
स्टडी में दावा- लिवर के लिए खतरनाक है गिलोय का ज्यादा सेवन, आयुष मंत्रालय ने कहा भ्रामक
नई दिल्ली, 6 जुलाई। कोरोना काल में इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए हर्बल प्रोडक्ट की मांग खूब तेज हुई है। बड़ी संख्या में लोगों ने आयुर्वेदिक औषधियों में इस्तेमाल होने वाले हर्बल प्रोडक्ट का घरेलू नुस्खे के तौर पर खूब इस्तेमाल किया लेकिन इन प्रोडक्ट का अधिक इस्तेमाल अब खतरनाक साबित हुआ है। एक अध्ययन में पाया गया है कि ज्यादा मात्रा में गिलोय जैसे आयुर्वेदिक उपचारों का प्रयोग करने वाले लोगों में लिवर में गंभीर चोटें पाई गई हैं।

गिलोय सेवन करने वालों में लिवर का खतरा
इसे लेकर किए गए अध्ययन को जर्नल ऑफ क्लिनिकल एंड एक्सपेरिमेंटल हेपेटोलॉजी में प्रकाशित किया गया है जिसमें कहा गया है कि कोविड-19 के दौरान हर्बल इम्यून बूस्टर लीवर में चोट को बढ़ावा दे सकती है जो जड़ी-बूटियों के मेटाबोलाइट्स या दूषित पदार्थों के दूसरी दवाओं के साथ उनके संपर्क में आने से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तंत्र से उत्पन्न हो सकती है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने सितंबर 2020 से दिसंबर 2020 तक हर्बल इम्यून बूस्टर के चलते लिवर की चोट वाले छह रोगियों के अनुभव का रिकॉर्ड रखा और उसका अध्ययन किया।

अध्ययनकर्ताओं को क्या मिला ?
शोध के दौरान एक 40 वर्षीय व्यक्ति का अध्ययन किया गया था जिसे 15 दिनों से पीलिया था। अध्ययन में पाया गया कि तीन महीने पहले से वह दो दिन में एक बार आधा गिलास पानी में दालचीनी और लौंग के साथ 10-12 गिलोय की टहनियों के टुकड़े उबालकर पीता था।
एक अन्य टाइप-2 डायबिटीज वाली 54 वर्षीय महिला को एक सप्ताह से पीलिया की शिकायत थी। जब महिला की हिस्ट्री पर नजर डाली गई तो वह पिछले 7 महीने से रोजाना एक गिलोय की टहनी का उबालकर सेवन कर रही थी। इसी तरह से अन्य मरीजों में भी पाया गया कि वे नियमित तौर पर गिलोय का किसी न किसी रूप में सेवन कर रहे थे।

विशेषज्ञों का क्या है कहना?
रोग प्रतिरोधी के तौर पर गिलोय का इस्तेमाल जड़ी-बूटी के शौकीनों में काफी पसंद किया जाता है। लेकिन दुर्भाग्य से जब इसे लंबे समय तक लिया जाता है तो इसके कारण लिवर को विषाक्तता का सामना करना पड़ता है। ऐसे लोग जो इसे 2 से 3 महीने से ज्यादा समय तक लेते हैं उनमें लिवर का जोखिम बढ़ जाता है। ऐसे मरीज जो डायबिटीज या शराब के कारण बेसलाइन लिवर की क्षति वाले रोगी हैं वे अधिक संवेदनशील होते हैं।
एक लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन, जो कि इस अध्ययन में शामिल नहीं हैं, का कहना है कि उन्होंने ऐसे मरीज देखे हैं दुर्भाग्य से उनके एक मरीज की मौत भी हो गई। उनका ये भी कहना है कि महामारी के दौरान बहुत सारे लोगों ने गिलोय का इस्तेमाल इम्यूनिटी बढ़ाने वाले एंटीऑक्सीडेंट के तौर पर इस्तेमाल किया है लेकिन यह लिवर के लिए खतरनाक साबित हुआ है।

आयुष मंत्रालय ने कहा भ्रामक
विशेषज्ञों का कहना है कि गिलोय का सेवन करने वालों में अधिकांश को सही खुराक और प्रतिकूल प्रभावों के बारे में जानकारी नहीं है। इसलिए कुछ लोगों को लाभ हो सकता है लेकिन अप्रत्याशित लोगों को नुकसान भी हो सकता है।
हालांकि अध्ययन के निष्कर्षों का आयुष मंत्रालय ने खंडन किया है। आयुष मंत्रालय ने कहा कि अध्ययनकर्ता मामलों के सभी आवश्यक विवरणों को व्यवस्थित रूप से रखने में विफल रहे। गिलोय का लिवर को नुकसान पहुंचाने से जोड़ना भारत की पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली के लिए भ्रामक और विनाशकारी होगा क्योंकि आयुर्वेद में जड़ी बूटी गुडुची या गिलोय का उपयोग लंबे समय से किया जा रहा है। कई तरह की बीमारियों में गिलोय की प्रभावकारिता अच्छी तरह से स्थापित है।