Independence Day: क्यों खास है जम्मू-कश्मीर का लाल चौक, क्या है इसका इतिहास?
नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद राज्य में अतिरिक्त सुरक्षाबलों की तैनाती की गई है,इस बीच खबरों का बाजार गर्म रहा कि गृहमंत्री अमित शाह 15 अगस्त को श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहरा सकते हैं, जिसके बाद से ही लाल चौक फिर से चर्चा के केंद्र में आ गया, हालांकि आज सरकार की ओर से बयान जारी करके ये साफ कर दिया है कि गृहमंत्री अमित शाह का 15 अगस्त को जम्मू-कश्मीर या श्रीनगर जाने का कोई प्लान नहीं है।
क्यों खास है लाल चौक ?
फिलहाल अमित शाह तो कश्मीर नहीं जा रहे लेकिन इस बीच एक बार फिर से लाल चौक लोगों के बीच बहस का मुद्दा बन गया, सबके जेहन में केवल एक ही सवाल आ रहा है कि आखिर लाल चौक भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सबब क्यों हैं, तो इसके पीछे की वजह बेहद खास है।
श्रीनगर के लालचौक पर तिरंगा फहराया
दरअसल आज से 27 साल पहले पहले भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी के साथ वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीनगर के लालचौक पर तिरंगा फहराया था। नरेंद्र मोदी उस समय मुरली मनोहर जोशी की उस टीम के सदस्य थे, जो आतंकवाद के उस दौर में श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने पहुंची थी। भाजपा ने कन्याकुमारी से एकता यात्रा शुरु करते हुए 26 जनवरी 1992 को लालचौक में तिरंगा फहराने के बाद यात्रा को संपन्न करने का ऐलान किया था।
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15 मिनट में ही फहरा दिया तिरंगा
जिसके बाद राज्य में स्थिति बेहद तनावपूर्ण हो गई थी, आतंकियों और अलगाववादियों ने खुलेआम ऐलान किया था कि लाल चौक पर तिरंगा नहीं फहराने दिया जाएगा। लालचौक पूरी तरह से युद्ध क्षेत्र बन गया था, लेकिनकड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच मुरली मनोहर जोशी व उनकी टीम के सदस्य के रूप में शामिल नरेंद्र मोदी व अन्य नेताओं ने मात्र 15 मिनट में ही तिरंगा फहरा दिया था, झंडा फहराने के समय आतंकवादियों ने राकेट भी दागे थे लेकिन सारे नेता सुरक्षित दिल्ली लौटे थे।
जानिए लाल चौक का इतिहास
कश्मीर के लाल चौक का नाम एक सिख वाम नेता और बुद्धिजीवी बीपीएल बेदी ने मॉस्कों के मशहूर 'रेड स्क्वायर' के नाम पर रखा था।
प्रधानमंत्री जवाहर लाल ने फहराया था तिरंगा
साल 1948 में लाल चौक से भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने तिरंगा फहराया था और यहीं से उन्होंने यह वादा किया था कि कश्मीर को अपना राजनैतिक भविष्य चुनने के लिए जनमत का मौका मिलेगा।
शेर-ए-कश्मीर ने सुनाया था ये शेर
तब तत्कालीन जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला बहुत ही खुश हुए थे। शेर-ए-कश्मीर कहलाने वाले शेख अब्दुल्ला ने नेहरू के प्रति अपना प्रेम प्रकट करते हुए अमीर खुसरो का शेर सुनाया, जिसका अर्थ है, ‘मैं आपका हुआ, आप मेरे हुए, अत: कोई नहीं कह सकता कि हम अलग हैं।'