कौन थे डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, क्यों मनाते हैं शिक्षक दिवस?
Recommended Video
नई दिल्ली। भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन (5 सितंबर) भारत में 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाया जाता है।
आनंद कुमार: पैसे नहीं ख्वाबों की ताकत से चलाते हैं 'सुपर 30' कोचिंग
चलिए जानते हैं 'शिक्षक दिवस' के बारे में कुछ खास बातें..
- भारत मे शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाया जाता है।
- सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दक्षिण भारत के तिरुत्तनि स्थान में हुआ था जो चेन्नई से 64 किमी उत्तर-पूर्व में है।
- सर्वपल्ली राधाकृष्णन हमारे देश के दूसरे राष्ट्रपति थे।
- राजनीति में आने से पहले उन्होंने अपने जीवन के 40 साल अध्यापन को दिये थे।
- सर्वपल्ली राधाकृष्णन का मानना था कि बिना शिक्षा के इंसान कभी भी मंजिल तक नहीं पहुंच सकता है इसलिए इंसान के जीवन में एक शिक्षक होना बहुत जरूरी है।
भारत रत्न डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
- भारत रत्न से सम्मानित डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इसलिए शिक्षकों को सम्मान देने के लिए अपने जन्मदिन को 'शिक्षक दिवस' के रूप मे मनाने की बात कही।
- 'शिक्षक दिवस' भारत में 'शिक्षक दिवस'5 सितंबर को मनाया जाता है लेकिन विश्व के दूसरे देशों में इस मनाने कि तिथियां अलग-अलग हैं।
- 'शिक्षक दिवस' के रूप में, कहीं-कहीं क्षेत्र में ये मई के पहले सप्ताह में सेलिब्रेट होता है तो कहीं पर ये जून के पहले रविवार को मनाया जाता है।
- डॉ. राधाकृष्णन समूचे विश्व को एक विद्यालय मानते थे। उनका मानना था कि शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है।
- मानव मस्तिष्क का सदुपयोग डॉ. राधाकृष्णन समूचे विश्व को एक विद्यालय मानते थे।
- उनका मानना था कि शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है।
शिक्षक दिवस' मनाने के लिए 5 अक्टूबर को चुना
यूनेस्को ने आधिकारिक रूप 1994 में 'शिक्षक दिवस' मनाने के लिए 5 अक्टूबर को चुना। इसलिए अब 100 से ज्यादा देशों में यह दिन 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाया जाता है।
समूचे विश्व को एक विद्यालय मानते थे
मानव मस्तिष्क का सदुपयोग
ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा 'सर' की उपाधि
राधाकृष्णन 1931 में ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा 'सर' की उपाधि प्रदान की गयी थी लेकिन स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात उसका औचित्य डॉ. राधाकृष्णन के लिये समाप्त हो चुका था। जब वे उपराष्ट्रपति बन गये तो स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने 1954 में उन्हें उनकी महान दार्शनिक व शैक्षिक उपलब्धियों के लिये देश का सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न प्रदान किया।