ईश्वरचंद्र विद्यासागर: जिन्हें महिला उत्थान के लिए हमेशा याद किया जाता है, आज उनकी 200वीं जयंती है
नई दिल्ली। ईश्वरचंद्र विद्यासागर की 26 सितंबर को यानी आज 200वीं जयंती है। पूरा देश उन्हें दिल से याद कर रहा है। उन्होंने महिलाओं के उत्थान के लिए कई बड़े काम किए हैं, जिसके चलते आज महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल पा रही हैं। संस्कृत के विद्वान, लेखक, शिक्षक, समाज सुधारक और दार्शनिक ईश्वरचंद्र विद्यासागर को महिलाओं के उत्थान के लिए याद किया जाता है। उनका जन्म 26 सितंबर, साल 1820 में हुआ था और उनके बचपन का नाम ईश्वरचंद्र बंधोपाध्याय था।
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बंगाल प्रेसीडेंसी के मेदिनीपुर जिले में जन्मे ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने 19वीं सदी के मध्य में समाज सुधार आंदोलन चलाए। वह हमेशा समाज द्वारा महिलाओं पर अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाते थे। लिवर कैंसर के कारण 29 जुलाई, 1891 में उनका निधन हो गया था। उन्होंने 71 साल की उम्र में कोलकाता में अंतिम सांस ली। ईश्वर चंद्र विद्यासागर को उनकी 200वीं जयंती पर याद करते हुए चलिए उनके कुछ अनमोल वचन जानते हैं।
- शिक्षा का मतलब सिर्फ सीखना, पढ़ना, लिखना और अंकगणित नहीं है, यह व्यापक ज्ञान प्रदान करने वाली होनी चाहिए, भूगोल, ज्यामिति, साहित्य, प्राकृतिक दर्शन, नैतिक दर्शन, शरीर विज्ञान, राजनीतिक अर्थव्यवस्था आदि में शिक्षा बहुत जरूरी है। हमें ऐसे शिक्षक चाहिए, जो बंगाली और अंग्रेजी दोनों भाषाओं को जानते हों और उसी के साथ धार्मिक पूर्वाग्रहों से मुक्त हों।
- पीड़ा के बिना जीवन नाविक के बिना एक नाव की तरह होता है, जिसमें स्वयं का विवेक नहीं है, एक हल्के हवा के झोंके में भी चल देता है।
- संयम विवेक देता है, ध्यान एकाग्रता प्रदान करता है। शांति, संतुष्टी और परोपकार मनुष्यता देते हैं ।
- दूसरों के कल्याण से बड़ा दूसरा कोई नेक काम और धर्म नहीं होता।
- अपने हित से पहले समाज और देश का हित देखना एक विवेक युक्त सच्चे नागरिक का धर्म होता है।
- मनुष्य चाहे कितना भी बड़ा हो जाए, उसे सदा अपना अतीत याद करते रहना चाहिए।