Hindi Diwas 2019: जानिए 14 सितंबर को ही 'हिंदी दिवस' क्यों मनाते हैं?
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नई दिल्ली। अंग्रेजी भाषा के बढ़ते चलन और हिंदी की अनदेखी को रोकने के लिए हर साल 14 सितंबर को देशभर में 'हिंदी दिवस' मनाया जाता है, आजादी मिलने के दो साल बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में एक मत से हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया था और इसके बाद से हर साल 14 सितंबर को 'हिंदी दिवस' के रूप में मनाया जाने लगा।
14 सितंबर ही क्यों?
वर्ष 1990 में प्रकाशित एक पुस्तक "राष्ट्रभाषा का सवाल" में शैलेश मटियानी ने यह सवाल किया था कि हम 14 सितंबर को ही हिंदी दिवस क्यों मनाते हैं। इस पर प्रेमनारायण शुक्ला ने 'हिंदी दिवस' के दिन इलाहाबाद में इसके कारण को बताया था कि इस दिन ही हिंदी भाषा के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए थे, इसलिए इस दिन को 'हिंदी दिवस' के लिए चुना गया था, जबकि सच्चाई ये है कि 14 सितंबर, 1949 के दिन हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला था, तब से हर साल यह दिन 'हिंदी दिवस' के तौर पर मनाया जाता है।
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महात्मा गांधी ने हिंदी को जनमानस की भाषा कहा
'हिंदी दिवस' का इतिहास और इसे दिवस के रूप में मनाने का कारण बहुत पुराना है। वर्ष 1918 में महात्मा गांधी ने इसे जनमानस की भाषा कहा था और इसे देश की राष्ट्रभाषा भी बनाने को कहा था। लेकिन आजादी के बाद ऐसा कुछ नहीं हो सका। सत्ता में आसीन लोगों और जाति-भाषा के नाम पर राजनीति करने वालों ने कभी हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनने नहीं दिया इसलिए इस भाषा का महत्व समझाने के लिए इस दिन को मनाने की आवश्यकता पड़ी।
भारत की राजभाषा नीति (1950 से 1965)
26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू होने के साथ साथ राजभाषा नीति भी लागू हुई। संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के तहत यह स्पष्ट किया गया है कि भारत की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी है। हिंदी के अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा का प्रयोग भी सरकारी कामकाज में किया जा सकता है। अनुच्छेद 343 (2) के अंतर्गत यह भी व्यवस्था की गई है कि संविधान के लागू होने के समय से 15 वर्ष की अवधि तक, अर्थात वर्ष 1965 तक संघ के सभी सरकारी कार्यों के लिए पहले की भांति अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग होता रहेगा। यह व्यवस्था इसलिए की गई थी कि इस बीच हिंदी न जानने वाले हिंदी सीख जायेंगे और इस भाषा को प्रशासनिक कार्यों के लिए सभी प्रकार से सक्षम बनाया जा सकेगा।
लेकिन अंग्रेजी को हटाया नहीं जा सका.......
साल 1965 तक 15 वर्ष हो चुका था, लेकिन उसके बाद भी अंग्रेजी को हटाया नहीं गया और अनुच्छेद 334 (3) में संसद को यह अधिकार दिया गया कि वह 1965 के बाद भी सरकारी कामकाज में अंग्रेजी का प्रयोग जारी रखने के बारे में व्यवस्था कर सकती है। अंग्रेजी और हिंदी दोनों भारत की राजभाषा है।