Merry Christmas 2018: जानिए 'क्रिसमस ट्री' का इतिहास, पढ़ें कुछ रोचक बातें
नई दिल्ली। 'क्रिसमस' पर हर किसी की तमन्ना होती है कि वो इसे यादगार बना सके इसलिए लोग इस त्योहार पर एक-दूसरे को गिफ्ट देकर अपने प्यार और खुशी का इजहार करते हैं , इस दिन क्रिसमस ट्री को सजाने की प्रथा है, लोग अपने घरों में भी प्यारी-प्यारी चीजों से 'क्रिसमस ट्री' के प्रारूप में पौधों को सजाते हैं। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि आखिर यीशु के जन्मदिन पर 'क्रिसमस ट्री' को क्यों सजाते हैं, क्या है इसका इतिहास, चलिए विस्तार से जानते हैं।
'क्रिसमस ट्री' का इतिहास
दरअसल क्रिसमस वृक्ष एक सदाबहार डगलस, बालसम या फर का पौधा होता है जिस पर क्रिसमस के दिन बहुत सजावट की जाती है, ऐसा अनुमान है कि इस प्रथा की शुरुआत प्राचीन काल में मिस्रवासियों, चीनियों या हिबू्र लोगों ने की थी, ये लोग इस सदाबहार पेड़ की मालाओं, पुष्पहारों को जीवन की निरंतरता का प्रतीक मानते थे। उनका विश्वास था कि इन पौधों को घरों में सजाने से बुरी आत्माएं दूर रहती हैं, तब से ही पेड़ को सजाने का रिवाज बन गया।
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पश्चिम जर्मनी
आधुनिक क्रिसमस ट्री की शुरुआत पश्चिम जर्मनी में हुई, कहा जाता है कि मध्यकाल में एक लोकप्रिय नाटक के मंचन के दौरान फर के पौधों का प्रयोग किया गया जिस पर सेब लटकाए गए। इस पेड़ को स्वर्ग वृक्ष का प्रतीक दिखाया गया था, जिसके बाद जर्मनी के लोगों ने 24 दिसंबर को फर के पेड़ से अपने घर की सजावट करनी शुरू कर दी थी।
प्रिंस अलबर्ट
वैसे इंग्लैंड में प्रिंस अलबर्ट ने 1841 ई. में विडसर कैसल में पहला क्रिसमस ट्री लगाया था तो अमेरिका के पेनिसिल्वानिया में सबसे पहले क्रिसमस ट्री की परंपरा शुरू हुई। कुल मिलाकर सार इतना ही 'क्रिसमस ट्री' प्रेम, पवित्रता, खुशी और भगवान का प्रतीक माना जाता है, जिसे सजाकर के लोग प्रभु की ओर अपनी खु्शियां जताते हैं।
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