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International Women's Day: क्यों ना इस महिला दिवस पर पुरुषों की भी बात हो ?

By Dr. Neelam Mahendra
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नई दिल्ली। 8 मार्च को जब सम्पूर्ण विश्व के साथ भारत में भी 'महिला दिवस पूरे जोर शोर से मनाया जाता है और खासतौर पर जब 2018 में यह आयोजन अपने 100 वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है तो इसकी प्रासंगिकता पर विशेष तौर पर विचार करना आवश्यक हो जाता है। जब आधुनिक विश्व के इतिहास में सर्वप्रथम 1908 में 15000 महिलाओं ने न्यूयॉर्क शहर में एक विशाल जुलूस निकाल कर अपने काम करने के घंटों को कम करने, बेहतर तनख्वाह और वोट डालने जैसे अपने अधिकारों के लिए अपनी लड़ाई शुरू की थी तो, इस आंदोलन से तत्कालीन सभ्य समाज में महिलाओं की स्थिति की हकीकत सामने आई थी।

दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य

दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य

उससे भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि अगर वोट देने के अधिकार को छोड़ दिया जाए तो पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के वेतन और समानता के विषय में भारत समेत सम्पूर्ण विश्व में महिलाओं की स्थिति आज भी चिंतनीय है। विश्व में महिलाओं की वर्तमान सामाजिक स्थिती से सम्बन्धित एक रिपोर्ट के अनुसार, अगर भारत की बात की जाए, तो 2017 में लैंगिक असमानता के मामले में भारत दुनिया के 144 देशों की सूची में 108 वें स्थान पर है जबकि पिछले साल यह 87 वें स्थान पर था। किन्तु केवल भारत में ही महिलाएँ असमानता की शिकार हों ऐसा भी नहीं है। इसी रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि ब्रिटेन जैसे विकसित देश की कई बड़ी कंपनियों में भी महिलाओं को उसी काम के लिए पुरुषों के मुकाबले कम वेतन दिया जाता है।

भारतीय महिलाओं का अनपेड वर्क

भारतीय महिलाओं का अनपेड वर्क

वेतन से परे अगर उस काम की बात की जाए जिसका कोई वेतन नहीं होता, जैसा कि हाल ही में अपने उत्तर से विश्व सुन्दरी का खिताब जीतने वाली भारत की मानुषी छिल्लर ने कहा था, और जिसे एक मैनेजिंग कंसल्ट कम्पनी की रिपोर्ट ने काफी हद तक सिद्ध भी किया। इसके मुताबिक, यदि भारतीय महिलाओं को उनके अनपेड वर्क अर्थात वो काम जो वो एक गृहणी, एक माँ, एक पत्नी के रूप में करती हैं, उस के पैसे अगर दिए जाएं तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था में 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान होगा। और इस मामले में अगर पूरी दुनिया की महिलाओं की बात की जाए तो यूनाइटेड नेशन की रिपोर्ट के अनुसार उन्हें 10 ट्रिलियन अमेरिकी डालर अर्थात पूरी दुनिया की जीडीपी का 13% हिस्सा देना होगा।

संवैधानिक अधिकार

संवैधानिक अधिकार

तो जब हर साल महिला दिवस पर महिलाओ की लैंगिक समानता की बात की जाती है, सम्मान की बात की जाती है, उनके संवैधानिक अधिकारों की बात की जाती है लेकिन उसके बावजूद आज 100 सालों बाद भी धरातल पर इनका खोखलापन दिखाई देता है तो इस बात को स्वीकार करना आवश्यक हो जाता है महिला अधिकारों की बात पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के प्रति पुरुषों की सोच में बदलाव लाए बिना संभव नहीं है। लेकिन सबसे पहले इस बात को भी स्पष्ट किया जाए कि जब महिला अधिकारों की बात होती है तो वे पुरुष विरोधी या फिर उनके अधिकारों के हनन की बात नहीं होती बल्कि यह तो सम्पूर्ण मानवता के, दोनों के ही उन्नत हितों की, एक सभ्य एवं समान समाज की बात होती है।

इस बार महिला दिवस पर पुरुषों से बात हो ...

इस बार महिला दिवस पर पुरुषों से बात हो ...

इसलिए इस बार महिला दिवस पर पुरुषों से बात हो ताकि उनका महिलाओं के प्रति उनके नजरिए में बदलाव हो। जिस प्रकार कहा जाता है कि एक लड़की को शिक्षित करने से पूरा परिवार शिक्षित होता है उसी प्रकार एक बालक को महिलाओं के प्रति सम्मान और संवेदनशीलता की शिक्षा देने से उन पुरुषों का और उस समाज का निर्माण होगा जो स्त्री के प्रति संवेदनशील होगा। क्योंकि आधी आबादी को अनदेखा करके विकास और आधुनिकता की बातें विश्व में तर्क हीन ही सिद्ध होंगी।

स्त्री और पुरुष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं ...

स्त्री और पुरुष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं ...

जरूरत इस बात को समझने की है कि स्त्री और पुरुष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं प्रतिस्पर्धी नहीं और मानव सभ्यता के विकास एवं एक सभ्य समाज के निर्माण के लिए एक दूसरे के प्रति संवेदनशीलता तथा सम्मान का भाव आवश्यक है और भारत की अनेकों नारियों ने समय समय पर यह सिद्ध किया है कि वह अबला नहीं सबला है, केवल जननी नहीं ज्वाला है। वो नाम जो कल झाँसी की रानी था या कल्पना चावला था, आज देश की पहली डिफेन्स मिनिस्टर निर्मला सीतारमन, इंटर सर्विस गार्ड आँफ आँनर का नेतृत्व करने वाली पहली भारतीय वायुसेना की विंग कमांडर पूजा ठाकुर या फिर भारतीय वायुसेना में फाइटर प्लेन मिग 21 उड़ाने वाली अवनी चतुर्वेदी है। तो महिला दिवस की सार्थकता महिलाओं के अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता में नहीं अपितु पुरुषों के उनके प्रति अपना नजरिया बदल कर संवेदनशील होने में है।

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English summary
International Women's Day (IWD) is celebrated on March 8 every year. It commemorates the movement for women's rights. This article based on Women's condition of India.
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