International Yoga Day: जानिए कहां कहते हैं योग को 'इस्लामी व्यायाम' और क्यों?
नई दिल्ली। 21 जून को पूरा विश्व योग दिवस मनाएगा, योग तन-मन को स्वस्थ करने की प्रक्रिया है, जिसे कुछ लोगों ने धर्म से जोड़ दिया है, जबकि 'योग' किसी खास मजहब से संबधित नहीं है बल्कि यह एक आध्यात्मिक प्रकिया है जिसे करने से चित्त शांत और शारीरिक लाभ होता है।
सूफी संगीत के विकास में 'भारतीय योग' का हाथ
इस्लाम धर्म में भी कहा गया है कि सूफी संगीत के विकास में 'भारतीय योग' का काफी बड़ा हाथ है क्योंकि योग मन की चंचलता पर रोक लगाता है और ईश्वर के ध्यान में मदद करता है। सूफी संगीत तो ईश्वर की इबादत है और इस इबादत को बल देता है 'योग'।
'योग' को 'इस्लामी व्यायाम' करार दिया गया
थोड़ा इतिहास पर गौर करेंगे तो आप पायेंगे कि मिस्र में 'योग' को 'इस्लामी व्यायाम' करार दिया गया था और 'नमाज' को 'योग' और 'योग' को 'नमाज' बताया गया था क्योंकि 'योग' में मन -मस्तिष्क पर संयम रखा जाता है और 'नमाज' में भी यही होता है।
'नमाज' और 'योग' दोनों एक...
अशरफ एफ निजामी ने 'योग' विषय पर एक किताब भी लिखी है जिसमें उन्होंने 'नमाज' और 'योग' को एक बताते हुए लिखा है कि जिस तरह से 'नमाज' पढ़ने से पहले 'वजू' की प्रथा है ठीक उसी तरह से 'योग' करने से पहले कहा जाता है कि इंसान 'शौच' करके आये। आशय दोनों का शारीरिक सफाई से ही है।
हार्ट और बीपी कंट्रोल में रहते हैं...
'नमाज' से पहले इंसान 'नियत' करता है तो योग करने से पहले 'संकल्प' लिया जाता है। जब नमाज 'कयाम' के रूप में अता की जाती है तो वो वज्रआसन होता है। नमाज में भी 'ध्यान' लगाया जाता है और 'योग' में भी यही होता है। 'सजदा' करने के लिए इंसान जैसे एक्शन लेता है वो योग में 'शशंक आसन' कहा जाता है, जिससे हार्ट और बीपी कंट्रोल में रहते हैं।
इस्लामिक देशों में 'योग' को गलत नहीं माना गया है...
इसलिए 'योग' का अर्थ केवल शारीरिक और मानसिक परेशानियों से मुक्ति पाने से है ना कि किसी धर्म विशेष से इसलिए इस्लामिक देशों में 'योग' को गलत नहीं माना गया है। हालांकि ये और बात है कि कुछ कट्टरपंथियों ने इस किसी समुदाय और धर्म विशेष से जोड़ दिया है।
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