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दुनिया को योग का संदेश दे रहा भारत भूल गया योग की नगरी मुंगेर को

By मुकुन्द सिंह
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मुंगेर (मुकुन्द सिंह)। भारत सहित पूरे विश्व में आज योग दिवस बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। योग दिवस को लेकर पूरे देश में भारत ने एक बार फिर लोगों को स्वास्थ के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए योग का संदेश दिया। लेकिन इस योग दिवस के अवसर पर बिहार के मुंगेर में स्थित प्राचीन योग विद्यालय की बात न करना और भूल जाना यह बहुत ही बड़ी बेईमानी होगी। आपको बताते चलें की बिहार की योग नगरी मुंगेर पूरे विश्व में मशहूर है। योग दिवस के अवसर पर देश से लेकर विदेश सभी की दृष्टि योग की नगरी मुंगेर और यहां के लोगों पर गड़ी रहती है।

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India forgets Munger, the original land of yoga on International Yoga Day

मुंगेर को ऐसे ही योग की नगरी नहीं कहा जाता है। इसके पीछे भी कई ऐसे सिद्ध योगी और गुरुओं की कड़ी मेहनत और लगन का प्रतिफल है कि इसे आज भी लोग योग की नगरी के नाम से जानते हैं। मुंगेर को इस मुकाम तक पहुंचाने में कई सिद्धि योग का हाथ है लेकिन इन में से सबसे पहला नाम बिहार योग विशविद्यालय मुंगेर के प्रेरक और संस्थापक श्रीस्वामी सत्यानंद सरस्वती का सामने आता है जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से मुंगेर की इस नगरी को योग की नगरी बना दिया।

तो इस योग की नगरी में योग करने के लिए देश के कई गणमान्य व्यक्ति भी शामिल हुए हैं। जिनमें से बाबा रामदेव, न्यूजीलैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लिथ हालोस्की, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम तथा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व मोरारजी देसाई समेत कई जाने माने लोग शामिल हो चुके हैं। तो आइए आपको बताते हैं योग की नगरी मुंगेर के बारे में कुछ खास बातें।

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कैसे बना दिया श्रीस्वामी सत्यानंद सरस्वती ने मुंगेर को योग की नगरी

वर्ष 1963 में मुंगेर आए सत्यानंद सरस्वती ने लोगों को योग का प्रशिक्षण देना शुरू किया। वहीं मुंगेर जिला परिषद में योग विद्यालय का भी स्थापना किया गया। आपको बताते चलें कि मुंगेर स्थित गंगा तट के पास एक पहाड़ी पर कुछ असामाजिक तत्व के लोगों ने अपना अड्डा बना लिया था। जिसकी वजह से लोग इस रास्ते से दिन में भी गुजरने के लिए कतराते रहे थे। वहीं उसी रास्ते में पड़ने वाले ऐतिहासिक करण चौराहा प्राचीन जर्जर भवन पर प्रशासन की नजर तो थी लेकिन असामाजिक तत्वों के तांडव के वजह से वह और भी जर्जर हालत में पहुंच चुकी थी।

लेकिन स्वामी सत्यानंद सरस्वती नीडर भाव से वहां पहुंचे और अपने गुरु स्वामी शिवानंद सरस्वती की प्रेरणा से शिवानंद योगासन किया स्थापना वर्ष 1964 मे बसंत पंचमी के दिन स्मृति में अखंड दीप जलाते हुए किया। यह अखंड दीप आज दीप प्रज्वलित है। जिसके बाद तब से लेकर आज तक सत्यानंद सरस्वती के द्वारा स्थापित किया गया बिहार स्कूल ऑफ योगा योग में बेहतर शिक्षा देने का काम करते हुए पूरे विश्व में करीब 56 से अधिक देशों में योग आश्रम की शाखाएं खुलते हुए अपना नाम रोशन किया है। वहीं हर वर्ष 21 जून को विश्व योग दिवस के अवसर पर यह विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।

56 अधिक देशों के लोग बिहार के इस योग पद्धति का कर रहे हैं योगाभ्यास

प्राचीन काल से ही योग ऋषि मुनियों का कला माना जाता है। लेकिन जन जन तक इस योग की कला को पहुंचाने में सबसे पहला नाम बिहार के इस स्कूल ऑफ योगा को जाता है। योग विद्या विज्ञान के साथ जीवन शैली है जिसे ऋषि मुनियों के द्वारा हजारों सालों से विकसित और वरिष्ठ करते आए हैं। आज योगी आदित्य सारी दुनिया में फैल चुकी है। तो यूं कहें कि योग की यह विद्या लोगों की दिनचर्चा भी बन चुकी है।

बिहार योग पद्धति पर आधारित योगाभ्यास आज विश्व के लगभग 56 से अधिक अर्जेंटिना, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, ब्राजील, बुल्गारिया, कनाडा, चिली, चीन, कोलंबिया, क्रोएशिया, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, यूनान, ईरान, इराक, आयरलैंड, इटली, जापान, कजाकिस्तान, लेबनान, नेपाल, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, पुर्तगाल, स्कॉटलैंड, रूस, स्पेन, अमेरिका, लंदन, दक्षिण अफ्रीका, स्विट्जरलैंड सहित कई अन्य देशों में किया जा रहा है।

आपको बताते चलें कि यह सभी बिहार योग पद्धति के आधारित योग केन्द से संचालित किए जाते हैं। तथा इस पद्धति के माध्यम से लोगों को स्वस्थ जीवन का गुर सिखाया जाता है। तो बिहार के मुंगेर जिले की योग पद्धति आज देश में नहीं विदेश में भी प्रमुखता से पढ़ी जाती है। आपको बताते चलें आज भी फ्रांस की शिक्षा पद्धति में भी मुंगेर योग संस्थान के संस्थापक सत्यानंद के योग की पढ़ाई जाती है।

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English summary
India forgets Munger, the original land of yoga on International Yoga Day.
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