
सम्पूर्ण जीवनकाल को सत्य की खोज का नाम देने वाले महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा वाले नैतिक मूल्यों पर तो ना जाने कितनी सकारात्मक और नकारात्मक बातें की जा चुकी हैं और ना जाने कितना कुछ लिखा जा चुका है। मगर गांधी के जीवनकाल का एक पक्ष, आज भी उस स्तर की चर्चा का विषय नहीं बन पाया जितना कि उसे होना चाहिए।
आज जब समूचे विश्व की नजर में गांधी की छवि एक महात्मा, अहिंसा के पथ-प्रदर्शक एवं एक सत्यनिष्ठ समाजसुधारक के रूप में विख्यात है, ऐसे में शायद यह बात बहुत कम लोगों को पता होगी कि गांधी एक कुशल पत्रकार भी थे।
इसमें कोई दो राय नहीं कि जिस तरह से हर सामाजिक,राष्ट्रीय,अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर गांधीवाद की प्रासंगिकता बढ़ जाती है उस तरह से पत्रकारिता के मूल्यों को कभी गांधीवादी चिंतन के नजरिये से देखने का प्रयास नहीं किया गया है।
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आज भी पत्रकारिता के सरोकारी मूल्यों के संदर्भ में गांधी का दृष्टिकोण कहीं गौण सा है एवं इस विषय पर पर्याप्त चर्चा नहीं की गयी है। इसमें कोई संदेह नहीं कि गांधी एक कुशल पत्रकार भी थे और अगर गांधी की पत्रकारिता की बारीकियों को समझने का प्रयास किया जाय तो गांधी व्यवहारिक पत्रकारिता के स्तंभों में से एक नजर आते हैं। गांधी की पत्रकारिता भी उनके गांधीवादी सिद्धांतों के मानको पर ही आधारित है।
गांधी की पत्रकारिता में भी उनके संघर्षों का बड़ा ही व्याहारिक दृष्टिकोण नजर आता है। जिस आमजन,हरिजन एवं सामाजिक समानता के प्रति गांधी का रुझान उनके जीवन संघर्षों में दिखता है बिलकुल वैसा ही रुझान उनके पत्रकारिता में भी देखा जा सकता है।
पत्रकारिता पर क्या कहते थे गांधी जी?
पत्रकारिता को लेकर गांधी का मानना था कि पत्रकारिता की बुनियाद सत्यवादिता के मूल चरित्र में निहित होती है, जबकि असत्य की तरफ उन्मुख होकर विशुद्ध एवं वास्तविक पत्रकारिता के उद्देश्यों को कभी प्राप्त नहीं किया जा सकता।
पत्रकारिता के संदर्भ में गांधी का यह दृष्टिकोण इस बात की पुष्टि करता है कि उनकी पत्रकारिता एवं उनके व्यवहारिक जीवन के सिद्धांतों में किसी भी तरह का दोहरापन नहीं नजर आता। निश्चित तौर पर गांधी के सिद्धांतों एवं उनके द्वारा पत्रकारिता के क्षेत्र में किये गए कार्यों के बीच का यह सामंजस्य ही उन्हें पत्रकारिता के महान मार्गदर्शक के रूप में स्थापित करता है।
पत्रकारिता में गांधी जी का योगदान
पत्रकारिता में गांधी के योगदान की ऐतिहासिकता पर नजर डाले तो उनकी पत्रकारिता की शुरुआत ही विरोध की निडर अभिवयक्ति के तौर पर हुई थी। 20वी सदी के शुरुआती दौर में जब गांधी अफ्रीका में वकालत कर रहे थे उसी दौरान वहाँ की एक कोर्ट ने उन्हें कोर्ट परिसर में पगड़ी पहनने से मना कर दिया था। अपने साथ हुए इस दोहरेपन का विरोध करते हुए गांधी ने डरबन के एक स्थानीय संपादक को चिट्टी लिखकर अपना विरोध जाहिर किया, जिसको उस अखबार द्वारा प्रकाशित भी किया गया था।
अखबार को लिखे उस पत्र को गांधी की पत्रकारिता की दिशा में बढाया गया पहला कदम माना जा सकता है हालाकि तत्कालीन दौर में गांधी को भारत में भी कोई नहीं जानता था। पत्रकारिता के प्रति गांधी की निष्ठा और विश्वास का ही परिणाम रहा कि सन 1903 में गांधी द्वारा अफ्रीका में इन्डियन ओपिनियन का प्रकाशन शुरू हो सका। यह गांधी की सत्यनिष्ठ और निर्भीक पत्रकारिता का असर ही तो था कि अफ्रीका जैसे देश में रंगभेद जैसी विषम परिस्थितियों के बावजूद पाँच अलग-अलग भारतीय भाषाओं में इस अखबार का प्रकाशन होता रहा।
संपादकीय पृष्ठों पर गांधी जी के लेख
इस अखबार के प्रकाशन के साथ-साथ गांधी के निर्भीक स्वर अन्य अखबारों के सम्पादकीय पृष्ठों से भी गूंजने लगे थे। शायद यह वो दौर था जब मोहनदास करमचंद गांधी "महात्मा गांधी" तो नहीं लेकिन "पत्रकार गांधी" बन चुके थे। 1904 में जब महात्मा गांधी को इन्डियन ओपिनियन का संपादक बनाया गया, उसके बाद उन्होंने अपने तमाम लेखों के माध्यम से अफ्रीका में रह रहे भारतीय मूल के लोगों की समस्याओं को उठाया।
गांधी की पत्रकारिता के स्वर इतने निर्भीक रहे कि उनके लेखों से विचलित अफ्रीकी प्रशासन ने 1906 में उन्हें जोहान्सवर्ग की एक जेल में बंद कर दिया। पत्रकारिता में निर्भीकता के चरम का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए गांधी ने जेल से ही संपादन कार्य जारी रखा। अपनी पत्रकारिता की पारदर्शिता को कायम रखने का यह कठिन किन्तु बड़ा फैसला गांधी ही ले सकते थे कि संपादक रहते हुए गांधी ने कभी अखबार के लिए किसी से विज्ञापन तक नहीं लिया।
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गांधी जी के सम्पादकीय लेखों का असर उन दिनों की अफ़्रीकी सरकारों पर भी खूब रहा एवं भारत में अंग्रेजी हुकुमत पर भी उनके लेखों का व्यापक असर दिखने लगा था। गांधी के लेखनी की कुशलता पर लिखते हुए एक अंग्रेजी लेखक ने यहाँ तक कहा है "गांधी के सम्पादकीय लेखों का हर एक वाक्य थाट्स फॉर द डे के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है"।
दाएं हाथ से हिंदी-उर्दू और बायें से अंग्रेजी लिखते थे गांधी
गांधी की पत्रकारिता में भाषाई दायरे भी छोटे नजर आते हैं। दाएँ हाथ से हिन्दी और उर्दू लिखने वाले गांधी बाएँ हाथ से शानदार अंग्रेजी लेखन भी करते थे। गांधी की नजर में पत्रकारिता का उद्देश्य जनजागरण करना था एवं वो जनमानस की समस्याओं को मुख्यधारा की पत्रकारिता में रखने के प्रबल पक्षधर थे।
भारत आने के पश्चात गुलामी की परिस्थितियों से रूबरू गांधी ने सत्य,अहिंसा के समानान्तर पत्रकारिता एवं लेखन को भी अपना हथियार बनाया। गांधी ने स्व-संपादन में यंग इंडिया का प्रकाशन शुरू किया जो लोगों द्वारा बेहद पसंद किया गया। बाद में इसी का गुजराती संस्करण भी नवजीवन के नाम से शुरू किया गया।
समाज के निचले तबके के लोंगो के प्रति गांधी का चिंता उनकी पत्रकारिता में भी खुलकर सामने आती है। दलित-शोषित समाज की आवाज उठाने के उद्देश्यों से महत्मा गांधी द्वारा हरिजन में भी तमाम लेख लिखे गए जिसका तत्कालीन समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ा।
भारतीय ही नहीं वरन विश्व के समूचे पत्रकारिता जगत को जरुरत है कि वो महात्मा गांधी को महज महात्मा गांधी तक सिमिति ना करके उस "पत्रकार गांधी" के मूल्यों,आदर्शों एवं सिद्धांतों को पढ़ें,समझे और आत्मसात करें।