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Guru Nanak Jayanti 2019: क्या है गुरुनानक और करतारपुर का रिश्ता, क्यों है यह धरती इतनी पावन?

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नई दिल्ली। आज पूरा देश गुरु पर्व में सराबोर है, देश के सभी छोटे-बड़े गुरुद्वारों में गुरु नानक देव की 550वीं जयंती पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है, देश के सभी गुरुद्वारों में रौनक ही रौनक है तो वहीं भारी संख्या में लोग इस वक्त गुरुद्वारों में सेवा दे रहे हैं। आपको बता दें कि आज का दिन लोग गुरुनानक जंयती के रूप में मनाते हैं। गुरु नानक का जन्म 15 अप्रैल 1469 को ननकाना साहिब में हुआ था। ये ही सिखों के प्रथम गुरु हैं। लद्दाख व तिब्बत में इन्हें नानक लामा भी कहा जाता है।

तलवंडी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ा

तलवंडी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ा

कुछ विद्वान इनकी जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं। इनके पिता का नाम कल्याणचंद या मेहता कालू जी था, माता का नाम तृप्ता देवी था। तलवंडी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ गया। इनकी बहन का नाम नानकी था। नानक सर्वेश्वरवादी थे।मूर्तिपूजा को उन्होंने निरर्थक माना। रूढ़ियों और कुसंस्कारों के विरोध में वे सदैव तीखे रहे।

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'भगवान इंसान के अंदर होता है'

ईश्वर का साक्षात्कार, उनके मतानुसार, बाह्य साधनों से नहीं वरन् आंतरिक साधना से संभव है। इन्होंने हमेशा कहा भगवान इंसान के अंदर होता है इसलिए इंसान को कभी गलत काम नहीं करना चाहिए, जिस दिन इंसान का खुद से साक्षात्कार हो जाएगा उस दिन उसे मोक्ष मिल जाएगा। गरीबों की सेवा ही सच्ची भक्ति है। इनके उपदेश का सार यही होता था कि ईश्वर एक है उसकी उपासना हिंदू मुसलमान दोनों के लिये हैं।

गुरु नानक देव जी के तीन सिद्धांत

गुरु नानक देव जी के तीन सिद्धांत

गुरु नानक देव जी के तीन सिद्धांत हैं- नाम जपो, कीरत करो और वंद चखो। एक ईश्वर और ईश्वर नाम के जप का उपदेश देने वाले गुरु नानक देवी जी का करतारपुर ( पाकिस्तान)से विशेष लगाव रहा है। यहां बने हुए गुरुद्वारे को श्री दरबार साहिब करतारपुर या करतारपुर साहिब के नाम से जाना जाता है।

करतारपुर में हुआ था नानक देव जी का निधन

करतारपुर में हुआ था नानक देव जी का निधन

करतारपुर साहिब गुरुद्वारा पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के नारोवाल जिले में पड़ता है। गुरु नानक देव अपने जीवन के अंतिम 18 वर्षों तक करतारपुर में ही रहे। उन्होंने रावी नदी के तट पर करतारपुर बसाया था। वहां उन्होंने खेती की और लंगर स्थापित किए। 1539 में गुरू नानक देव जी की ज्योति जोत में मिल गई। जिस स्थान पर उनका निधन हुआ, वहां पर करतारपुर साहिब गुरुद्वारा बना है। इतिहास के अनुसार गुरुनानक देव की तरफ से भाई लहणा जी को गुरु गद्दी भी इसी स्थान पर सौंपी गई थी। जिन्हें दूसरे गुरु अंगद देव के नाम से जाना जाता है और आखिर में गुरुनानक देव ने यहीं पर समाधि ली थी।

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English summary
The Gurdwara Darbar Sahib Kartarpur is one of the holiest places in Sikhism. It's believed to have been built on the site where Guru Nanak, the founder of the religion, died in the 16th Century.
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