नेताजी सुभाष चंद्र बोस के अंतिम दिन का विवरण पढ़कर आंखें हो जायेंगी नम
[Historical Facts] 18 अगस्त 1945 को सुबह जापानी एयरफोर्स का लड़ाकू विमान वियेतनाम में टोरेन से उड़ा। उस विमान में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ 13 अन्य यात्री सवार थे। और साथ में थे पायलट। उस वक्त विमान में जापान आर्मी के लेफ्टनेंट जनरल सुनामासा शिदेई भी थे। विमान को हेइतो से तेपेई और डायरेन से होते हुए टोक्यो जाना था।
मेजर जनरल शाह नवाज़ खान के नेतृत्व में भारत सरकार द्वारा 1956 में बनायी गई नेताजी इंक्वायरी कमेटी को बताया गया, "मौसम एकदम अच्छा था, विमान के दोनों इंजन सही से काम करर हे थे।" पायलट ने अचानक तय किया कि विमान को हेइतो में नहीं उतारेंगे, सुबह या दोपहर होने से पहले सीधे तेपेई में विमान को उतारेंगे।
पढ़ें-
बड़ा
खुलासा-
नेताजी
ने
लिया
था
1948
के
चीन-भारत
युद्ध
में
हिस्सा
जापानी
वायुसेना
के
अधिकारी
व
उसी
विमान
के
यात्रियों
में
से
एक
मेजर
तारो
कोनो
ने
बताया,
"मैंने
पाया
कि
विमान
में
बायीं
ओर
लगा
इंजन
ठीक
ढंग
से
काम
नहीं
कर
रहा
है।
उड़ान
भरने
से
पहले
मैं
विमान
के
मशीनी
भाग
की
ओर
गया
और
पाया
कि
इंजन
ठीक
ढंग
से
काम
कर
रहा
है।"
कैप्टन नाकामुरा जो एयरपोर्ट के ग्राउंड इंजीनियर इंचार्ज थे, ने बताया, "बायां इंजन डिफेक्टिव था। पायलट ने मुझे बताया कि वह इंजन एकदम नया है। पायलट ने मुझे टेस्ट फ्लाइट करके भी दिखाई।" जिस वक्त नेताजी का विमान क्षतिग्रस्त हुआ उस वक्त कैप्टन नाकामुरा ग्राउंड ड्यूटी पर तैनात थे।
सुभाष चंद्र बोस के एडीसी और सह यात्री कर्नल हबीब उर रहमान ने बताया, "एक बड़ा धमाका हुआ और विमान हवा में क्षतिग्रस्त हो गया।"
विमान क्षतिग्रस्त होने के बाद का मंजर कैसा था- आइये पढ़ते हैं उन लोगों की जुबानी जो वहां मौजूद थे। एक-एक स्लाइड को आगे बढ़ाते जाइये और पढ़ते जाइये नेताजी के अंतिम दिन की दास्तां। (नोट- इसमें तस्वीरें नेताजी के जीवन की हैं, और सामने टेक्स्ट उनकी मौत से जुड़ा)
कैप्टन नाकामूरा ने कहा-
"उड़ान भरने के कुछ ही देर बाद आसमान में विमान बायीं ओर झुक गया और मैंने देखा विमान से कुछ गिर रहा है, बाद में मैंने पाया कि वह विमान के इंजन का एक भाग था। विमान में धमाका जमीन से करीब 30 से 40 मीटर की ऊंचाई पर हुआ। कॉनक्रीट रनवे से करीब 100 मीटर की दूरी पर विमान क्षतिग्रस्त हुआ और उसके आगे के हिस्से मे तुरंत आग लग गई।"
कर्नल रहमान ने बताया
"नेताजी मेरी ओर मुझे और बोले, 'आगे से निकलें, पीछे से रास्ता नहीं है।' चूंकि प्रवेश द्वार पर पहले ही कुछ सामान रखा था, सिकी वजह से रास्ता ब्लॉक था, इसलिये नेताजी आग के बीच से होते हुए निकल गये, वास्तव में आग से गुजरे और मैंने भी वही रास्ता अपनाया। जैसे ही मैं बाहर निकला तो देखा करीब 10 गज की दूरी पर वो खड़े हैं और उलटी दिशा में देख रहे हैं।"
कर्नल रहमान ने बताया
"नेताजी के कपड़ों पर आग लगी हुई थी, मैं दौड़ कर पहुंचा और उनके कपड़ों पर लगी आग बुझाई।नेताजी की पैंट पर ज्यादा आग नहीं लगी थी। नेताजी के कपड़ों में आग बुझी तो मैंने उन्हें जमीन पर लिटा दिया। तब मैंने देखा कि उनके सिर पर बायीं ओर गहरा घाव है। उनका चेहरा बुरी तरह झुलस चुका था और उनके बाल जल चुके थे।"
नेताजी ने कर्नल से पूछा
विमान के मलबे में आग की लपटे उठ रही थीं, और चारों तरफ शव बिखरे पड़े थे, तभी नेताजी ने कर्नल से पूछा, "आपको ज्यादा तो नहीं लगी? मैाने कहा मुझे लग रहा है कि मैं पूरी तरह ठीक हूं, आपको कैसा महसूस हो रहा है? नेताजी ने जवाब दिया- मुझे लगता है कि मैं बचूंगा नहीं।"
नेताजी के अंतिम शब्द
"जब आप अपने मुल्क वापस जायें तो मुल्की भाईयों को बताना कि मैं आखिरी दम तक मुल्क की आजादी के लिये लड़ता रहा हूं। वो जंग-ए-आजादी को जारी रखें। हिंदुस्तान जरूर आजाद होगा, उसको कोई गुलाम नहीं रख सकता।"
लेफ्टनेंट शीरो नोनोगाकी (विमान में थे)
विमान दुर्घटना के बाद जब मैंने नेताजी को देखा तो वे विमान के बायें बंख के एक छोर के पास खड़े थे। उनके कपड़ों में आग लगी हुई थी। उनका असिस्टेंट आग बुझाने के प्रयास कर रहा था। चूंकि नेताजी विमान की पेट्रोल टंकी के बहुत करीब बैठे थे, इसलिये दुर्घटना के वक्त विमान का पेट्रोल उनके शरीर पर छलक आया। मैंने उनके शरीर को जलते हुए देखा।
अलग-अलग बयान पर कहानी एक
कर्नल रहमान, लेफ्टनेंट कर्नल नोनोगाकी, मेजर कोनो और कैप्टन नाकामुरा के बयान थोड़े अलग-अलग हैं। ये सबूत 11 साल बाद जुटाये गये हैं। लेकिन एक बात तो पक्की है, वो यह कि इस हादसे में नेताजी बहुत बुरी तरह जले थे। क्योंकि बचाव दल नेताजी को ननमन मिलिट्री हॉस्पिटल लेकर गया था। तब उनकी हालत बेहद गंभीर थी।
नेताजी की गिरफ्तारी के लिये गई टीम
सितंबर 1945 में जब ब्रिटिश सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की गिरफ्तारी के लिये एक टीम- मेसर्स फिने, डेविस, एचके रॉय और केपी दे को बैंगकॉक, साइगाओं और तेपेई भेजा, तो वे सभी विमान दुर्घटना की कहानी लेकर ही लौटे।
विमान हादसे की जांच
मई 1946 में लेफ्टनेंट कर्नल जेजी विग्गेस को लॉर्ड माउंटबेटन ने इस मामले की जांच सौंपी। उन्होंने छह अलग-अलग जापानी मिलिट्री अधिकारियों से पूछताछ की और नेताजी के सहयात्रियों से मिले। उन्होंने भी यही बताया कि नेताजी की मौत विमान दुर्घटना में हुई।
क्या है अस्पताल का रहस्य?
अगस्त 1946 में भारतीय फ्री प्रेस जर्नल न्यूस पेपर के हरिन शाह तेपेई गये और वे भी इसी खबर के वाथ लौटे। अस्पताल ले जाने के बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ क्या हुआ, यह अभी भी रहस्य बना हुआ है।