सियासी रोटियों संग तपती बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद
आंचल श्रीवास्तव
[बनारस जंक्शन] वाराणसी की यात्रा में आज आपको बताती हूँ ज्ञानवापी मन्दिर के विषय में। हालाकिं यह बात अभी भी प्रासंगिक है और विवादास्पद कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण विश्वनाथ मन्दिर के ध्वस्त अंशों पर हुआ है। पर इस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहती क्योंकि ये सब सियासी खेल है जिनका हम आम लोगों से कोई सरोकार नहीं। हम बस इश्वर को मानते हैं फिर हो भगवान हो या अल्लाह।
रंजिशों की गवाह रही
विश्वनाथ मन्दिर के परिसर में मुख्य मन्दिर के एकदम बगल में बनी ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण सन 1664 में औरंगजेब ने करवाया था। मन्दिर के कुछ अवशेष अज भी मस्जिद की दीवारों पर मिलते हैं। मन्दिर और मस्जिद दोनों ने ही सदियों से धार्मिक रंजिशों को झेला है। कभी ब्राह्मणों को इस्लामी शिक्षा से परेशानी हुई तो कभी मुसलमानों को हिन्दू रीतियों से। पर हमेशा से ये सब करने वाले ऊँचे दर्जे के आला लोग होते थे और इन लड़ाइयों में आम आदमी पिस जाता था।
कुएं के नाम पर पड़ा मस्जिद का नाम
मस्जिद का नाम एक कुए के नाम से रखा गया था जो ज्ञान वापी कहलाता था जिसका मतलब है ज्ञान का कुआं। यह आज भी मस्जिद परिसर के भीतर है। हिन्दू पंडित और ज्ञानी कहते हैं की आज भी विश्वनाथ का वास्तविक शिवलिंग इस कुएं के भीतर है। यह उस समय का है जब मन्दिर का विध्वंस हुआ था। इन बातों का उल्लेख ए शेर्रिंग (1886) की किताब अ सेक्रेड सिटी ऑफ़ हिंदूज़ में मिलता है।
कई कथाएं प्रचलित है
कुछ जगहों पर कुछ अन्य बातों का विविरण है जैसे की नन्दी की प्रतिमा और मस्जिद के बराबर मे विश्वनाथ मन्दिर का निर्माण, मस्जिद के निर्माण के लगभग सौ वर्ष बाद 1780 मे करवाया गया था ।वास्तव मे जिस समय बनारस की आलमगीरी मस्जिद बनाई गई थी, तब वहाँ कोई मन्दिर नहीं था.... मस्जिद के पास एक कुवां था ।
मुगल अधिपत्य से निकल कर काशी अवध के नवाब के अधिकार मे आई तो मीर रुस्तम अली ने यहाँ कई महत्वपूर्ण घाटों का निर्माण कराया फिर उसके बाद बनारस पर हिन्दू राजाओं राजा मनसा राम, उनके बाद राजा बलवन्त सिंह और उनके बाद राजा चेत सिंह का शासन रहा .. लेकिन किसी ने भी आलमगीरी मस्जिद या उसके समीप के कुवे पर मन्दिर बनाने का नहीं सोचा ...... कारण यही था कि उस स्थान पर पहले भी कोई मन्दिर नहीं था।
सत्य कोई नहीं जानता
अब मुआमला जो भी रहा हो और मन्दिर या मस्जिद जो भी ह दोनों में ही एक ही इश्वर की पूजा होती है। दोनों ही पवित्र स्थान है और दोनों में ही मन कर्म और वचन से शुद्ध लोगों का ही प्रवेश होना चाहिए फिर वो हिन्दू हों या मुसलमान।