10 अगस्त, 1942 को कनाट प्लेस में जली थीं गोरों की दूकानें
नई दिल्ली (विवेक शुक्ला)। 10 अगस्त,1942 को राजधानी के कनॉट प्लेस में आजादी के मतवालों ने फूंकी थी गोंरों की दूकानें। एक दिन पहले बंबई के आजाद मैदान में कांग्रेस के खास अधिवेशन में भारत छोड़ों का आहवान किया गया। इस प्रस्ताव की जानकारी दिल्ली और देश के दूसरे भागों में अगले दिन पहुंची। उसके बाद निकल पड़े थे आजादी के दीवाने सड़कों पर।
कनाट प्लेस में आर्मी एंड नेवी, लारेंस एड म्यो और दूसरे बहुत से अंग्रेजों के शो-रूम आग के हवाले कर दिए गए थे। सुबह से ही कांग्रेस के कार्यर्ता और दिल्ली विश्वविद्लाय के छात्र कनाट प्लेस पर बड़ी तादाद में पहंचने लगे थे। उन्होंने यहां पर चुन-चुनकर अंग्रेजों के शो-रूम जलाए थे। हालात बेहद विस्फोटक थे। पुलिस कुछ करने की हालत में नहीं थी।
फिर नहीं दिखा मंजर
उस दिन के शायद एकमात्र गवाह अब हमारे बीच में आर.पी.पुरी साहब हैं। वे सेट्रल न्यूज एजेंसी के मालिक हैं। ये देश की सबसे बड़ी किताबों, अखबारों और बुक्स की दूकान होनी चाहिए। पुरी साहब ने एक बार वन इंडिया को बताया था कि कनाट प्लेस ने उस तरह का मंजर फिऱ कभी नहीं देखा। वे अब 93 साल के हैं।
15 अगस्त- दिल्ली का पुराना किला और दर्द से करहाते मुसलमान
अधूरी आजादी
इस बीच, वरिष्ठ लेखक डी.एस.रावत कहते हैं कि 15 अगस्त 1947 मेंअंग्रेजों के जाने के 68 साल बाद भी नहीं मिली आजादी।देश की आजादी को गुलाम हुक्मरानों ने इंडिया व अंग्रेजी के बेडियों में जकड़ कर गुलाम बनाने का देशद्रोह किया हुआ है ,भारतीय भाषा आंदोलन संसद की चौखट पर देश की आजादी का निर्णायक संघर्ष विगत 28 महीनों से छेडे हुए है।
यह ध्यान रखें कि देश की आजादी अब केवल शहीदों की स्मृति में घडियाली आंसू बहाने या उनके चित्रों पर पुष्प मालायें चढ़ाने से या भारत माता की जय कहने मात्र से नहीं मिलेगी अपितु इसके लिए देश के लोकतंत्र, मानवाधिकार व आजादी को निर्ममता से रौंद रही इंडिया व अंग्रेजी की गुलामी की बेडियों से मुक्ति करने से ही मिलेगी।