जसवंत सिंह: 72 घंटे अकेले संभाला मोर्चा और 300 चीनी सैनिकों को चटाई धूल, शहादत के बाद आत्मा कर रही रक्षा
नई दिल्ली। जसवंत सिंह रावत, इंडियन आर्मी का वह जवान जिसने 72 घंटे तक अकेले चीनी सेना का मुकाबला किया, उस शहीद पर बनी एक फिल्म '72 आवर्स: मारटायर हू नेवर डायड' शुक्रवार को रिलीज हुई है। जसवंत सिंह ने अकेले दम पर चीनी सेना के 300 सैनिकों को मार गिराया था। आज भी जब गढ़वाढ़ राइफल का कोई जवान जसवंत सिंह की बहादुरी के बारे में बात करता है तो उसकी सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। न सिर्फ गढ़वाल राइफल बल्कि जसवंत सिंह पूरे देश का गौरव हैं। आज भी उनके नाम का स्मारक बना हुआ है और उनकी शहादत के बाद भी उन्हें कई प्रमोशन दिए गए। आइए आपको बताते हैं कि जसवंत सिंह कौन थे और क्यों वह हमेशा अपनी रेजीमेंट, अपने देश और पूरी सेना के लिए गौरव बने रहेंगे।
उत्तराखंड के रहने वाले थे जसवंत सिंह
जसवंत सिंह रावत उत्तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल जिले के तहत आने वाले गांव बादियू के रहने वाले थे। 19 अगस्त 1941 को जन्मे जसवंत सिंह चार गढ़वाल राइफल में तैनात थे। शहीद जसवंत सिंह 17 नवम्बर 1962 को भारत-चीन युद्ध के दौरान अरुणाचल के नूरानांग में चीन सैनिकों के खिलाफ मोर्चा संभाला था।
72 घंटे तक चीनी सैनिकों से लिया मोर्चा
उन्होंने सीमा पर अकेले चीनी सैनिकों को 72 घंटे तक रोक कर रखा था जसवंत सिंह ने उस समय मोर्चा संभाला था जब सेना के कई जवान और ऑफिसर्स शहीद हो चुके थे। जसवंत सिंह ने अकेले ही पांच पोस्ट्स की जिम्मेदारी ली और देखते-देखते 300 चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। जसवंत सिंह हालांकि इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गये थे लेकिन उनकी वीरता हमेशा के लिए अमर हो गई। शुक्रवार को रिलीज फिल्म में उनके 72 घंटों के इसी संघर्ष को पर्दे पर दिखाय गया है। जसवंत सिंह का शहादत को पांच दशक से ज्यादा का समय हो चुका है।
आज भी सीमा की रक्षा में तैनात
आज भी यहां पर तैनात सैनिक मानते हैं कि उनकी आत्मा सीमा की रक्षा के लिए हर पल तैनात रहती है। कई सैनिक मानते हैं कि सीमा पर चौकसी के दौरान अगर किसी जवान को झपकी आ जाती है तो जसवंत की आत्मा चांटा मारकर जगा देती है। जसवंत सिंह को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। जिस जगह पर जसवंत सिंह शहीद हुए थे अरुणाचल प्रदेश में उसी जगह पर उनकी याद में एक मंदिर बनाया गया है और वहां उनकी यूनिफॉर्म के अलावा वह टेलीफोन भी रखा है जिसका प्रयोग वह जंग के समय कर रहे थे।
प्रमोशन और छुट्टियां भी
इसके
अलावा
उनका
कुछ
और
सामान
जैसे
उनके
जूते
और
उनका
बिस्तर
भी
यहां
पर
देखने
को
मिल
जाएगा।
आज
भी
पांच
जवान
हर
पल
उनका
बिस्तर
लगाते
हैं
और
जूते
पॉलिश
करते
हैं
और
उनकी
यूनिफॉर्म
भी
प्रेस
करते
हैं।
आज
भी
जसंवत
को
छुट्टी
दी
जाती
है
और
उनकी
फोटो
को
लेकर
सेना
के
जवान
उनके
पुश्तैनी
गांव
जाते
हैं।
जब
उनकी
छुट्टियां
खत्म
हो
जाती
हैं
तो
पूरे
सम्मान
के
साथ
उसे
वापस
उनकी
पोस्ट
पर
रख
दिया
जाता
है।
भारतीय
सेना
में
जसवंत
सिंह
अकेले
ऐसे
सैनिक
है
जिन्हें
शहादत
के
बाद
भी
प्रमोशन
दिए
गए।