Interview- टीवी देखना, चाउमिन खाना छोड़ दें योग को धर्म से जोड़ने वाले
[प्रसाद नायक] विश्व योग दिवस के उपलक्ष्य में हम आपको मिलवाने जा रहे हैं आर्ट ऑफ लिविंग की इंटरनेशनल योगा टीचर कमलेश बरवाल से, जो पिछले 11 वर्षों से देश-दुनिया के लोगों को योग सिखा रही हैं। भारत ही नहीं पाकिस्तान से लेकर अमेरिका तक और चीन से लेकर जापान तक कमलेश ने लोगों को योग की टेक्निक्स सिखायी हैं।
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष्य में वनइंडिया से खास बातचीत में कमलेश बरवाल ने योगा के उन पहलुओं को छुआ, जो बहुत लोग नहीं जानते हैं। प्रस्तुत हैं बरवाल से साक्षात्कार के कुछ अंश-
प्र. आपको योग के लिये किसने प्रेरित किया?
उ. मुझे एक न्यूरोसर्जन ने योग के लिये प्रेरित किया और फिर मेरी मां ने मुझे आर्ट ऑफ लिविंग का रास्ता दिखाया। मैंने अपने कॉलेज के दिनों में ही आर्ट ऑफ लिविंग ज्वाइन कर लिया। असल में न्यूरोसर्जन ने मुझे स्वस्थ्य रहने के लिये सुदर्शन क्रिया करने की सलाह दी।
प्र.
आर्ट
ऑफ
लिविंग
बाकी
के
योग
से
अलग
कैसे
है?
उ.
योग
का
मतलब
जोड़ना
है।
मैं
बाकी
योग
संस्थानों
के
बारे
में
तो
नहीं
बता
सकती,
लेकिन
आर्ट
ऑफ
लिविंग
के
योग
में
भक्ति
योग,
ज्ञान
योग,
हठ
योग
और
राज
योग
सब
हैं।
ये
सभी
ध्यान
के
मार्ग
हैं।
हमारा
मकसद
होता
है
व्यक्ति
के
अंदर
छिपे
हुए
गुणों
को
उभार
कर
ऊपर
लाना,
ताकि
वह
उन्हें
अपनी
ताकत
के
रूप
में
इस्तेमाल
कर
सके।
आर्ट
ऑफ
लिविंग
का
मकसद
होता
है
हर
व्यक्ति
के
चेहरे
पर
मुस्कुराहट
लाना।
उसके
अंदर
धैर्य
स्थापित
करना
और
ढेर
सारी
खुशियां
भरना।
प्र.
योग
और
ध्यान
में
क्या
अंतर
है?
योग
का
मतलब
होता
है
शरीर
के
सभी
अंगों
को,
मस्तिष्क
और
आत्मा
से
जोड़ना।
इसके
कई
सारे
तरीके
होते
हैं
और
ध्यान
योग
का
ही
एक
अतिरिक्त
भाग
है।
जो
योग
को
और
ज्यादा
प्रभावी
बनाता
है।
चूंकि
योग
सिर्फ
शरीर
को
स्वस्थ्य
रखने
के
लिये
नहीं
होता,
आत्मा
को
भी
स्वस्थ्य
बनाता
है,
और
उसके
लिये
ध्यान
का
होना
बहुत
जरूरी
होता
है।
सिर्फ
आसन
करने
से
शरीर
स्वस्थ्य
नहीं
होता,
ध्यान
भी
जरूरी
होता
है।
प्र.
कई
सारे
ध्यार्म
स्कूल-कॉलेजों
में
योग
की
शिक्षा
का
विरोध
कर
रहे
हैं,
क्या
योग
वाकई
में
एक
विशेष
धर्म
से
जुड़ा
है?
उ.
किसी
भी
प्रकार
का
ज्ञान
पूरी
दुनिया
से
जुड़ा
होता
है।
वह
किसी
धर्म
की
संपत्ति
नहीं
होता।
क्षीर्ण
मानसिकता
के
लोग
ही
ऐसी
बातें
करते
हैं।
योग
का
जन्म
भारत
में
हुआ
और
प्राचीन
काल
में
हिंदू
योगियों
ने
उसे
आगे
बढ़ाया।
उन्होंने
यह
सब
मानवजाति
के
कल्याण
के
लिये
किया,
न
कि
अपने
धर्म
के
लोगों
तक
सीमित
रखने
के
लिये।
अगर
टेलीजिवन
का
अविष्कार
किसी
हिंदू
ने
किया
होता,
तो
क्या
वे
टीवी
देखना
छोड़
देते।
जो
लोग
योग
से
इंकार
करते
हैं,
उनसे
पूछना
चाहूंगी
कि
क्या
वे
हर
उस
चीज
को
अपने
जीवन
से
अलग
कर
सकते
हैं,
जो
किसी
विशेष
धर्म
के
लोगों
ने
इजात
की
है।
अब
चाईनीज़
फूड
को
ही
ले
लीजिये।
क्या
उसे
खाने
से
आप
चाइनीज़
हो
जायेंगे?
वैसे
ही
योग
करने
से
कोई
हिंदू
नहीं
बन
जायेगा।
प्र.
बीमारियों
के
इलाज
में
योग
किस
हद
तक
कारगर
है?
उ.
मैं
इस
पर
एक
उदाहरण
देना
चाहूंगी।
यूनिवर्सिटी
ऑफ
मैरीलैंड
स्कूल
ऑफ
नर्सिग
ने
2010
में
एक
अध्ययन
किया,
जिसमें
81
रिसर्च
स्कॉलर्स
ने
अलग-अलग
जगहों
पर
योग
के
माध्यम
से
स्वास्थ्य
को
होने
वाले
लाभ
का
अध्ययन
किया।
उस
रिसर्च
में
पाया
गया
कि
योग
ने
एरोबिक्स
को
भी
पछाड़
दिया।
गहरी
सांस
के
साथ
प्राणायाम
करने
से
ही
तमाम
बीमारियां
दूर
भाग
जाती
हैं।
प्र.
क्या
योग
से
साइनस,
सिर
दर्द,
जैसी
साधारण
बीमारियां
या
कैंसर
जैसी
जटिल
बीमारियों
को
ठीक
कर
सकता
है?
उ.
नियमित
रूप
से
योग
करने
पर
शरीर
की
सभी
प्रणालियां
स्वस्थ्य
होती
हैं।
योग
के
माध्यम
से
हमारे
शरीर
के
अंदर
के
टॉक्सिक
एजेंट
बाहर
निकलते
हैं।
रक्त
संचार
अच्छा
होता
है
और
व्यक्ति
को
जल्दी
इंफेक्शन
नहीं
लगता
है।
प्र.
हर
रोज
30
मिनट
के
योग
से
क्या-क्या
लाभ
मिल
सकते
हैं?
उ. जो व्यक्ति प्रति दिन 30 मिनट योग करता है, उसकी पाचन, श्वास क्रिया, रक्त चाप, आदि सब कुछ सही रहता है। बढकोनासन, नटराजासन, शिशुआसन और पवनमुक्तासन वे क्रियाएं हैं, जो तमाम बीमारियों को दूर भगाते हैं। योग के साथ ध्यान करने से व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ्य रहता है। सबसे अच्छी बात यह है कि योग से प्रतिरक्षण प्रणाली मजबूत होती है और बैक्टीरिया-वायरस आदि हम पर हमला नहीं कर पाते हैं। कपालभाति से श्वास तंत्र अचछा होता है, बस्त्रिका से फेफड़े स्वस्थ्य होते हैं, नाडीशोधन से साइनस की समस्या से छुटकारा मिलता है। सुदर्शन क्रिया थॉयराइड, हाई ब्लड प्रेशन, कैंसर आदि के उपचार में सहायक होती है।
प्र.
क्या
योग
के
माध्यम
से
व्यक्ति
अपनी
लाइफस्टाइल
में
परिवर्तन
ला
सकता
है?
उ.
हां
योग
ही
तो
हमें
जीना
सिखाता
है।
यह
जीवन
में
खुश
रहने
की
कुंजी
है।